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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ
३२१ इसमें भट्टारक ज्ञानसागरने बताया है कि सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरके ऊपर जिनालयोंकी दो पंक्तियां हैं। धर्मशालाएं हैं। मध्यमें जल-प्रवाह है। वहाँ यात्राके निमित्त पांच दिन तक ठहरते हैं।
__ऐसा लगता है कि इन भट्टारकके कालमें मुक्तागिरिकी यात्रामें पांच दिन तक ठहरनेका रिवाज रहा होगा।
ब्र. धवजी ( ईसाकी सत्रहवीं शताब्दीका उत्तरार्ध) काष्ठासंघके भट्टारक सुरेन्द्रकीर्तिके शिष्य थे। उन्होंने हिन्दी-संस्कृत मिश्रित भाषामें मुक्तागिरि जयमाला लिखी है। उसमें उन्होंने
ताया है कि, "वहां शिखरबद्ध मन्दिर बने हुए हैं। उनपर ध्वजाएं फहरा रही हैं, घण्टानाद हो रहा है। देव, विद्याधर और मनुष्य घण्टानाद कर रहे हैं, कोई पूजन कर रहे हैं। स्त्रियाँ नृत्य विनोद कर रही हैं। यहां चतुर्विध संघ अपने-अपने काममें लगा हुआ है। देवगण आकाशसे पुष्पवर्षा और जय-जयकार कर रहे हैं । यहां आकर भक्तोंकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।"
राघव कविने सिद्धक्षेत्र 'मुक्तागिरि आरती' मराठी भाषामें लिखी है। इसमें यहांके मूलनायक पाश्र्वनाथकी आरती की गयी है। इसमें बताया है
'औठ कोडि मुनि मुक्ति पदासी सिद्ध जाले जान ।
उद्धरिला तो मेढा गिरवर जाला पावन ।' अर्थात् यहाँसे साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्तिको गये। इस क्षेत्रके प्रभावसे मेढ़ाका उद्धार हो गया।
इस प्रकार सभीने इस क्षेत्रको निर्वाण-क्षेत्र स्वीकार किया है, किन्तु यहाँ किन प्रमुख और उल्लेखनीय मुनियोंको मुक्ति-लाभ हुआ, इसका उल्लेख कहीं देखनेमें नहीं आया। अतिशय
इस क्षेत्रपर प्राचीनकालमें अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएं घटित होती रही हैं। यहांके मन्दिरोंके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती इस प्रकार प्रचलित है-'एक गड़रिया इस पहाड़पर भेड़ें चराया करता था। उसके पास १००० भेड़-बकरी थीं। एक दिन शामको आधी भेड़ें चरकर आयीं, शेष नहीं आयीं। इसलिए गड़रिया उनको खोजमें निकला। किन्तु वह बड़ी देर तक तो पहाड़ीपर चढ़ नहीं सका । जब बहुत प्रयत्न करनेपर वह चढ़ा तो उसने देखा कि भेड़-बकरियां एक मन्दिरके चारों ओर चर रही हैं। उसने मन्दिरमें जाकर सोनेकी एक मूर्ति देखी। उस समय तक उस मन्दिरका पता किसीको नहीं था। जब जेनोंको इस मन्दिरका पता लगा तो उन्होंने यहां आना प्रारम्भ किया और इसे तीथं मानना शुरू कर दिया। इसके बाद और भी मन्दिर बनाये गये।
लोग कहते हैं कि जो यूरोपीयन अफसर मुक्तागिरि आता है, जिलेमें रहते हुए उसकी पदोन्नति बहुत जल्दी हो जाती है।
ऐसा भी कहा जाता है कि पहाड़से कई बार रात्रिमें जय-जयकार और गायनकी मधुर ध्वनि धर्मशालामें रहनेवालोंको सुनाई पड़ती है। धर्मशालाके मध्यमें जो मन्दिर बना हुआ है, कई बार अर्धरात्रिमें घण्टोंकी आवाज सुनाई पड़ती है। इस प्रकारकी अनुश्रुतियां अन्य अनेक तीर्थोके सम्बन्धमें भी प्रचलित हैं। १. Central Provinces District Gazetteer. Betul District, Vol. A (Descriptive),
edited by R.V. Russel I.C.S. 1907. २. वही।
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