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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ बाजार गांवके जैन मन्दिरोंमें अमूल्य कला-निधि
बाजारगांव नामक नगर नागपुरसे ३३.३ कि. मी. दूर नेशनल हाईवे नं. ६ के किनारेपर अवस्थित है। यहां एक ही अहातेमें ७ जैन मन्दिर बने हुए हैं। ये नगरके बाहर अवस्थित हैं, किन्तु ये सड़कसे दिखाई पड़ते हैं। यहां नगरमें जैनोंका कोई घर नहीं है । इन मन्दिरोंकी व्यवस्था परवारपुरा जैन ट्रस्ट नागपुर करता है। ट्रस्टकी ओरसे मन्दिरोंकी पूजा-सेवाके लिए एक पुजारी रहता है । समुचित सार-सम्हाल न होनेके कारण मन्दिरोंकी दशा शोचनीय हो रही है।
यह असन्दिग्ध सत्य है कि भारतके जैन मन्दिरोंमें पुरातत्त्व और कलाकी दृष्टिसे अमूल्य कोष भरा पड़ा है। मन्दिरोंका शिल्प, स्थापत्य और कला, मूर्तियोंका शिल्प-वैभव तथा मन्दिरोंमें उपलब्ध प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रोंमें ज्ञान और चित्रकला अत्यन्त समृद्ध है। अतः कलाको दृष्टिसे जैन समाज अत्यन्त सम्पन्न समाज है। अनेक मन्दिरों एवं गुहा-मन्दिरोंमें जैनाश्रित चित्रकला अपने समुन्नत रूपमें उपलब्ध है। किन्तु प्रायः इसकी अब तक उपेक्षा की जाती रही है। उसका कारण यह है कि जैन मन्दिरोंको जैन लोग केवल आराधना और श्रद्धाके केन्द्रके रूपमें देखनेके अभ्यस्त हैं। इसीलिए आज तक जैनोंने अपने आराधना केन्द्रोंमें सुरक्षित बहुमूल्य कला और पुरातत्त्वका समुचित मूल्यांकन करनेका कभी प्रयत्न नहीं किया। जैन कलाके दुर्लभ उपादान मन्दिर और मूर्तियां क्षत-विक्षत दशामें देशके सभी भागोंमें बिखरी पड़ी हैं। अनेक मन्दिरोंमें प्राचीन भित्तिचित्र बने हुए हैं, किन्तु उन्हें संवारनेका प्रयत्न न करके उनके ऊपर सफेदी पोत दी गयी है, जिससे उन भित्ति-चित्रोंका सौन्दर्य लुप्त हो गया है। कई मन्दिरोंकी जंघा, रथिका और आमलकोंपर अत्यन्त समन्नत कोटिको जैन मतियां उत्कीर्ण हैं, किन्तु चना-सफेदी करके उनकी कलाको विकृत कर दिया गया है। कई मन्दिरोंमें भित्तियोंमें शासन देवताओंकी मूर्तियोंको सफेदी-चूने द्वारा विरूप कर दिया है।
बाजारगांवके जैन मन्दिरोंमें दो वेदियों और दीवारोंमें भित्तिचित्र बने हुए हैं। इनमें तीर्थंकरोंके पंच कल्याणक या उनसे सम्बन्धित जीवनके दश्य, शासनदेवता तथा लोकसम्बन्धित दृश्य चित्रांकित हैं। जिन पुरातत्त्ववेत्ताओं और कलामर्मज्ञोंने इन भित्तिचित्रोंका अवलोकन किया है, वे इन चित्रोंको समुन्नत कलासे अत्यन्त प्रभावित हुए हैं। कई विद्वानोंने तो इन्हें विदर्भ प्रदेशके कला-कोषके बहुमूल्य रत्न कहा है। इन चित्रोंमें कलाके जिस विकसित रूपके दर्शन होते हैं, उसकी सभीने सराहना की है। इन चित्रोंका कलापक्ष और भावपक्ष दोनों ही दर्शनीय है। किन्तु इन भित्तिचित्रोंका पुनर्नवीकरण या जीर्णोद्धार न करके इनके ऊपर सफेदी पोत दी गयी है। यहाँके उपेक्षित मन्दिरोंकी कला धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। आशा है, इन मन्दिरोंके प्रबन्धक और समस्त जैन समाज जैन शिल्प और कलाके इन और ऐसे ही अन्य महत्त्वपूर्ण उपादानोंकी सुरक्षाकी ओर ध्यान देंगे।
मुक्तागिरि ( मेंढागिरि)
क्षेत्रका नाम
मुक्तागिरि निर्वाणक्षेत्र अथवा सिद्धक्षेत्र है। ग्रन्थों में इस क्षेत्रके कई नाम मिलते हैं। संस्कृत ग्रन्थों में मेंढ़कगिरि नाम दिया गया है । संस्कृत निर्वाणभक्तिमें सिद्धक्षेत्रोंमें इसकी गणना करते हुए