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जैन दृष्टिसे राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र
१७ मूर्तियाँ ) कारंजा-काष्ठासंघो मन्दिर ( संवत् १२७२ की अनेक मूर्तियां ), बाढीणा रामनाथ (संवत् १४५७), भातकुली (शक संवत् ११५३ अर्थात् सन् १२३१), सिरपुर-पवली (संवत् १४५७) ।
इसके पश्चात्कालकी मूर्तियाँ तो सभी क्षेत्रोंपर मिलती हैं। संवत् १५४८ को जीवराज पापडीवाल द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ प्रायः सभी क्षेत्रोंपर मिलती हैं।
ऊपर अबतक जिन मूर्तियोंका काल-निर्धारण किया गया है, वे सभी पाषाण की हैं। इन प्रान्तोंमें धातु-मूर्तियाँ विशेष प्राचीन उपलब्ध नहीं होती।
शासन-देवताओंकी मूर्तियाँ
तीनों प्रान्तोंमें शासन-देवताओं अर्थात् तीर्थंकरोंके सेवक यक्ष-यक्षियोंकी संख्या विशाल है। प्रायः अधिकांश तीर्थक्षेत्रोंपर इनकी मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। यक्षोंमें सर्वाधिक मूर्तियाँ गोमेद, धरणेन्द्र और मातंग यक्षोंको मिलती हैं। कहीं-कहीं गोमुख यक्षकी मूर्ति भी मिलती है। यक्षियोंमें अम्बिका, पद्मावती, ज्वालामालिनी, चक्रेश्वरी और सिद्धायिकाकी मूर्तियां अत्यधिक संख्यामें मिलती हैं। इनमें भी अम्बिका और पद्मावतीकी मूर्तियोंकी संख्या विशाल है। यक्ष प्रायः द्विभुजी ही मिलते हैं, किन्तु यक्षियोंमें षोडशभुजो, द्वादशभुजी और चतुर्भजी मतियाँ भी उपलब्ध होती हैं। बाहुबली क्षेत्रपर १६ भुजी ज्वालामालिनी, चतुर्भुजो पद्मावती है। ऐलोरामें द्वादशभुजी यक्षी मूर्ति है। कुण्डल, कोल्हापुर, जिन्तूर, श्रीमहावीरजी, चाँदखेड़ो, पावागढ़में चतुर्भुजी देवी-मूर्तियां हैं। चतुर्भुजी देवियोंकी मूर्तियां पाषाण और धातु दोनों प्रकारको मिलती हैं । ऐलौराकी यक्ष-यक्षी-मूर्तियोंकी अपनी कुछ पृथक् विशेषताएँ हैं। यहाँकी मूर्तियोंका आकार विशाल है; यक्ष अलंकारोंके अतिरिक्त यज्ञोपवीत धारण किये हुए हैं। गोमेदको अनेक मूर्तियां यहाँ ऐसी है, जिनके सिरके ऊपर काफी विशाल आम्रगुच्छक है। अम्बिकाको मूर्तियोंमें भी सिरके ऊपर या हाथमें आम्रस्तवक हैं और बालक भी हैं। प्रायः देवियोंके शीर्ष भागपर तीर्थंकर-मूर्ति होती है, किन्तु ऐलौरा यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियां स्वतन्त्र हैं, उनके साथ तीर्थंकर-मूर्ति नहीं है। इन मूर्तियोंकी अलंकरण-सज्जा, सुघड़ता और सौन्दर्यकी ओर शिल्पीने विशेष ध्यान रखा है। खजुराहोकी यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियोंको छोड़कर सुन्दरता और सुघड़तामें ऐलौराकी इन मूर्तियोंको समानता अन्य किसी स्थानको यक्ष-यक्षी मूर्तियाँ सम्भवतः नहीं कर सकतीं।
___इन यक्ष-यक्षी मूर्तियोंके अतिरिक्त सरस्वतीकी मूर्तियां भी मिलती हैं, यद्यपि उनकी संख्या अल्प है । धाराशिव गुफाओं में सरस्वतीको श्यामवर्ण प्रतिमा है। यह अर्ध पद्मासनमें है। देवी कन्धेके सहारे वीणा रखे हुए है। उसे दायें हाथसे बजा रही है। उसका बायां हाथ वरद मुद्रामें है। राजनापुरसे प्राप्त एक सरस्वती-मूर्ति नागपुर संग्रहालयमें सुरक्षित है। देवी ललितासनसे विराजमान है । उसके वाहन हंसको चोंचमें सात मणियोंकी माला लटक रही है जो सप्त तत्त्वोंकी प्रतीक है । हंसवाहिनी सरस्वतीकी एक मनोज्ञ पाषाण-मूर्ति बोरगांव (मंजू) में है।
ऐलौराको गुफा नं. ३० व गुहा-मन्दिरकी बाह्य भित्तियोंपर एक ओर द्वादशभुजी इन्द्र नृत्य मुद्रामें प्रदर्शित है। इन्द्र अलंकार धारण किये हुए है। उसकी भुजाओंपर देवियाँ नृत्य कर रही हैं । कुछ देव वाद्य बजा रहे हैं। भित्तिके दूसरे पार्श्वमें इन्द्र चतुर्भुजी है। वह भी नृत्य मुद्रामें उत्कीर्ण है । यही द्वारके दोनों पार्यो में द्वारपाल विशाल आकारमें बने हुए हैं, जिनके हाथमें भयानक गदा है।
कालक्रमकी दृष्टिसे इन प्रदेशोंमें शासन-देवताओंकी सर्वाधिक प्राचीन मूर्तियां धाराशिव