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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थं
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हुए बैठे हैं। मूर्तियोंके तीनों ओरके स्तम्भोंपर १ -१ अर्हन्त प्रतिमा है। दायीं ओरके द्वाराकारके ऊपर दो पद्मासन मूर्तियाँ बनी हैं। उससे नीचे दो गज भगवान्का अभिषेक करते दीख पड़ते हैं । इसी प्रकार बायीं ओर भी अंकन है । मध्य दीवारके ऊपर खड्गासन मूर्ति है तथा दोनों द्वारोंके ऊपर पद्मासन मूर्तियाँ हैं । शिखरके स्थानपर गुफा बनी हुई है । कहते हैं, गुफा में से बहिरम तक मार्ग जाता है । बहिरम परतवाड़ा - बेतूल रोडपर खरपीसे ३ कि. मी. दूर । कहा जाता है, इसी स्थानपर ऐल श्रीपाल और अब्दुल रहमान परस्पर लड़ते हुए सन् १००१ में मारे गये थे ।
यह मन्दिर सबसे प्राचीन है । विश्वास किया जाता है, इसका निर्माण ऐल श्रीपालने कराया था । मण्डपके फर्शपर चौपड़ बनी हुई है ।
इस मन्दिर में प्रवेश करनेपर मन्दिरके मध्य में चार स्तम्भोंपर आधारित मण्डप बना हुआ है । उसके चारों ओर परिक्रमा पथ बना है। सामने पश्चिमकी दीवार में वेदी बनी हुई है । इसमें २ फुट ९ इंच आकारके चौकोर फलकमें एक पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है जो फलकसे पृथक् लगती है, किन्तु फलक में ही उत्कीर्ण है । उसमें ऊपर-नीचे दो पद्मासन और दो खड्गासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस वेदी के ऊपर तथा इधर-उधर पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इसके बायीं और दायीं ओर दीवारपर अलग कोष्ठकों में १४- १४ मूर्तियाँ बनी हुई हैं ।
दक्षिण दीवार में तीन कोष्ठक बने हुए हैं। पहले कोष्ठक में एक छोटी मूर्ति उत्कीर्ण है । मध्य कोष्ठक में २ फुट ६ इंच ऊंची पद्मासन मूर्ति है तथा तीसरे कोष्ठकमें १४ मूर्तियाँ बनी हुई हैं ।
उत्तरकी दीवार में दो कोष्ठक बने हुए हैं। इनमें पहले पैनलमें १४ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं तथा दूसरे कोष्ठक में वेदी में २ फुट ६ इंच उन्नत पद्मासन मूर्ति विराजमान है । इसके खम्भों में भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।
इस प्रकार दीवार मूर्तियोंकी कुल संख्या ७२ है जो तीन चौबीसी हैं। यह मन्दिर १६ फुट ६ इंच लम्बा और इतना ही चौड़ा है। इसका निर्माण-काल सम्भवतः १०वीं शताब्दी है ।
इस मन्दिरके सामने पड़े हुए पाषाणों पर चारों ओर केशरकी बूँदें पड़ी हुई हैं । मन्दिर नं. ५ से ९ तक मन्दिरोंका एक ग्रुप है । इसके नीचे प्राचीन धर्मशाला बनी हुई है । मन्दिर नं. १० से ११वें मन्दिर तक जानेके लिए नालेके ऊपर बने हुए पुलपर-से जाना पड़ता है । यहाँका दृश्य अत्यन्त मनोहर है। नाला कलकल ध्वनि करता हुआ बहता है। उसके दोनों ओर सघन वृक्षराजि हैं ।
मन्दिर नं. ११ से २६ तक मन्दिरोंका एक ग्रुप है । इसके आँगनमें प्राचीन कालमें एक मार्ग सुरंग के रूपमें बहिरम तक जाता था ।
११. सुपार्श्वनाथ मन्दिर - भगवान् सुपार्श्वनाथकी २ फुट ४ इंच अवगाहनाकी संवत् १९७० में भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित कृष्ण वर्णं पद्मासन मूर्ति है । चरण - चौकी पर स्वस्तिक चिह्न अंकित है । यह मन्दिर पश्चिमाभिमुखी है और अठकोण है ।
१२. शान्तिनाथ मन्दिर - शान्तिनाथ भगवान्की बादामी वर्णकी १ फुट ३ इंच उन्नत वीर संवत् २४६३ में प्रतिष्ठित पद्मासन मूर्ति है । इसके दोनों ओर १ फुट १ इंच ऊंचे श्वेत पाषाण में संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमाएँ हैं ।
इनके अतिरिक्त यहाँ ८ मूर्तियाँ और चरणचिह्न हैं । इनमें बायीं ओरकी वेदीमें एक खड्गासन और ३ पद्मासन मूर्तियाँ हैं । इनमें एक फलकमें पंच बालयतिकी मूर्तियाँ हैं । इसी