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________________ ३०१ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ चिन्तामणि पार्श्वनाथकी प्रतिमा अतिशयसम्पन्न है। अनेक लोग यहां मनौती मनाने आते हैं। कहते हैं, लगातार पांच रविवारोंको भक्तिपूर्वक इसके दर्शन करनेसे कामना पूर्ण होती है। ऊपर आँगनके पास एक कमरेमें वेदीमें सहस्रफण पाश्र्वनाथकी श्वेत वर्णवाली दो पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इनके अतिरिक्त पाषाणकी ९ और धातुकी २ प्रतिमाएं हैं। एक चरणपादुका भी है। एक ओर भट्टारक वीरसेनकी गुरु-गद्दी है। उसके पास बरामदे में भट्टारक विशालकीर्तिकी गद्दी है । इस प्रकार इस मन्दिरमें तीन भट्टारकोंके पीठ या गद्दियां रही हैं। लगता है, इन तीन भट्टारकोंमें भट्टारक देवेन्द्रकीति बलात्कारगणकी कारंजा शाखाके, भट्टारक वीरसेन सेनगण और भट्टारक विशालकीर्ति सम्भवतः बलात्कारगणकी लातूर शाखाके थे। यह उल्लेखनीय है कि इस मन्दिरमें उपर्युक्त सभी मूर्तियां दिगम्बर आम्नायको हैं, नग्न दिगम्बर हैं । इनके प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचार्य सभी दिगम्बर धर्मानुयायी थे, जैसा कि उनके मूर्ति-लेखोंसे ज्ञात होता है । भट्टारकोंकी तीन परम्पराओंकी यहाँ गद्दियां रही हैं । ये भट्टारक भी दिगम्बर म्बर धर्मानुयायी थे। कुल मिलाकर यह सिद्ध होता है कि मन्दिर और मतियाँ दिगम्बर आम्नायकी हैं और सदासे दिगम्बर समाजके अधिकारमें रही हैं। इस मन्दिरके ऊपर शिखर है तथा मन्दिरके द्वारपर नगाड़ाखाना है। मन्दिरके ऊपर दिगम्बरोंकी ध्वजा लगी हुई है। वर्षमें अनेक बार यात्रा उत्सव होते हैं, उन अवसरोंपर तथा जब कभी प्रतिष्ठा, विधान आदि होते हैं, उन अवसरोंपर दिगम्बर समाज पुरानी ध्वजा उतारकर नयी ध्वजा लगाती है। नीचेके भोयरेकी देहलियोंमें जहांगीर और औरंगजेबकालीन रुपये जड़े हुए हैं। कुछ उखड़ भी गये हैं । यह मन्दिर पंचायतन कहलाता है। यहां पंचायतनसे प्रयोजन है, जिसमें आराध्य मूलनायककी मूर्ति हो, शासन देवोंकी मूर्ति हो, शास्त्रका निरूपण करनेवाले गुरुको गद्दी हो, क्षेत्रपाल हो और सिद्धान्त-शास्त्र हों। ये सभी बातें यहाँपर हैं हो।। मन्दिरके चबूतरेके बगल में एक कच्चा मण्डप है जो दिगम्बर समाजके अधिकारमें है। इसमें एक पीतलकी वेदीपर संवत् १९२५ में प्रतिष्ठित सुपार्श्वनाथ भगवान्की श्वेत पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यहाँ दो चरण-चिह्न भी स्थापित हैं। धर्मशाला __मण्डपके पीछे दिगम्बर समाजकी दो धर्मशालाएं बनी हुई हैं-एक मण्डपके पीछे और दूसरी मन्दिरके पीछे । यही क्षेत्रका दिगम्बर जैन कार्यालय है। इन धर्मशालाओंमें यात्रियोंके लिए बिजली, गद्दे, तकिये, चादरें और बर्तनोंकी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मण्डपके पीछेवाली धर्मशालामें मीठे जलका कुआं है, जिसमें मोटर फिट है तथा हैण्डपम्प लगा हुआ है। कुएंके पास ही स्नानगृह बना है। इन धर्मशालाओंमें कुल कमरोंकी संख्या ३७ है। व्यवस्था सिरपुर और पवलीके दोनों मन्दिरों, समाधियों तथा उनसे सम्बन्धित सम्पत्तिकी व्यवस्था 'दिगम्बर जैन तीर्थ कमेटी सिरपुर' द्वारा होती है। यह एक पंजीकृत संस्था है। इसका चुनाव वैधानिक ढंगसे नियमानुसार होता है। मेला क्षेत्रका वार्षिक मेला कार्तिक शुक्ला १३ से १५ तक तीन दिन होता है। इस अवसरपर भगवान्की रथयात्रा निकलती है। मेलेमें लगभग ३-४ हजार व्यक्ति सम्मिलित होते हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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