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महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र सम्बन्धी पत्र व्यवहारका पता इस प्रकार है
मन्त्री, श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन संस्थान पो. सिरपुर ( तालुका वाशिम) जिला अकोला (महाराष्ट्र)
कारंजा मार्ग और अवस्थिति
कारंजा मध्य रेलवेके मुर्तिजापुर-यवतमाल मार्गपर मुर्तिजापुरसे ३२ कि. मी. दूर स्टेशन है। अमरावती यहाँ ६२ कि. मी. है। विदर्भके सभी बड़े नगरोंसे सड़क-मार्ग द्वारा इसका सम्बन्ध है । अन्तरिक्ष पाश्वनाथ यहाँसे मंगलरुलपीर और मालेगांव होकर केवल ९२ कि. मी. है । यह जिला अकोलाका व्यापारिक केन्द्र और समृद्ध नगर है। नगरके समीप दरवाजों और दीवारोंके भग्नावशेष देखनेसे ज्ञात होता है कि पहले नगरके चारों ओर एक मजबूत किला होगा। नगरके मन्दिर
नगरमें तीन प्रसिद्ध मन्दिर हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं-(१) श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन सेनगण मन्दिर, (२) श्री चन्द्रनाथ स्वामी काष्ठासंघ दिगम्बर जैन मन्दिर, (३) श्री मूलसंघ चन्द्रनाथ स्वामी बलात्कारगण दिगम्बर जैन मन्दिर। इन तीनों मन्दिरोंके नामोसे ही ज्ञात होता है कि तीनों मन्दिर भद्रारकोंकी तीन परम्पराओंसे सम्बन्धित हैं। यद्यपि वर्तमानमें इन मन्दिरोंमें किसी भट्टारक-परम्पराका पीठ नहीं है, किन्तु .१५-१६वीं शताब्दीसे इन मन्दिरोंमें भट्टारक-पीठ थे। पाश्वनाथ मन्दिरमें सेनगणके भट्टारकोंका पीठ था; दूसरा मन्दिर काष्ठासंघके भट्टारकोंसे सम्बद्ध था और तीसरे मन्दिरमें मूलसंघ बलात्कारगणके भट्टारक रहते थे। ये भट्टारक अत्यन्त सक्रिय और कर्मठ थे। उनमें कार्यको दृष्टिसे पारस्परिक स्पर्धा भी रहती थी। इसलिए कारंजा उस समय सामाजिक गतिविधियोंका केन्द्र बना हुआ था। विदर्भ प्रान्तकी सम्पूर्ण जैन समाज इस नगरसे मार्ग-दर्शन प्राप्त करती थी। इस दृष्टिसे कारंजाने विदर्भ-प्रान्तमें शताब्दियों तक सामाजिक नेतृत्वका गौरव प्राप्त किया। यहां इन तीनों मन्दिरोंकी मूर्तियों आदिका संक्षिप्त विवरण दिया जाता है
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन सेनगण मन्दिर-गर्भगृहमें भगवान् पार्श्वनाथकी मूलनायक प्रतिमा है । यह १ फुट ४ इंच उन्नत है, श्वेत पाषाणकी है, पद्मासन है। इसके शोर्षपर सप्तफणावलि सुशोभित है। कन्धेपर केशोंकी लटें पड़ी हुई हैं । वक्षपर श्रीवत्स है।
यहाँ सुपाश्र्वनाथ भगवान्की २ फीट ४ इंच उत्तुंग श्याम वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है । इसके सिरपर पाँच फण हैं। कन्धेपर जटाएं हैं। वक्षपर श्रीवत्स है। चरणचौकीपर स्वस्तिक लांछन बना हुआ है । यक्ष-यक्षीका भी अंकन है। यह प्रतिमा बालूकी कही जाती है। इस प्रतिमाकी प्राप्तिका भी एक अद्भुत इतिहास है। चन्द्र तालाबपर एक धोबी कपड़े धोता था। जब वह कपडोंको पछीटता था तो आवाज आती थी कि धीरे-धीरे पछोट । इस बातकी उसने इधर-उधर चर्चा की। यह बात जैनोंके भी कानोंमें पहुँची। उन्होंने वहां जाकर उस स्थानको खुदवाया तो सुपार्श्वनाथको यह प्रतिमा निकली।