SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३९ परिशिष्ट-१ पड़े हुए हैं। एक मन्दिरमें १२वीं शताब्दीका शिलालेख है। सड़क किनारे एक शैडके नीचे ५ फीट ऊंची तीर्थंकर प्रतिमा रखी हुई है। मांगीतुंगी-गजपन्थ ( म्हसरुल ) से नासिक ६ कि. मी., नासिकसे सटाणा ८८ कि. मी. और सटाणासे ताराबाद २७ कि. मी. बस द्वारा जाकर ताराबादसे क्षेत्रके लिए बैलगाड़ीसे ६ कि. मी. जाना पड़ता है। कच्ची सड़क है। यह सिद्धक्षेत्र है। यहांसे रामचन्द्र, हनुमान्, सुग्रीव, सुडोल, गव, गवाक्ष, नील, महानील आदि ९९ करोड़ मुनि मुक्त हुए थे। बलभद्रने अपने मृत अनुज नारायण कृष्णके शवका दाह करके यहीं मुनि-दीक्षा ली थी। मांगी और तुंगी एक पर्वतको दो चोटियाँ हैं। पहाड़पर ऊपर जानेके लिए कुल २९६० सीढ़ियाँ हैं । ऊपर जाते हुए बायीं ओरको मांगी शिखरके लिए और दायीं ओरको तुंगी शिखरके लिए मार्ग गया है। मार्गमें शुद्ध-बुद्धकी गुफाएं, मांगी शिखरपर ९ गुफाएं और तुंगी शिखरपर २ गुफाएँ बनी हुई हैं। इन गुफाओंको संवार दिया गया है। इन गुफाओंमें और दोवारोंमें तीर्थंकरों, अहंन्तों और मुनियोंकी ६०० मूर्तियां बनो हुई हैं। तलहटीमें ३ मन्दिर हैं। इन मन्दिरोंके चारों ओर धर्मशाला बनी हुई है। दहीगाँव-मांगीतुंगीसे सटाणा और वहांसे मनमाड़ बस द्वारा चलकर वहांसे रेल द्वारा पुणे (पूना) और पुणेसे लोणन्द या नोरा रेलद्वारा जाकर वहांसे नातेपुत्ते बस द्वारा जाना चाहिए। नातेपुत्तेसे दहीगांव बालचन्दनगर जानेवाली बससे जाना पड़ता है। नातेपुत्तेसे यह स्थान ६ कि. मी. है। यह क्षेत्र गांवके मध्यमें है। यहां एक मन्दिरमें ऊपर नीचे १२ वेदियां हैं। मुख्य वेदीमें भगवान् महावीरको साढ़े पांच फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। इसके पार्श्ववर्ती वेदीमें भगवान् महावीरको प्रतिमा तथा ब्र. महतीसागरके चरण-चिह्न विराजमान हैं। कहते हैं, इन्हीं चरणोंके आगे भक्त लोग मनौतियां मनाते हैं और इन्हीं के कारण यह स्थान अतिशय क्षेत्र कहलाता है। मन्दिरके आगे एक विशाल मानस्तम्भ है। निकट ही एक जैन धर्मशाला है। इसमें जैनगुरुकुल भी चल रहा है। कुण्डल --यहाँसे लौटकर नातेपुत्ते होते हुए लोणन्द वापस लौटना पड़ता है। वहांसे ट्रेन द्वारा किर्लोस्करबाडी १४६ कि. मी. जाकर वहाँसे बस द्वारा ५ कि. मी. कण्डल जाते हैं। मन्दिर गांवमें है । जैन धर्मशाला है। गांवका मन्दिर कलिकुण्ड पार्श्वनाथ कहलाता है। इसमें संवत् ९६४ की पाश्वनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा है। गांवसे २ कि. मी. दूर पर्वतपर झरी पार्श्वनाथका मन्दिर है । यह गुहामन्दिर है। एक चबूतरेपर भगवान् पार्श्वनाथ विराजमान हैं। दायीं ओर पद्मावती देवीकी चतुर्भुजी पाषाण-प्रतिमा है । भगवान्के ऊपर तथा गुफामें निरन्तर पानी झड़ता रहता है। इस गुफामें बायीं ओर एक जल-कुण्ड बना हुआ है। इस पहाड़ोसे लगभग ४ कि. मी. दूर दूसरी पहाड़ीपर एक मण्डपमें चरण-चिह्न विराजमान है। इनके सम्बन्धमें अनुश्रुति है कि यहाँ भगवान् महावीरका समवसरण आया था। इससे कुछ आगे एक जिनालय है। इसमें सप्तफणी पार्श्वनाथ विराजमान हैं। ये गिरि पाश्वनाथ कहलाते हैं। बाहुबली-यहाँसे पुनः किर्लोस्करबाड़ी आकर वहाँसे रेल द्वारा हातकलंगड़े उतरना चाहिए। वहाँसे ६ कि.मी. बाहबली क्षेत्र है। नियमित बस-सेवा है। सडकके किनारे विशाल प्रवेश-द्वार बना हुआ है। उसमें प्रवेश करनेपर धर्मशालाएँ तथा गुरुकुल भवन बने हुए हैं। इन भवनोंके निकट ही जिनालयका मुख्य प्रवेश-द्वार है। प्रवेश करते ही सामने एक उन्नत चबूतरेपर बाहुबली स्वामीकी २८ फीट ऊंची श्वेत प्रतिमा खड़ी है। इसी परिसरमें अनेक मन्दिर और क्षेत्रोंकी प्रतिकृतियाँ बनी हुई हैं। इन मन्दिरोंके पृष्ठ भागसे पहाड़ीपर जानेके लिए सोपान-मार्ग
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy