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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
इस मन्दिरमें पाषाणकी ६२ और धातुकी कुल ४९ मूर्तियाँ हैं । इसका सभामण्डप विशाल है। गर्भगृहके आगे बरामदे में वीरसेन भट्टारककी गद्दी विद्यमान है। भट्टारक वीरसेनका पट्टा - भिषेक इसी मन्दिरमें संवत् १९३५ में हुआ था और वे संवत् १९९५ तक ६० वर्षं पर्यन्त भट्टारकपदको सुशोभित करके ज्येष्ठ शुक्ला २ संवत् १९९५ में स्वर्गवासी हुए । सेनगणके कारंजा पीठके वे अन्तिम भट्टारक थे । यहीं उनकी समाधि है । इन्होंने नागपुर, कलमेश्वर, कारंजा, पिंपरी, भातकुली आदि कई स्थानों पर मूर्ति प्रतिष्ठाएँ करायीं ।
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इनसे पूर्व इसी परम्पराके भट्टारक सोमसेनने संवत् १५६१ में सम्भवनाथ की, भट्टारक जिनसेनने संवत् १५८० में पद्मावतीकी, भट्टारक शान्तिसेनने संवत् १६७५ में चन्द्रप्रभकी, भट्टारक सिद्धसेनने शक संवत् १६९२ में पार्श्वनाथको मूर्ति प्रतिष्ठा की । इसके अतिरिक्त इस परम्परा के अनेक भट्टारकोंने कारंजामें अनेक ग्रन्थोंका प्रणयन किया । कारंजाके भट्टारक सोमसेनके उपदेश से उनके शिष्य कारंजा निवासी बघेरवाल ज्ञातीय खमडवाल ( खटबड ) गोत्रीय शाह और उनके पुत्र नसिंह ( पुण्यगह ) ने चित्रकूट नगर ( चित्तोड़ ) में चन्द्रप्रभ जिनालय के सामने कीर्तिस्तम्भका निर्माण कराया था । शाह जीजाने १०८ जिनालयोंका जीर्णोद्धार कराया था, १०८ जिनालयोंको प्रतिष्ठा करायी थी, १८ स्थानोंपर १८ कोटि शास्त्र भण्डारों की स्थापना की थी और सवा लाख बन्दियोंको मुक्त कराया था ।
सेनगण मूलसंघ सूरस्थ पुष्करगच्छ वृषभसेनान्वय के निम्नलिखित भट्टारक इस मन्दिर में भट्टारक-पीठपर आसीन रहे या उनका सम्बन्ध रहा
सोमसेन, गुणभद्र, वीरसेन, श्रुतवीर, माणिकसेन, गुणसेन, लक्ष्मीसेन, सोमसेन, माणिक्यसेन, गुणभद्र इन भट्टारकोंका कारंजासे सम्बन्ध रहा है । सोमसेन ( रामपुराणके रचयिता ), जिनसेन, समन्तभद्र, छत्रसेन, नरेन्द्रसेन, शान्तिसेन, सिद्धसेन, लक्ष्मोसेन और वीरसेन ये भट्टारक यहाँके पीठपर आसीन रहे ।
सेनगण इस मन्दिर में लगभग ४०० वर्षं प्राचीन पंचकल्याणक चित्रावली है जो मजबूत कपड़े पर चित्रित है । यह स्वर्णांकित है । यह वस्त्र ३ फोट २ इंच चौड़ा है और ४१ फीट लम्बा है । इसमें पाँचों कल्याणकोंसे सम्बन्धित सुन्दर एवं कलापूर्ण चित्रावली है ।
मन्दिरके आगे मानस्तम्भ है । मानस्तम्भके निकट दो छतरियोंमें यहाँके भट्टारकोंके संवत् १९२२ के सात चरण बने हुए हैं ।
यहाँ चैत्र कृष्णा प्रतिपदाको रथयात्रा होती है और पद्मावती देवीका मेला होता है । पर्यंषणके बाद यहाँ जलयात्रा होती है ।
कविवर ब्रह्मर्षंने 'नयर कारंजे नवनिधि पासं' कहकर यहाँके पार्श्वनाथकी स्तुति की है ।
२. श्री चन्द्रनाथ स्वामी काष्ठासंघ दिगम्बर जैन मन्दिर - यह मन्दिर चबरे लाइनमें है और काष्ठासंघ भट्टारकोंसे सम्बन्धित है । इस मन्दिर में चार स्तम्भोंके मण्डपमें भगवान् चन्द्रप्रभको भूरे वर्णंकी मूलनायक पद्मासन मूर्ति है । इस वेदीपर ६ पाषाणको तथा १० धातु की मूर्तियाँ और हैं । इसके पीछे वेदीपर २० धातुको और ३१ पाषाणकी मूर्तियाँ हैं । धातु-मूर्तियों में चौबीसी, पंचमेरु, चैत्य स्तूप और देवियोंकी मूर्तियाँ भी हैं । दायीं ओरके एक प्रकोष्ठ में मूल्यवान् मूर्तियाँ सुरक्षित हैं तथा बायीं ओरके कक्ष में पद्मावती देवीकी अतिशयसम्पन्न मूर्ति विराजमान है । इस मूर्तिको अवगाहना ९ इंच है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १७१७ में लेकुर सिंघई कस्तूरीवाले के एक वंशजने करायी थी । इस मूर्तिके चमत्कारोंकी ख्याति दूर-दूर तक है। इसके अतिशय हुम्मच