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________________ जैन दृष्टि से राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र कारंजामें भूगर्भसे प्राप्त जटामण्डित सुपार्श्वनाथ प्रतिमा बालुकामय है। पैठणके मुनिसुव्रतनाथ भी बालू निर्मित बताये जाते हैं । धाराशिवकी पार्श्वनाथ-मूर्ति गारे-मिट्टीकी बनी हुई है। ऐतिहासिक कालक्रमकी दृष्टिसे अभिलिखित मूर्तियोंमें इन प्रदेशोंमें प्राचीनतम मूर्ति केशोरायपाटनमें उपलब्ध होती है। इस मूर्तिके ऊपर लांछन नहीं है किन्तु मूर्ति-लेख है जिसके अनुसार इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् ६६४ है। यहींपर कई अन्य मूर्तियाँ भी हैं जो अपनी रचना शैलीसे इसके समकालीन लगती हैं। यहांकी मूलनायक मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमाको कुछ लोग २००० वर्ष प्राचीन बताते हैं। जिनके हृदयमें इस प्रतिमाके प्रति भक्तिका अतिरेक है, वे तो इसे रामचन्द्रकालीन बताते हैं। किन्तु इसे ईसाको प्रथम-द्वितीय शताब्दी या इसके उत्तरकाल की ही माना जा सकता है। इसके लिए ठोस साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। प्राकृत निर्वाण काण्डमें इसका उल्लेख मिलता है। धाराशिव गुफाओंकी मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा जैन साहित्यके आधारपर महावीर स्वामीसे पूर्वकालीन करकण्ड नरेशने की थी। पुरातत्त्ववेत्ता इनका काल ७-८वीं शताब्दी मानते हैं। इसी प्रकार ऐलौरा और औरंगाबाद गुफाओंकी अनेक मूर्तियोंका निर्माण भी इसी काल में हुआ था। तेरकी मूर्तियाँ धाराशिवको मूर्तियोंके लगभग समकालीन मानी जाती हैं। चांदवड़ गुहामूर्तियोंका काल कुछ पश्चाद्वर्ती प्रतीत होता है। गजपन्थ क्षेत्रकी गुहा-मूर्तियाँ इनके लगभग समकालीन लगती हैं। चांदवड़ और गजपन्थ न केवल निकटवर्ती हैं, इनकी मूर्तियोंकी रचनाशैली में भी अत्यधिक साम्य है। मांगीतुंगीकी पर्वतस्थ गुहा-मूर्तियाँ कालकी दृष्टिसे सबसे प्राचीन लगती हैं। इन्हें ईसाकी प्रथम शताब्दी या इससे भी कुछ पूर्वका माना जा सकता है। उदयगिरि-खण्डगिरिकी मूर्तियोंसे यहाँकी मूर्तियोंमें शैली, अभिव्यंजना आदि किसी दृष्टिसे साम्य नहीं है, उनके पाषाणोंमें भी मौलिक अन्तर है । उदयगिरि-खण्डगिरिकी मूर्तियोंका पाषाण ठोस है, जबकि मांगीतुंगीकी मूर्तियां रवादार बुरबुरे पाषाण की हैं जिससे ये खिर-खिरकर अपरूप हो गयी हैं। अतः दोनों स्थानोंकी मूर्तियोंमें समानता ढूँढ़ना व्यर्थ होगा। किन्तु यह स्वीकार करना होगा कि मांगीतुंगीमें मूर्तियोंका निर्माण उस कालमें हुआ था, जब इस प्रदेशमें मूर्ति-कलाका विकास नहीं हुआ था। अतः इस प्रदेशमें मूर्ति-कलाके प्रारम्भिक कालमें मांगीतुंगीमें मूर्तियोंका निर्माण किया गया। इसीलिए गजपन्थ, अंजनेरी, चांदवड़, ऐलोरा आदिको पश्चात्कालीन मूर्तियोंमें मांगीतुंगीकी अपेक्षा अधिक सुघड़ता, अधिक समानुपातिकता और अधिक निखार पाते हैं। नौवीं शताब्दीसे १२वीं शताब्दी तक की मूर्तियाँ निम्नलिखित स्थानोंपर इस कालकी मूर्तियां उपलब्ध होती हैं कुण्डल-पार्श्वनाथकी एक मूर्ति पर संवत् ९६४ अंकित है। लेपके कारण यहाँको कई मूर्तियोंके लेख दब गये हैं। किन्तु वे भी इसी कालकी लगती हैं। ____ अंजनेरी-यहाँ १२वीं शताब्दीका शिलालेख प्राप्त हुआ है। यहाँ कई मूर्तियाँ इसी कालकी हैं। ___ कोल्हापुर-मानस्तम्भ दिगम्बर जैन मन्दिर गंगावेशमें मानस्तम्भ और मूर्तियाँ १२वीं शताब्दी की हैं। सिरपुर-पवली और अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर में १०वीं शताब्दीकी अनेक मूर्तियाँ हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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