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________________ ३३८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिर हैं। चिन्तामणि पाश्वनाथकी प्रतिमा रामकुण्डमें-से निकली थी। कहते हैं, पाश्वनाथ मन्दिरमें ही भगवत्पुष्पदन्त और भगवद्भूतबलिने धरसेनाचार्यसे सिद्धान्त ग्रन्थोंका अध्ययन करनेके बाद प्रथम चातुर्मास किया था। इस मन्दिरमें एक मुनिकी प्राचीन प्रतिमा है जो धरसेनाचार्यकी कही जाती है। यहाँका मुख्य मन्दिर महावीर मन्दिर है। महावीर और आदिनाथ मन्दिर काष्ठासंघके हैं, पाश्र्वनाथ मन्दिर मूलसंघका और नेमिनाथ मन्दिर नवग्रह संघका है। सजोद-यह अतिशय क्षेत्र है। सजोद अंकलेश्वरसे पश्चिम में ८ कि. मी. दूर है। बसें जाती हैं। नगरके मध्यमें दिगम्बर जैन मन्दिर बना हुआ है। इसमें भूगर्भगृहमें भगवान् शीतलनाथको अत्यन्त मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा भी रामकुण्डसे प्राप्त हुई थी। प्रतिमा सातिशय है । नगरमें जैनोंका कोई घर नहीं है। __ सूरत-अंकलेश्वरसे सूरत रेल द्वारा ५० कि. मी. है। शहर में कई जिनालय हैं। शहरसे ३ कि. मी. दर कतार गांवमें विद्यानन्द क्षेत्र है जहाँ प्रसिद्ध भद्रारक विद्यानन्द तथा भट्टारकों और मुनियोंके ८२ चरण बने हुए हैं। एक मानस्तम्भ भी है। ऊपर जानेके लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यहाँ धर्मशाला भी है। महुआ-श्री विघ्नहर पाश्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महुआ सूरतसे सड़क मार्ग द्वारा ४४ कि. मी. दूर है और पूर्णा नदीके तटपर अवस्थित है। भूगर्भ-गृहमें भगवान् पार्श्वनाथकी श्यामवर्ण प्रतिमा विराजमान है। यह अत्यन्त अतिशयसम्पन्न है। यहां जैनोंके अतिरिक्त अनेक हिन्दू पूर्णा नदीमें स्नान करके गाजे-बाजेके साथ मनौती मनानेके लिए आते हैं और फल, नारियल तथा चाँदीकी वस्तुएं चढ़ाते हैं। यहां एक मन्दिर चन्द्रप्रभ भगवान्का है जिसमें प्राचीन मन्दिरकी अनेक प्रतिमाएं विराजमान हैं । मन्दिरके सामने धर्मशाला है। इसमें प्राचीन दारुलेख सुरक्षित हैं जो दर्शनीय हैं। . बम्बई-सूरतसे बम्बई जाना चाहिए । बम्बईमें सी. पी. टेंकपर हीराबाग दिगम्बर जैन धर्मशाला है। उसीके निकट सुखानन्द दिगम्बर जैन धर्मशाला है। हीराबाग धर्मशालामें ही भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटोका कार्यालय है । बम्बईमें भूलेश्वर, कालबादेवी रोड, गुलालबाड़ी, बोरीबलीमें भी दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। चौपाटीपर सेठ घासीराम पूनमचन्दका काँचका चैत्यालय तथा सेठ हीराचन्द गुमानजीके चैत्यालय भी दर्शनीय हैं। पोदनपुर (बोरीबली) में नेशनल पार्कमें तीन मूर्ति मन्दिरने क्षेत्रका रूप ले लिया है। यहां भगवान् आदिनाथकी ३१ फोटकी तथा भरत और बाहुबली की २८-२८ फीट ऊँची मूर्तियां विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त २४ वेदियोंमें २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तियां विराजमान हैं। गजपन्था-बम्बईसे नासिक आकर नासिकसे डिण्डोरी रोडपर ६ कि. मी. दूर म्हसरुल गांव है। यहीं सड़क किनारे दिगम्बर जैन धर्मशाला और मन्दिर है। धर्मशालासे लगभग १ मील दूर दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र गजपन्था है। यहाँ तलहटीमें एक मन्दिर है। लगभग ५०० सीढ़ियां चढ़कर पर्वतपर गुहामन्दिर तथा अन्य मन्दिर हैं। गुहामन्दिरमें भगवान् पार्श्वनाथकी १० फीट ४ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। यहाँसे बलभद्र आदि ८ करोड़ मुनि मुक्त हुए हैं । ये गुफाएँ चामर लेनी कहलाती हैं। नासिकमें १३८१ टकसाल लेन, दूधनाका त्र्यम्बक दरवाजामें दिगम्बर जैन धर्मशाला है। नासिक रोड स्टेशनसे नासिक शहर ८ कि. मी. है। अंजनेरी क्षेत्र-गजपन्थसे त्र्यम्बक रोडपर २७ कि. मी. दूर अंजनेरी क्षेत्र है। यहाँ पर्वतपर दो गुफाओंमें ६ मूर्तियाँ हैं। प्राचीन कालमें गांवमें १४-१५ जैन मन्दिर थे, जो अब ध्वस्त अवस्थामें
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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