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________________ ३२२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्रको प्राचीनता यह क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन है। साहित्यिक साक्ष्य हमें कुन्दकुन्दाचार्य तक ले जाते हैं। प्राकृत निर्वाण-भक्तिमें, जो आचार्य कुन्दकुन्दने रची थी, इस क्षेत्रका उल्लेख है। किन्तु ताम्रलेख और इतिहाससे यह क्षेत्र इससे भी अधिक प्राचीन सिद्ध होता है। अचलापुरीमें प्राप्त ताम्रपटसे ज्ञात होता है कि इस पर्वतपर मगध सम्राट् श्रेणिक बिम्बसारने गुहा-मन्दिरका निर्माण कराया था। श्रेणिकका काल ढाई हजार वर्ष पूर्व है। वे भगवान महावीरके समकालीन थे। इसके पश्चात् ऐलिचपुर नरेश ऐल श्रीपालने इस क्षेत्रको पुनः प्रकाशमें लाकर इसकी प्रसिद्धि की। उसने मन्दिर और मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा भी की। इस पर्वतपर ५२ जिनालय हैं। ये अधिकांशतः वि. सं. १५४५ ( सन् १४८८) से वि. सं. १९५० ( सन् १८९३ ) के मध्य निर्मित हुए हैं। क्षेत्रका स्वामित्व ___ यह क्षेत्र सम्पूर्णतः दिगम्बर जैन समाजका है। इसपर किसी भी अन्य सम्प्रदायका अधिकार नहीं है। पहले यहांके जमींदारको मालगुजारी देनी पड़ती थी। सन् १९२८ में श्री नत्थुसा पासुसा अमरावतीने बीस हजार रुपये, श्री मोती संगई अंजन गांवने दस हजार रुपये और श्री हीरालाल चम्पालाल ऐलिचपुरने पन्द्रह हजार रुपये देकर यहाँको जमींदारी अपने नामोंसे खरीद ली। श्री नत्थुसा और श्री मोती संगईने अपना हक मुक्तागिरि क्षेत्रके नाम कर दिया। इसी प्रकार श्री हीरालाल चम्पालालने १९५० में अपने मालिकाना अधिकार क्षेत्रको दे दिये । तबसे क्षेत्रको जमीन और पहाड़के ऊपर यहाँकी ट्रस्ट कमेटीका सम्पूर्ण अधिकार है। इतिहासके आलोकमें __इतिहासमें मुक्तागिरिके सम्बन्धमें कोई विवरण नहीं आता, किन्तु जिस ऐल राजाने इस क्षेत्रको प्रसिद्धि दी, मूर्ति और मन्दिर बनवाये, उसके सम्बन्धमें इतिहास ग्रन्थोंमें विशेष जानकारी दी गयी है। ऐल जैन राजा था। उसके राज्यको राजधानीका नाम ऐलिचपुर था, जो उसीके नामपर पड़ गया था। अमरावती जिला गजेटियरमें इस राजाके सम्बन्धमें इस प्रकार जानकारी दी गयी है। "एक बार राजा ऐल अपनी धर्म-सभामें बैठा हुआ था। इस सभामें दूर-दूरसे विभिन्न धर्मोंके प्रतिनिधि भाग लेने आये हुए थे। राजाने वाद-विवादमें एक मुस्लिम फकीरको पराजित कर दिया। फकीरने अपनी पराजयसे क्षुब्ध होकर यह समाचार गजनीके तत्कालीन बादशाह रहमानके पास पहुंचा दिया। उस समय रहमानका निकाह हो रहा था और वह दूल्हेके वेषमें बैठा हुआ था। वह फौजें लेकर तत्काल चल दिया और ऐलिचपुरपर धावा बोल दिया। राजा ऐलको उसके अभियानका समाचार पहले ही मिल चुका था, अतः वह पहलेसे सावधान था। उसने बहुमूल्य हीरे, जवाहरात और जैन मन्दिरोंकी मूल्यवान् मूर्तियाँ राजधानीसे हटाकर मुक्तागिरि क्षेत्रको गुआओंमें छिपा दीं। दोनों सेनाओं और दोनों वीरोंमें भयानक युद्ध हुआ। हजारों शत्रु मारे गये। अन्तमें लड़ते-लड़ते दोनों वीर भी वीरगतिको प्राप्त हुए।" रहमान शादी छोड़कर दूल्हाके वेषमें ही लड़ने आया था, इसीलिए उसका नाम दुला रहमान पड़ गया। जिस स्थानपर शत्र सेना मारी गयी, उस स्थानका नाम गंज शहीद पड गया, जो ऐलिचपूरमें अब भी है। जहाँ ऐल श्रीपाल और अब्दुल रहमान मारे गये, वह स्थान बहरम है जो खरपीसे २ मील दूर है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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