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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
तप किया था और इस अपराधमें रामचन्द्रने उसका शिरश्छेद किया था किन्तु वह तत्काल शिवलिंग में बदल गया था। आजकल वह लिंग धूम्रेश्वर लिंग कहलाता है । 'उत्तररामचरित' में वर्णन है कि दण्डकारण्यमें पहाड़ों की श्रृंखला थी और शम्बूककी झोपड़ीसे दक्षिणकी ओर गोदावरीके किनारे जनस्थान तक जंगली जानवर फिरते थे ।
इस प्रकार रामटेककी स्थिति पउमचरिउ और पद्मपुराणके वर्णनके अनुकूल बैठती है । विमलसूरिका काल ईसाकी प्रथम द्वितीय शताब्दी माना जाता है । इस कालमें रामटेकको ही रामगिरि कहा जाता था । गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीयके कालमें भी यह रामगिरिके रूपमें प्रसिद्ध था तथा उस कालमें भी यह मान्यता प्रचलित थी कि राम लक्ष्मण और सीताके साथ यहां ठहरे थे । इसीलिए राजमाता प्रभावती गुप्त रामचन्द्रजीकी चरण पादुकाओंकी वन्दना करने के लिए यहाँ आती रहती थी, जैसा कि ऋद्धपुरके ताम्रलेखसे प्रकट होता है । कालिदासने भी वर्णन किया है कि रघुपतिकी पवित्र पादुका रामगिरिपर विराजमान थी । ऐसी स्थिति में वर्तमान रामटेकको ही रामगिरि मानना समुचित प्रतीत होता है । उसके साथ परम्परागत मान्यताका भी सम्बल है । भट्टारकों एवं लेखकोंने भी रामटेकको ही तीर्थं मानकर वन्दना की है। ज्ञात प्रमाणोंके अनुसार इसी रामटेकको तीर्थं मानकर यात्री यात्राके लिए आते रहे हैं ।
कालिदास मेघदूत यक्षने मेघको जो भौगोलिक दिशा-निर्देश दिया है, उसमें यक्षने रामगिरिसे उत्तर दिशामें जानेपर पहले माल प्रदेश, फिर अमरकूट पर्वत ( छिंदवाड़ा जिले में अमरवाड़ा गाँवके उत्तर में स्थित सतपुड़ा पहाड़ ) और नर्मंदा नदी मिलेगी, ऐसा कहा था । सरगुजाका रामगढ़ नर्मदा नदीसे ईशानकी ओर है, दक्षिणकी ओर नहीं । इस विचारसे तो रामटेक ही रामगिरि हो सकता है । चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के आदेशपर राजकाजसे कालिदास भी सम्भवतः यहाँ कुछ दिन ठहरे थे और यहाँके प्राकृतिक सौन्दर्य और एकान्त शान्तिसे आकृष्ट होकर उनकी कल्पना प्रस्फुटित हुई और मेघदूतकी रचना १२० श्लोकों में कर डाली । उन्होंने इस काव्य के प्रथम श्लोक में ही 'स्निग्धच्छायातरुषु वसति रामगिर्याश्रमेषु' कहकर रामगिरिको भी अपने काव्य के समान अमर कर दिया है ।
क्षेत्र-दर्शन
पर्वतकी तलहटी में तथा मुख्य सड़कसे ३ कि. मी. दूर एक कोटके अन्दर यह क्षेत्र अवस्थित है। बाहरी फाटक से प्रवेश करनेपर मैदान मिलता है। इसी मैदानमें मानस्तम्भ बना हुआ है । इसके सामने पुनः प्रवेश द्वार है । यहाँ क्षेत्रका कार्यालय और धर्मशाला बनी हुई है । क्षेत्र कार्यालय के सामने मन्दिरोंका प्रवेश द्वार है । इसमें प्रवेश करनेपर नौ जिनालय बने हुए हैं। पहले क्षेत्रपर एक जैन गुरुकुल भी था, किन्तु वह परिस्थितियोंवश बन्द हो गया । मन्दिरों का परिचय इस प्रकार है
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१. शान्तिनाथ मन्दिर - भगवान् शान्तिनाथको १३ फुट ५ इंच ऊँची बादामी वकी खड्गासन मूर्ति है । इसके सिरके पीछे भामण्डल और सिरके ऊपर छत्र हैं । इसके वक्षपर श्रीवत्स है । वर्णं स्कन्धचुम्बी हैं ।
इसके दोनों पावों में भी भगवान् शान्तिनाथकी ५ फुट २ इंच ऊँची मूर्तियां हैं। चरणचौकीपर हरिणका लांछन अंकित है । बड़ी मूर्तिपर लेख नहीं है । यह मूर्ति ११-१२वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है । अहार, थूबोनजी, बजरंगढ़ आदिकी शान्तिनाथ मूर्तियोंकी श्रृंखला में इसे देखा जा सकता है । यहाँ दो क्षेत्रपाल विराजमान हैं ।