________________
महाराष्ट्र दिगम्बर जैन तीर्थ
३२७ हैं। इनके ऊपर छत्रोंकी संयोजना है। ऊपर दो गज सूंड़ोंमें कलश लिये हुए अभिषेक करते दीख पड़ते हैं।
२६. पाश्वनाथ मन्दिर-यह बड़ा या मुख्य मन्दिर कहलाता है। मन्दिरके मध्यमें मण्डप बना हुआ है । सामने वेदीपर भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्ण वणं ४ फुट ३ इंच उत्तुंग भव्य मूर्ति है। फलकमें मूर्तिके सिरपर छत्र है, दोनों ओर गज बने हुए हैं। दोनों पार्यों में ३-३ पद्मासन मूर्तियां हैं । माला हाथोंमें लिये हुए गन्धर्व और चमरेन्द्रोंको पारम्परिक संयोजना है । मूर्तिका लेप कहींकहींसे छूट गया है । लेख नहीं है।
__ इसके आगे संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथकी श्वेतवर्ण मूर्ति है। पीछे दीवारमें २३ मूर्तियाँ हैं । बायीं और दायीं ओर दीवारमें दो वेदियोंमें ४-४ पद्मासन तीर्थकर मूर्तियां हैं तथा मध्य दीवार-वेदीमें कृष्ण वर्णके सहस्रफण पाश्वनाथ हैं। दो सर्प चरण-चौकीसे लम्बायमान होकर घुटनों तक अंकित हैं । दायीं ओर मध्य वेदीमें चन्द्रप्रभकी संवत् १६०२ की श्वेत वर्ण प्रतिमा है। . बायीं ओरकी तीन दीवार-वेदियोंमें क्रमशः प्राचीन मूर्ति, क्षेत्रपाल और २ मूर्तियाँ विराजमान हैं । दायीं ओरकी दीवार-वेदीमें संवत् १५४६ में प्रतिष्ठित गेरुआ वर्णकी पाश्वनाथ मूर्ति है । एक अन्य आलेमें क्षेत्रपाल आसीन हैं।
___ मन्दिरके प्रवेश-द्वारके ऊपर पद्मासन अर्हन्त प्रतिमा बनी हुई है। द्वारके बायीं ओर श्वेत पाषाण-फलकपर संवत् १५४८ की प्रतिष्ठित पंच बालयतिकी प्रतिमा है तथा दायीं ओर अम्बिका देवीकी मूर्ति है।
२७. चन्द्रप्रभ मन्दिर-संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित २ फुट २ इंच ऊंची चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण मूर्ति है।
२८. चन्द्रप्रभ मन्दिर-इस मन्दिरमें चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है। अवगाहना १ फुट ६ इंच है तथा प्रतिष्ठा-काल संवत् १६९६ है ! . २९. पार्श्वनाथ मन्दिर-भगवान् पाश्वनाथकी १ फुट २ इंच ऊँची और संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित पद्मासन मूर्ति है।
३०. ऋषभदेव मन्दिर-वीर संवत् २४६९ में प्रतिष्ठित और ३ फुट ६ इंच उन्नत ऋषभदेवकी श्वेत वर्ण मूर्ति है। बायीं ओर चबूतरेवाली वेदीमें १३ कृष्ण पाषाणकी तथा दायीं ओर ८ श्वेत और १ कृष्ण पाषाणकी मूर्तियाँ हैं।
मन्दिर क्रमांक २७ से ३० तकका एक ग्रुप है। यहाँसे १०५ सीढ़ियां चढ़कर मन्दिर नं. ३१ मिलता है।
३१. यह एक गुमटी है। इसमें ३ चरण-चिह्न विराजमान हैं। ३२. इसमें विदेह क्षेत्रके २० तीर्थंकरोंके चरण-चिह्न बने हुए हैं। ३३. इस कमरेमें ५ चरण-चिह्न बने हुए हैं। ३४. इस कमरेमें ५ चरण-चिह्न उत्कीर्ण हैं। ३५. इसमें भी ५ चरण-चिह्न अंकित हैं। यहाँ एक दालानमें १८ चरण-चिह्न बने हुए हैं।
क्रम संख्या ३१ से ३५ तक प्रपातके ऊपरी भागपर स्थित हैं। इनमें-से ३१ से ३३ तक जल-प्रपातके इस किनारेपर हैं तथा ३४ और ३५ जल-प्रपातके दूसरी ओर हैं। ये दोनों एकत्र हैं
और उत्तराभिमुखी हैं। इन दोनों समूहोंके मध्य पर्वतमें-से आनेवाली जलकी कई धाराएं इस स्थानपर एकत्र होकर जल प्रपातके रूपमें १०० फुट नीचे गिरती हैं।