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जैन दृष्टिसे राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र गये हैं। नन्दीश्वर जिनालयके ५२ जिनालय पीतल या पाषाणस्तम्भोंमें बनानेकी भी प्रथा है। ऐसे नन्दीश्वर जिनालय कुन्थलगिरि, ऋषभदेव, चाँदखेड़ी, तारंगा और महुआमें मिलते हैं। पावागढ़में पीतलका ४ फीट १० इंच ऊंचा जिनालय है जो संवत् १५३७ का है।
___ सहस्रकूट जिनालयमें भगवान्की १००८ मूर्तियाँ होती हैं। यह पाषाण और धातु दोनोंमें ही मिलती हैं। घोघामें संवत् १५६१ का धातुका एक सहस्रकूट है। दहीगांवमें संवत् १६६५ का है। कोल्हापुर में पीतलका शिखराकार सहस्रकूट जिनालय है। पैठणमें भी एक जिनालय है। औरंगाबादमें एक सहस्रकूट जिनालय है। यह पीतलका है। इसमें ६९x४ मूर्तियाँ हैं। किन्तु इसे सहस्रकूट जिनालयकी संज्ञा देना उपयुक्त नहीं लगता। जिन्तूरमें पीतलके दो सहस्रकूट जिनालय संवत् १५४१ के हैं। इनमें एक लोकाकार है, दूसरा शिखराकार है । ये दोनों ही पाँच फोटके लगभग ऊंचे हैं। इनमें १००० + २४ मूर्तियाँ हैं। सम्भवतः १००० मूर्तियां सहस्रकूट जिनालयकी प्रतीक हैं और २४ मूर्तियां तीर्थंकरोंकी प्रतीक हैं। करंजाके बलात्कारगण मन्दिरमें पीतलके दो सहस्रकूट चैत्यालय हैं । एकमें १००८ मूर्तियाँ बनी हुई हैं, जबकि दूसरेमें १७२८ मूर्तियाँ हैं । १७२८ मूर्तियोंका क्या उद्देश्य हो सकता है, यह ज्ञात नहीं हो पाया।
जिनायतनकी रचना-शैलीमें मानस्तम्भ भी जिनालयका एक भाग माना गया है। अजमेर, जयपुर, श्रीमहावीरजी, गजपन्थ, दहीगांव, बाहुबली, कारंजा, सावरगाँव, पैठण, मुक्तागिरि, तारंगा, गिरनार, सोनगढ़, शत्रुजय, सूरतमें विशाल मानस्तम्भ बने हुए हैं।
गुहामन्दिर-इन प्रान्तोंमें निम्नलिखित स्थानोंपर गुहा-मन्दिर बने हुए हैं
धाराशिव, ऐलोरा, मांगीतुंगी, गजपन्थ, अंजनेरी, जिन्तूर, तारंगा, गिरनार, कुण्डल, औरंगाबाद, चांदवड़।
इनमें धाराशिव और ऐलौराके गुहामन्दिर निश्चित रूपसे ७-८वीं शताब्दीके स्वीकृत किये गये हैं। मांगीतुंगीके गुहामन्दिरोंका पुरातात्विक दृष्टिसे अभी तक काल-
निर्धारण नहीं किया गया, किन्तु अपनी संरचना-शैलीसे ये ईसापूर्व या ईसाकी प्रारम्भिक शताब्दियोंके लगते हैं। अंजनेरी और गजपन्थके गुहामन्दिर प्रायः ८-९वीं शताब्दीके अनुमानित किये जाते हैं। चांदवड़के गुहामन्दिर भी लगभग इसी कालके प्रतीत होते हैं। जिन्तूरकी चन्द्रगुहाका उल्लेख प्राकृत भक्तिपाठोंमें आता है। प्राकृत भक्तिपाठ कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीत बताये जाते हैं। अतः इनका निर्माण-काल ईसाकी प्रथम-द्वितीय शताब्दी हो सकता है। औरंगाबादकी निपटनिरंजन गुहाओंका काल पूरातत्त्ववेत्ताओंने ७-८वीं शताब्दी निर्धारित किया है। ये गुहामन्दिर बौद्ध और जैनोंके संयुक्त मन्दिर हैं। इनमें दोनों धर्मोकी मूर्तियां हैं। गिरनारकी राजुल गुफाका समय ईसाकी प्रारम्भिक शताब्दियां अथवा इससे कुछ पूर्वका हो सकता है। तारंगाकी गुफा कोटिशिला और सिद्धशिलापर पायी जानेवाली संवत् ११९२ की मूर्तियोंसे इसी कालकी अनुमानित की जाती हैं। कुण्डलकी गुफाएँ दसवीं शताब्दी की हैं। कलिकुण्ड पार्श्वनाथ मन्दिरमें एक मूर्तिपर संवत् ९६४का लेख उत्कीर्ण है। अतः यह धारणा स्वाभाविक है कि पर्वतकी गुफाएं इसी कालमें निर्मित हुई होंगी। इस प्रकार ये गुहामन्दिर ईसाकी प्रथम शताब्दीसे १२वीं शताब्दोके मध्यके निर्मित हैं।
इन गुफाओंमें कई गुफाएँ तो प्राकृतिक लगती हैं, जिन्हें बादमें छेनी-हथौड़ोंकी सहायतासे साधारण संवारा गया लगता है। जैसे गिरनारकी राजुल गुफा। मांगीतुंगी और गजपन्थ गुफाएँ चूना-सीमेण्टकी सहायतासे अभी सँवार दी गयी हैं। अतः उनका मौलिक रूप दब गया है, जिससे उनके सम्बन्धमें निश्चित धारणा नहीं बनायी जा सकती। मांगीतुंगी पर्वतमें इन गुहा