SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ हैं । यहीं दिगम्बर जैन गद्दी (कार्यालय) है तथा तिजोड़ी आदि रहती है। इस प्रांगणमें ऊपरसे ही अन्तरिक्ष पार्श्वनाथके दर्शनके लिए एक झरोखा बना हुआ है । इस झरोखेमें-से मूर्तिके स्पष्ट दर्शन होते हैं। आँगनमें-से ही तलघर ( भोयरे ) में जानेके लिए सोपान-मार्ग बना हुआ है। तलघरमें भगवान् पाश्र्वनाथकी ३ फीट ८ इंच ऊँची और २ फीट ८ इंच चौड़ी कृष्ण वर्ण अर्धपद्मासन मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति ति अत्यन्त अतिशयसम्पन्न और मनोज्ञ है। इसके शीर्षपर सप्तफणावलि सुशोभित है। कर्ण स्कन्धचुम्बी हैं। वक्षपर श्रीवत्सका अंकन है। सिरके पीछे भामण्डल है तथा सिरके ऊपर छत्र शोभायमान है । यह मूर्ति भूमिसे कुछ ऊपर अधरमें स्थित है। नीचे और पीछे कोई आधार नहीं है। केवल बायीं ओर मूर्तिका अंगुल-भर भाग भूमिको स्पर्श करता है। नीचेसे रूमाल निकल जाता है, केवल इस थोड़े-से भागमें आकर अड़ जाता है। ___मूलनायकके आगे विधिनायक पाश्वनाथकी छह इंच अवगाहना वाली लघु पाषाण प्रतिमा विराजमान है। दोनों ही मूर्तियोंके ऊपर लेख नहीं है। दायीं ओर एक दीवार-वेदीमें मध्यमें महावीर स्वामीकी १ फुट ७ इंच उन्नत श्वेत खड्गासन प्रतिमा है । इसके बायीं ओर पाश्र्वनाथकी १ फुट ४ इंच ऊँची श्वेत पद्मासन और दायों ओर शान्तिनाथकी १ फुट २ इंच ऊँची संवत् १५४८ की प्रतिष्ठित श्वेत वर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। मूलनायकके बायें पाश्वमें संवत् १९३० में प्रतिष्ठित पाश्वनाथकी १ फूट अवगाहना वाली श्वेत वर्णकी सहस्रफणवाली प्रतिमा है। इससे आगेकी वेदीपर नेमिनाथकी संवत् १५६४ में प्रतिष्ठित १ फुट समुन्नत श्वेत पद्मासन प्रतिमा है। इससे आगे बढ़नेपर मनिसव्रतनाथकी संवत १५४८की फट १ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा है। फिर अरनाथकी संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित १ फूट २ इंच ऊँची श्वेत पद्मासन प्रतिमा है। इससे आगे संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित १ फट ४ इंच ऊँची आदिनाथ भगवान्की श्वेत पद्मासन मूर्ति है। इनसे ऊपर दीवार-वेदीमें संवत् १५६१ में प्रतिष्ठित और १ फीट ७ इंच उन्नत श्वेत वर्ण ऋषभदेव पद्मासन मुद्रामें आसीन हैं । इसके दोनों पाश्र्यों में श्याम वर्ण तीर्थंकरमूर्तियाँ हैं। इनमें से काले पाषाणकी एक मूर्ति आदिनाथकी है। यह ७ इंच ऊँची है और इसका प्रतिष्ठाकाल संवत् १९४६ है। दूसरी मूर्ति अनन्तनाथकी है। यह १० इंच ऊंची और अति प्राचीन है। इसपर ब्राह्मी लिपिमें दो पंक्तियोंका लेख है। इनके बगलमें ३ पाषाण चरण बने हुए हैं, जिनमें शक संवत् १८०८ के, नेमिसागरके और संवत् १९४६ के आदिनाथ और पार्श्वनाथके चरण हैं। इनके बगलमें २ फीट ३ इंच ऊंचे पाषाण-फलकमें पद्मावती देवी, ५ तीर्थकर मूर्तियों और चमरवाहकोंका अंकन है। अधोभागमें दोनों किनारोंपर भैरव बने हुए हैं तथा संवत् १९३० का प्रतिष्ठा लेख खुदा है। इन मूर्तियोंके बगलमें भट्टारक देवेन्द्रकीति कारंजाकी गद्दी है। बायीं ओर बरामदेमें ५ वेदियां बनी हुई हैं, जिनमें काष्ठासनपर संवत् १५४८ की ४ मूर्तियां विराजमान हैं। एक वेदीमें अर्धपद्मासन अति प्राचीन तीर्थंकर मूर्ति भी विराजमान है। इसी बरामदेसे होकर नीचे तल-प्रकोष्ठ ( भोयरे ) में जानेका सोपान-मार्ग है। यह आकारमें छोटा है, किन्तु इसमें सम्पूर्ण मन्दिरकी रचना दीख पडती है। २ फीट ७ इंच ऊँचे श्याम वर्ण शिलाफलकमें खड्गासन चिन्तामणि पार्श्वनाथकी प्रतिमा उत्कीर्ण है। इसे विघ्नहर पार्श्वनाथ भी कहते हैं । इसके परिकरमें छत्र, कीचक, मालावाहक देव, ४ तीर्थंकर प्रतिमाएँ, चमरेन्द्र और भक्त हैं । इस मूर्तिके सामने क्षेत्रके रक्षक दो क्षेत्रपाल विराजमान हैं। यह भोयरा आठ फीट ऊँचा है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy