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प्रस्तुति
'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ' ग्रन्थमालाका यह चौथा प्रसून है । पहले प्रसूनोंकी ही भाँति यह भी भगवान् महावीरके पचीससौवें निर्वाण महोत्सव वर्षकी पुण्य स्मृतिमें समर्पित है । ग्रन्थमालाकी प्रकाशन योजनाके पूर्ण होने में इसके अभी दो भाग और शेष रह जाते हैं जिनका सम्बन्ध दक्षिण भारतके जैन तीर्थोंसे है । सर्वेक्षण, सामग्री संकलन, लेखन एवं सम्पादनका कार्य चल रहा है। प्रयास यही है कि ये भाग भी आपके हाथोंमें यथाशीघ्र पहुँचें ।
जैसा कि अब तक प्रकाशित इन चार भागोंके अवलोकनसे स्पष्ट होगा, तीर्थोके परिचयात्मक वर्णनमें पौराणिक, ऐतिहासिक और स्थापत्य एवं कलापरक सामग्रीका संयोजन बहुत ही परिश्रम और सूझ-बूझसे किया गया है | ग्रन्थ-लेखक पं. बलभद्रजीको इस कार्यमें व्यापक अनुभव है, लगन तो है ही । सामग्रीको सर्वांगीण बनानेकी दिशामें जो भी सम्भव था — कमेटी के साधन, ज्ञानपीठका निर्देशन एवं स्व. श्री साहू शान्तिप्रसादजीका मार्गदर्शन और प्रेरणा पण्डितजीको उपलब्ध रही है । भारतीय ज्ञानपीठकी ओरसे सामग्रीका न केवल सम्पादकीय नियमन हुआ है अपितु सारे मानचित्रोंका निर्माण प्रथम बार कराया गया है । तीर्थक्षेत्र कमेटीने यात्राओंके नियोजन, सामग्री - संकलन, सम्पादन, लेखन तथा फोटोग्राफ्स प्राप्त कराने में पर्याप्त धन व्यय किया है । इस सारी सामग्रीपर और इसके संयोजन - प्रकाशनपर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका सम्पूर्ण अधिकार है ।
सामग्री-संकलन, लेखनकार्य और मुद्रण - प्रकाशनपर यद्यपि अधिक धनराशि व्यय हुई है फिर भी तीर्थक्षेत्र कमेटीने इस ग्रन्थमालाको सर्वसुलभ बनानेकी दृष्टिसे केवल लागत मूल्यके आधारपर दाम रखनेका निर्णय किया है । भारतीय ज्ञानपीठका व्यवस्था सम्बन्धी जो व्यय हुआ है और जो साधन-सुविधाएँ इस कार्यके लिए उपलब्ध की गयी हैं, उनका समावेश इस व्यय राशिमें नहीं किया गया है ।
तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नियोजित की गयी पण्डित बलभद्रजीकी यात्राओंके अवसरपर तीर्थोके मन्त्रियों और प्रबन्धकों तथा तीर्थोंसे सम्बन्धित अन्य सज्जनोंसे जो लेखन-सामग्री या सूचनाएँ उपलब्ध हुईं तथा जो सहयोग प्राप्त हुआ उसके लिए हम अपना हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं । पग-पग पर जिनका मार्गदर्शन प्राप्त था, क्षण-क्षण जो हमें उत्साहसे भरते थे, जिनकी छत्रछायामें हम निःशंक अपनी योजनाओंकी पूर्ति में आगे बढ़ते जाते थे आज उन श्रावक - शिरोमणि साहू शान्तिप्रसादजीकी अनुपस्थितिमें इस योजनाको पूरा करनेका कठिन मार्ग हम कैसे तय कर पायेंगे, यह सोचकर चिन्ता होती है । किन्तु वह हमें जो आत्मविश्वास दे गये हैं वही हमारा पाथेय है । श्री साहूजीकी स्मृतिमें उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि अर्पित है ।