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________________ . परिशिष्ट-१ ३३७ किला और अनेक श्वेताम्बर मन्दिर मिलते हैं। पहली टोंकसे ९०० सीढ़ियां चढ़नेपर अनिरुद्धकुमार की टोंक मिलती है। इसके निकट अम्बा देवीका मन्दिर है । इसके ऊपर अब हिन्दुओंका अधिकार है। दूसरी टोंकसे ७०० सीढ़ियां चढ़नेपर शम्बुकुमारकी तोसरी टोंक मिलती है। इससे पाँचवीं टोंक तक २५०० सीढ़ियां हैं। चौथी टोंक प्रद्युम्नकुमारकी है। इसके लिए सीढ़ियां नहीं हैं । अतः इसकी चढ़ाई कठिन है। पांचवीं टोंक भगवान् नेमिनाथकी है। यहां हिन्दू साधु बैठे रहते हैं। ___कुल सीढ़ियोंकी संख्या ८५०० + १४९९ कुल ९९९९ है। इस क्षेत्रसे भगवान् नेमिनाथ आदि मुक्त हुए थे, अतः यह सिद्धक्षेत्र है। सहस्राम्र वनको वापसीमें जाना चाहिए और सीढ़ियों द्वारा ही वहाँको यात्रा करनी चाहिए। यहाँ डोलीका भाड़ा ५५ किलो तक ९५ रुपये तथा सहस्राम्र वनके ४० रुपये हैं। आगेका भाड़ा इस प्रकार है ५५ किलोसे ८० किलो तक १५५.०० सहस्राम्र वन ५०.०० ८० , १०० , २५०.०० ७०.०० बच्चे १ माहसे ५ वर्ष तक १८.०० ४.०० जूनागढ़ शहरमें भी ऊपर कोटके पास दिगम्बर धर्मशाला और मन्दिर है। सोनगढ़-जूनागढ़से सोनगढ़के लिए सीधी बस-सेवा है। सोनगढ़ श्री कानजी स्वामीके कारण तीर्थके समान बन गया है। स्वामीजी वर्ष में ९ माह यहां रहते हैं। यहांका श्री महावीर कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन परमागम मन्दिर दर्शनीय है । इसके निर्माणमें २५ लाख रुपया व्यय हुआ है। इसमें कुन्दकुन्दाचार्यके समयसार, नियमसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और अष्टपाहुड ग्रन्थोंको ४४२' के ४४८ पाटियोंपर उत्कीर्ण कराया गया है। इसके अतिरिक्त यहां सीमन्धर स्वामी दिगम्बर जैन मन्दिर, समवसरण मन्दिर, स्वाध्याय मन्दिर तथा विशाल मानस्तम्भ है। यहाँ ठहरनेके लिए दो धर्मशालाएं और गेस्ट हाउस हैं। पालीताणा-सोनगढ़से पालीताणा २२ कि. मी. है । बसें जाती हैं। भैरवपुरामें दिगम्बर जैन धर्मशाला है। शहरमें एक दिगम्बर जैन मन्दिर है। शहरसे शत्रुजय तीर्थ ढाई मील है। तांगे जाते हैं । इस पहाड़पर श्वेताम्बरोंके ३५०० जैन मन्दिर हैं। उनके मध्यमें एक दिगम्बर जैन मन्दिर है । यहांसे तीन पाण्डव और ८ करोड़ मुनि मुक्त हुए थे, अतः यह सिद्धक्षेत्र है। घोघा-पालीताणासे भावनगर २९ कि. मी. है तथा भावनगरसे घोघा लगभग १४ कि. मी. है। बसें जाती हैं। यहां एक कम्पाउण्डमें दो मंजिले दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। नगर खम्भातकी खाड़ीके तटपर है । अतः समुद्रकी खारी हवाओंके कारण मूर्तियोंपर चित्तियां पड़ गयी हैं। एक श्वेत प्रतिमा अत्यन्त अतिशयसम्पन्न है। लांछन और लेख न होनेके कारण इसे चतुर्थकालकी कहा जाता है। पावागढ़-भावनगरसे अहमदाबाद होते हुए बड़ोदा पहुंचकर वहाँसे बस द्वारा पावागढ़ जा सकते हैं । यह सिद्धक्षेत्र है। यहाँसे लवणांकुश, मदनांकुश आदि साढ़े पांच करोड़ मुनि मुक्त हुए थे। बस स्टैण्डसे एक कि. मी. दूर दिगम्बर जैन धर्मशाला है। धर्मशालाके अन्दर एक जैन मन्दिर और मानस्तम्भ है तथा एक मन्दिर धर्मशालाके बाहर है। महावीर मन्दिरमें सम्भवनाथ भगवान्की एक प्रतिमा संवत् १२४५ की है। धर्मशालासे क्षेत्र लगभग १० कि. मी. है। इसमें आधा मार्ग पक्की सड़कका है, शेष मार्ग कच्चा है । पहाड़पर ७ जिनालय बने हुए हैं। अनेक मन्दिरोंके भग्नावशेष पड़े हुए हैं। अंकलेश्वर-बड़ौदासे रेल द्वारा अंकलेश्वर ७९ कि. मी. है। नगरके मध्यमें दिगम्बर जैन धर्मशाला है। यहां चिन्तामणि पाश्र्वनाथ, नेमिनाथ, आदिनाथ और महावीर मन्दिर ये चार ४३
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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