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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ३१२ क्षेत्रका इतिहास इस क्षेत्रका इतिहास अत्यन्त प्राचीन काल तक अथवा प्रागैतिहासिक काल तक पहुँचता है । प्रागैतिहासिक कालका परम्परागत इतिहास हमारे पुराण और कथा-साहित्यमें अब तक सुरक्षित रूपसे चला आ रहा है । ऐतिहासिक कालके ( जो ईसासे नौ-दस शताब्दी पूर्व तक माना जाता है) पूर्वका इतिहास जाननेके लिए प्राचीन वाङ्मय, विशेषतः पुराण साहित्य के अतिरिक्त अन्य कोई साधन हमें उपलब्ध नहीं है । अतः प्राचीन इतिहास जाननेके लिए पुराणोंका विशेष महत्त्व है । जैन पुराणोंके अनुसार रामटेक क्षेत्रका इतिहास बीसवें तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रतनाथके काल तक जा पहुँचा है । आचार्य रविषेणने पद्मपुराण ( पर्व ४० ) में रामचन्द्र द्वारा वंशगिरिमें हजारों जिन मन्दिरोंके निर्माणका उल्लेख करते हुए यह भी सूचित किया है कि इस वंशगिरिका ही नाम रामगिरि हो गया । यह उल्लेख अत्यन्त बोधप्रद है । वह इस प्रकार है : " तत्र वंशगिरौ राजन् रामेण जगदिन्दुना । निर्मापितानि चैत्यानि जिनेशानां सहस्रशः ॥ महावष्टम्भसुस्तम्भा युक्तविस्तारतुङ्गताः । गवाक्ष हर्म्यं वलभीप्रभृत्याकारशोभिताः ॥ सतोरणमहाद्वाराः सशालाः परिखान्विताः । सितचारुपताकाढ्या बृहद्घण्टारवाश्चिताः ॥ मृदङ्गवंशमुरजसंगीतोत्तमनिस्वनाः । झर्झरैरानकेः शङ्खभेरीभिश्च महारवाः ॥ सतता रध्वनिः शेष रम्य वस्तु महोत्सवाः । विरेजुस्तत्र रामीया जिनप्रासादपङ्क्तयः ॥” अर्थात् उस वंशगिरिके ऊपर जगत् के लिए चन्द्रस्वरूप रामचन्द्रने जिनेन्द्रदेवके हजारों मन्दिर बनवाये। उनमें बड़े लम्बे-चौड़े स्तम्भ लगवाये, उनमें गवाक्ष और अट्टालिकाएं सुशोभित थीं, वे विशाल तोरण, द्वार, प्राकार और परिखाओंसे युक्त थे, उनके ऊपर श्वेत पताकाएँ फहराती रहती थीं, उनमें विशाल घण्टाओंके स्वर गूंजते रहते थे । वे मृदंग, वंशी, मुरज आदि वाद्यों और संगीतके घोष से गुंजित रहते थे तथा शंख, भेरी, झांझ आदिकी ध्वनि होती रहती थी । इस प्रकार गान, वाद्य, संगीत और उत्सवोंसे युक्त जिनालयोंकी पंक्तियां रामचन्द्र ने बनवायीं । आचार्य रविषेणने इस पर्वतका नाम वंशधर बताया है क्योंकि वहाँ सघन बांसोंका अति विस्तृत जंगल था । राम द्वारा हजारों जिनालयोंके निर्माणके कारण इस वंशधर (वंशगिरि ) का ही नाम रामगिरि हो गया । इस सम्बन्धमें आचार्यने स्पष्ट लिखा है "रामेण यस्मात्परमाणि तस्मिन् जेनानि वेश्मानि विधापितानि । निनंष्टवंशाद्रिवचः स तस्माद्रविप्रभो रामगिरिः प्रसिद्धः ॥ " आचार्यं रविषेणसे भी प्राचीन आचार्य विमलसूरि कृत 'पउमचरिउ' (४०-४ ) में भी इससे ही मिलता-जुलता वर्णन है । उसमें लिखा है कि रामचन्द्रके वंशस्थपुर पहुँचनेपर राजाने उनसे नगरमें पधारने की प्रार्थना की किन्तु उन्होंने पर्वतपर ही ठहरना उचित समझा । राजाने उनकी सभी सुविधाओंकी व्यवस्था कर दी। रामचन्द्रके कहनेपर उसने वहां अनेक जिनालय
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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