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________________ ३४० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ है। यहां ४ प्राचीन मन्दिर, मानस्तम्भ और मुनि बाहुबलीके चरण मन्दिर बने हुए हैं । मन्दिरोंका पुनर्निर्माण हो रहा है। यहांका बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम प्राचीन और आधुनिक शिक्षण पद्धतिका अपूर्व संगम है। कोल्हापुर-बाहुबली क्षेत्रसे पुनः हातकलंगड़ा वापस आकर वहांसे २१ कि. मी. रेल या बस द्वारा कोल्हापुर जा सकते हैं। यहां शाहूपुरोका जैन मन्दिर, गंगावेश डुआडंका पार्श्वनाथ मानस्तम्भ जैन मन्दिर, नेमिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, मंगलवार पेठके मन्दिर दर्शनीय हैं। गंगावेश मन्दिरमें १००० वर्ष प्राचीन शिलाहारवंशीय दो शिलालेख हैं। नेमिनाथ मन्दिरके सम्बन्धमें अनुश्रुति है कि यहोंपर षट्खण्डागमका अन्तिम भाग लिखा गया था। यहाँपर भट्टारक लक्ष्मीसेन और भट्टारक जिनसेनके भट्टारकपोठ हैं। लक्ष्मीसेन मठ शुक्रवार पेठमें है। यहाँ एक पृथक् मण्डपमें आदिनाथ भगवान्की २८ फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा दर्शनीय है। कुन्थलगिरि-कोल्हापुरसे मिरज होते हुए येडशी या कुडुवाड़ी स्टेशन पर उतरना पड़ता है। येडशोसे यह क्षेत्र सड़क-मार्गसे ४० कि. मी. तथा कुडुवाड़ीसे ५८ कि. मी. है। जो बसें भूम नामक स्थानको जाती हैं, वे सभी कुन्थलगिरिको धर्मशालाके सामने रुकती हैं। जो भूम होकर नहीं जातीं, वे सरमगुण्डी (कुन्थलगिरि फाटा) उतारती हैं । वहाँसे कुन्थलगिरि ३ कि. मी. दूसरी बससे जाना पड़ता है । कुन्थलगिरि सिद्धक्षेत्र है। यहांसे कुलभूषण-देशभूषण नामक मुनिराज मुक्त हुए हैं। पहाड़के ऊपर पांच मन्दिर हैं तथा तलहटीमें भी पाँच मन्दिर हैं। पहाड़के ऊपर वह स्थान भी दर्शनीय हैं जहां आचार्य शान्तिसागरजी महाराजने सल्लेखना द्वारा ३६ दिन बाद समाधिपूर्वक देहत्याग किया था। यहाँ एक गुरुकुल भी है तथा विशाल धर्मशाला है। उस्मानाबाद (धाराशिवगुफाएँ)-कुन्थलगिरिसे बस द्वारा ५२ कि. मी. उस्मानाबाद जाते हैं । यहां दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। इनमें एक मन्दिरमें धर्मशाला है। यहांसे लगभग ५ कि. मो. दूर धाराशिवको गुफाएं हैं जिन्हें लयण कहते हैं। लगभग ३ कि. मी. तक तांगा जा सकता है, शेष मार्ग पैदल चलना पड़ता है । पुजारी या किसी व्यक्तिको साथमें ले जाना चाहिए। यहाँ उत्तर और दक्षिणकी पहाड़ियोंपर ४-४ गुफाएँ बनी हुई हैं। ये सभी पुरातत्त्व विभागके आधीन हैं। उत्तरकी गुफाओं और उनकी मूर्तियोंकी दशा अपेक्षाकृत अच्छी है और विशाल हैं। गुफाओंके अन्दर कोठरियां बनी हुई हैं और जल टपकता रहता है। इनमें भगवान् पाश्वनाथकी ६ फीट ६ इंच अवगाहनावाली अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं। उनके दोनों पावों में अलंकृत चमरेन्द्र हैं। जैन शास्त्रोंके अनुसार इनमें से तोन गुफाओं और पाश्वनाथ-मूर्तियोंका निर्माण करकण्डु नरेशने कराया था। किन्तु पुरातत्त्ववेत्ता इनका काल ५वीं से ८वीं शताब्दी मानते हैं। तेर-उस्मानाबादसे तेर १९ कि. मी. है। बस जाती हैं । यहां गांवके बाहर, वाटर वर्क्सके सामने खेतोंके बीच में जैन मन्दिर बना हआ है। मन्दिर सडकसे लगभग २ फलांग दर है। एक अहातेके भीतर दो मन्दिर बने हुए हैं, जिनमें अनेक प्राचीन मूर्तियां और चरण विराजमान हैं। इस क्षेत्रके सम्बन्धमें एक अनुश्रुति प्रचलित है कि यहां भगवान महावीरका समवसरण आया था। अहातेके बाहर एक प्राचीन मन्दिर, छतरी और बावड़ी बनी हुई है। यहां धर्मशाला नहीं है, अतः उस्मानाबादमें ही ठहरना चाहिए। शोलापुर-उस्मानाबादसे शोलापुरके लिए ६५ कि. मी. सीधी बस-सर्विस है। यहाँ दिगम्बर जैन श्राविकाश्रमके सामने सेठ नेमचन्द हीराचन्दजीकी विशाल एवं स्वच्छ जैन धर्मशाला है। इसके अतिरिक्त एक धर्मशाला शुक्रवार पेठमें तथा दूसरी धर्मशाला कासारि (चिन्तामणि
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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