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________________ परिशिष्ट-१ ३४३ अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ-शिरडशहापुरसे चोंडी ८ कि. मी.। चोंडीसे वाशिम ११४ कि. मी.। वाशिमसे मालेगांव २० कि. मी. तथा मालेगांवसे सिरपुर गांव १० कि. मी. है। बसोंकी व्यवस्था है। सिरपुर गांवमें ही श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र है। श्री अन्तरिक्ष पाश्वनाथ क्षेत्र भारतका सुविख्यात क्षेत्र है। गांवके बाहर श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पवली मन्दिर बना हुआ है। यही अन्तरिक्ष पार्श्वनाथका मूल मन्दिर है। इसे १००० वर्ष पूर्व ऐल श्रीपालने बनवाया था। कहते हैं, उस समय पाश्वनाथकी प्रतिमा अन्तरिक्षमें इतनी ऊंची थी कि इसके नीचेसे एक घुड़सवार निकल जाता था। मुस्लिम कालमें वह मूर्ति यहाँसे हटाकर नगरके मन्दिरमें भूगर्भगृहमें विराजमान कर दी गयी थी। यहाँ तीन मन्दिर हैं। कई मूर्तियां ११-१२वीं शताब्दीकी लगती हैं। यहां एक कुआं बना हुआ है। कहा जाता है, इसीके जलसे श्रीपाल नरेशका कुष्ठ रोग दूर हुआ था। अब भी इसके जलसे अनेक रोग दूर हो जाते हैं । इस मन्दिरमें जिन इंटोंका प्रयोग किया गया है, वे जलमें तैरती हैं, ऐसा कहा-सुना जाता है। नगरके मन्दिरमें दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंको पूजाका अधिकार है। उसके लिए समय निर्धारित है। नीचे भोयरेमें भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्णवर्णकी अर्धपद्मासन ३ फोट ८ इंच ऊंची सप्तफणमण्डित प्रतिमा विराजमान है। यह अन्तरिक्षमें अधर ठहरी हुई है। केवल बायीं ओर थोड़ी-सी भूमिसे स्पर्श करती है। इससे नीचेके भोयरेमें चिन्तामणि पार्श्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। तीनों मंजिलोंमें सभी प्रतिमाएं दिगम्बराम्नायकी हैं। तथा इस मन्दिरमें श्री देवेन्द्रकीर्ति स्वामी. श्री वीरसेन स्वामी और श्री विशालकोति इन तीन दिगम्बर भट्टारकोंकी गद्दियां बनी हुई हैं। मन्दिरके बाहर सभामण्डपमें मूति विराजमान है। मन्दिरके निकट ही दिगम्बर जैनोंकी तीन धर्मशालाएँ हैं। कारंजा- सिरपुरसे मालेगांव (१० कि. मी.) लौटकर वहाँसे मगरुलपीर ६४ कि. मी., फिर वहाँसे कारंजा २० कि. मी. है । यह नगर भट्टारकोंका केन्द्र रहा है। यहां नगरमें श्री पाश्वनाथ दिगम्बर जैन सेनगण मन्दिर, श्री चन्द्रनाथ स्वामी काष्ठासंघ दिगम्बर जैन मन्दिर, श्री मूल संघ चन्द्रनाथ स्वामी बलात्कारगण दिगम्बर जैन मन्दिर, ये तीन प्रसिद्ध मन्दिर हैं। सेनगण मन्दिरमें ४०० वर्ष प्राचीन पंचकल्याणक चित्रावली अंकित है। यह कपड़ा ३ फीट २ इंच चौड़ा और ४१ फीट लम्बा है। यह चित्रकलाका अनुपम निदर्शन है। काष्ठासंघके मन्दिरमें लकड़ीका एक मण्डप बना हुआ है। यहां लकड़ीपर जो सूक्ष्म खुदाई की गयी है, वह बेजोड़ है। मूलसंघी मन्दिरमें हस्तलिखित ग्रन्थोंका अमूल्य भण्डार है। काष्ठासंघी मन्दिरमें पद्मावती देवी और पार्श्वनाथ भगवान् (भोयरेमें स्थित) की मूर्तियां बड़ी अतिशयसम्पन्न हैं। नगरके बाहर महावीर ब्रह्मचर्याश्रम गुरुकुल है। यहां भी जिनालय है तथा संग्रहालय भी बना हुआ है। इसमें कई मूर्तियां अति प्राचीन और कलापूर्ण हैं। यात्रियोंको ठहरनेकी सुविधा भी यहीं है। बाढौणा रामनाथ-कारंजासे बाढीणा २२ कि. मी. है। गांवमें श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है। इसमें भगवान् आदिनाथकी मूलनायक प्रतिमा सातिशय है। मन्दिर में भोयरा भी है। ठहरनेके लिए मन्दिरके अहातेमें बरामदा बना हुआ है। भातकुली-बाढोणासे कारंजा वापस आकर वहाँसे अमरावती होते हुए भातकुली जाना पड़ता है। कारंजासे अमरावती ६७ कि. मी. और वहाँसे भातकुली १६ कि. मी. है। यहां गांवमें
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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