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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ औरंगाबाद ( रजिया बेगमके मकबरे ) से ३ कि. मी. दूर निपट निरंजन गुफाएँ हैं । इनमें से एक गुफामें भगवान् अरनाथकी साढ़े छह फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। अन्य गुफाओंमें जैन देवियोंकी मूर्तियां हैं।
___ पैठण-औरंगाबादसे पैठण गोदावरीके तटपर ५१ कि. मी. प्राचीन नगर है। यह राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्षकी राजधानी था। अमोघवर्ष भगवान् जिनसेनाचार्यका सुयोग्य शिष्य था और जैन राजा था। इस नगरमें श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है। मूलनायक भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी बालुकामय श्यामवर्ण प्रतिमा है । यह अत्यन्त मनोज्ञ और अतिशय सम्पन्न है। यह भूगर्भगृहमें विराजमान है। यहां अनेक जैन और जैनेतर व्यक्ति कामना-पूतिके लिए आते हैं। मन्दिरके चारों ओर धर्मशाला है।
नवागढ़-पैठणसे पुनः औरंगाबाद लौटकर औरंगाबादसे दक्षिण मध्य रेलवेके मीरखोल स्टेशन ( १९४ कि. मी.) पहुंचते हैं। स्टेशनसे नवागढ़ ५ कि. मी. है। क्षेत्रके मैनेजरको पूर्व सूचना देनेपर बैलगाड़ीका प्रबन्ध हो जाता है।
___ श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पहले पूर्णा नदीके तटपर उखलदमें था। एक बार बाढ़में मन्दिर बह गया, किन्तु मूर्तियाँ बच गयीं। तब वर्तमान स्थानपर नवीन मन्दिर बनाकर उसमें मूर्तियाँ विराजमान कर दी। भगवान् नेमिनाथकी पौने चार फुट ऊँची अर्धपद्मासन प्रतिमा अतिशयसम्पन्न है।
मन्दिरके कम्पाउण्डमें धर्मशाला बनी हुई है।
जिन्तूर-मीरखोल स्टेशनसे ट्रेन द्वारा परभणी ( १६ कि. मी.) जाकर वहाँसे बस द्वारा ४२ कि. मो. जिन्तूर जाते हैं। पहले इस नगरका नाम जैनपुर था। हिजरी सन् ६३१ में सैदुल कादरी नामक मुस्लिम आक्रान्ताने इस नगरपर अधिकार करके नगरका नाम जिन्तूर रख दिया। उसने यहाँ अनेक जैन मन्दिरोंको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और कईको मसजिद बना दिया।
श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नगरसे दो मील दूर सहयाद्रि पर्वतपर अवस्थित है । यहां एक अहातेमें गुफामें अलग-अलग कक्षोंमें वेदियां बनी हुई हैं जिनमें विशाल तीर्थंकर प्रतिमाएं विराजमान हैं। भगवान् नेमिनाथकी कृष्णवर्ण मूलनायक प्रतिमा मनोज्ञ और अतिशयसम्पन्न है । भगवान् पाश्वनाथकी एक प्रतिमा एक जरा-से पाषाणके टुकड़ेपर टिकी हुई है। अतः इसे अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ कहते हैं।
इस अहातेके सामनेवाली पहाड़ीपर चन्द्रगुफा है। यहांकी मूर्तियां मुस्लिम कालमें गांवके मन्दिरमें भेज दो गयो थीं। नगरमें दो जैन मन्दिर हैं-साहूका मन्दिर और महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर । साहूके मन्दिरके बाहर धर्मशाला है।
शिरडशहापुर-श्री मल्लिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र शिरडशहापुरके लिए जिन्तूरसे बस जाती है। यह जिन्तूरसे ४५ कि. मी. है। नगरके मध्य मन्दिर बना हुआ है। भगवान् मल्लिनाथकी अर्धपद्मासन श्यामवर्ण प्रतिमा एक पृथक् वेदीपर विराजमान है। यह अत्यन्त सौम्य और चमत्कारी है। एक दूसरी वेदीपर भगवान् शान्तिनाथकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा भी अतिशयसम्पन्न कही जाती है।
असेगाँव-श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र शिरडशहापुरसे २४ कि. मी. है। वसुमत तक बस जातो है। शेष ८ कि. मी. पैदल या बैलगाड़ीसे जाना पड़ता है। क्षेत्रपर पाश्वनाथ भगवान्की चमत्कारी प्रतिमा है।