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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं भातकुली
अवस्थिति और मार्ग
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र भातकुली महाराष्ट्र प्रान्तके अमरावती जिलेमें स्थित है । भातकुली के लिए निकटवर्ती स्टेशन बम्बई-नागपुर लाइनपर कुरम ९ कि. मी., अमरावती १६ कि. मी., बडनेरा १६ कि. मी. है। तथा निकटवर्ती सड़क थामोरी, अमरावती और दर्यापुरसे १३ कि. मी. । अमरावतीसे भातकुली के लिए प्रतिदिन बस जाती है । भातकुली में पोस्ट ऑफिस भी है । भातकुली पूर्णाकी सहायक नदी पैढ़ीके किनारेपर है ।
अतिशय क्षेत्र
यह क्षेत्र श्री आदिनाथ स्वामी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र संस्थान भातकुली कहलाता है । इस क्षेत्रके प्रकाश में आनेके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है । लगभग चार सौ वर्ष पहले पं. नेमसागरको मूर्ति सम्बन्ध में स्वप्न आया । उन्होंने प्रातःकाल होनेपर अपने स्वप्नकी चर्चा जैन बन्धुओंसे की। जब वह स्थान खोदा गया तो वहाँ एक अति भव्य अतिशयसम्पन्न प्रतिमा प्रकट हुई। यह मूर्ति भगवान् आदिनाथको है ।
मूर्ति प्रकट होनेपर पं. नेमसागरने और भी खोज की। प्राचीन मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था । उसका जीर्णोद्धार किया और भूगभंसे प्राप्त आदिनाथ स्वामीकी प्रतिमाको मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठित किया ।
इस मूर्ति सम्बन्ध में एक और किंवदन्ती प्रचलित है । एक ग्वाला गाय चराने जाता था । वह गाय चरते-चरते एक टीलेपर जाती थी, वहां उसका दूध प्रतिदिन झड़ जाता था । इससे वह बड़ा परेशान था । एक दिन उसने गायकी पूरी निगरानी की। उसने देखा कि टीलेपर जाकर गाय खड़ी हो गयी और स्वतः ही उसका दूध झरने लगा । ऐसा क्यों होता है, यह बात उसकी समझ में नहीं आयी । किन्तु इससे उसकी चिन्ता बढ़ गयी । उसे उसी रात्रिको स्वप्न आया - 'जहाँ तेरी गायका दूध झरता है, वहाँ खुदाई कर । तुझे भगवान् मिलेंगे ।'
दूसरे दिन उसने उस स्थानपर जाकर खुदाई की । फलतः आदिनाथ भगवान्की यह प्रतिमा निकली। कहते हैं, खुदाईके समय मूर्तिको फावड़ा लग गया तो उस अंगसे दूधकी धार भी बह निकली | जैनोंको मूर्तिका समाचार मिला तो वे लोग आये और उसे वहीं विराजमान कर दिया। बाद में जिनालय बनवाकर वहां विराजमान कर दिया गया ।
अनेक भक्तजन यहाँ आकर मनौती मनाते हैं । इस क्षेत्र से सम्बन्धित और भी अनेक बातें कहने-सुनने में आती हैं जैसे रात्रिमें कभी-कभी मन्दिर में नृत्य गानकी ध्वनि होना, कभी-कभी घण्टोंकी आवाज आना, कभी-कभी रात्रि में मन्दिरसे मोहक सुगन्धिका आना आदि ।
क्षेत्र-दर्शन
मण्डपमें प्रवेश करनेपर वेदीपर मूलनायक भगवान् आदिनाथकी श्यामवर्णं ३ फुट ४ इंच ऊँची शक संवत् १९५३ में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका भामण्डल अति मनोज्ञ है । केशोंकी लटें कन्धेपर छितरायी हुई हैं । वक्षपर श्रीवत्सका अंकन है । हाथों और पैरोंकी अंगुलियां परस्पर जुड़ी हुई नहीं हैं, जैसा कि प्रायः पाषाण प्रतिमाओंमें होता है, अपितु वे