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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २९९ फलकमें मध्यमें खड्गासन और ऊपर-नीचे दो-दो पद्मासन मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां यहीं उत्खननमें निकली थीं। यहां मन्दिरके बाहर अहातेमें १८ प्राचीन मूर्तियां रखी हैं। ये सभी खण्डित हैं। ये मूर्तियां इसी मन्दिरसे खुदाईमें निकली थीं। यहाँ एक कुआं है। इसके जलसे कुष्ठ रोग, उदर रोग आदि ठीक हो जाते हैं, ऐसा कहा जाता है । ___मन्दिरके पास धर्मशाला बनी हुई है जिसमें पांच कमरे हैं। संवत् २०२६ में यहां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी। पवली मन्दिरके निकट एक जिनालय बना हुआ है। इसमें केवल गर्भगृह है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथको ४ फोट ५ इंच ऊँची ९ फणवाली पद्मासन मूर्ति विराजमान है। मन्दिरका द्वार पूर्वाभिमुखी है। अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर इस मन्दिरके सम्बन्ध में यह अनुश्रुति है कि ऐल श्रीपालने अन्तरिक्ष पार्श्वनाथकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा इस मन्दिरमें नहीं करायी थी, बल्कि पवलीके दिगम्बर जैन मन्दिरमें करायी थी। मुस्लिम कालमें, जब मूर्तियोंका व्यापक विनाश किया जा रहा था, तब अन्तरिक्ष पाश्वनाथको मूर्तिकी सुरक्षाके लिए पवलीके मन्दिरसे सिरपुरके इस मन्दिरमें लाकर भोयरेमें विराजमान कर दिया गया था। पवली मन्दिरकी खण्डित मूर्तियोंको देखनेसे इस अनुश्रुतिमें सार दिखाई देता है। किन्तु यह मूर्ति किस संवत्में पवलीके मन्दिरसे लाकर यहां विराजमान की गयी, यह ज्ञात नहीं ता। इस सम्बन्धमें हमारी धारणा इससे भिन्न है। हमारी विनम्र मान्यता है कि ऐल श्रीपालने ही सिरपुरके जिनालयका निर्माण कराया था और पवलीके कुएंसे मूर्तिको निकालकर और यहाँ लाकर भूगर्भगृहमें विराजमान किया था। ऐल श्रीपालके सम्बन्धमें पूर्वमें जिस किंवदन्तीका उल्लेख किया गया है, उसमें भी यह बताया गया है कि ऐल श्रीपाल घासकी गाड़ीमें मूर्तिको कुछ दूर ले गया। जब उसने पोछे मुड़कर देखा तो मूर्ति वहीं अचल हो गयी। इस अनुश्रुतिसे भी हमारी धारणाकी पुष्टि होती है। हमें लगता है, जहां पवली मन्दिर है, पहले उस स्थानपर कोई मन्दिर था। अन्तरिक्ष पार्श्वनाथकी मूर्ति उसमें विराजमान थी। वह मन्दिर किसी कारणवश नष्ट हो गया या किसी आततायीने नष्ट कर दिया। उस कालमें मूर्तिको बचानेके उद्देश्यसे मूर्तिको कुएंमें छिपा दिया। ऐल श्रीपालने उस मूर्तिको कुएंसे निकाला और उसे लेकर चला। किन्तु सिरपुरमें आकर मूर्ति अचल हो गयी, तब उसने मूर्तिके ऊपर ही मन्दिरका निर्माण कराया । हमारी यह धारणा अधिक तर्कसंगत और स्थितिके अनुकूल लगती है। इस स्थितिमें यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि तब पवली मन्दिर किसने बनवाया ? हमारी मान्यता है कि पवली मन्दिर भी ऐल श्रीपालने ही बनवाया। जहां उसने कुएंसे मूर्ति निकालकर रखी, उसी स्थानपर स्मृतिके रूपमें उसने मन्दिर बनवाया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऐल श्रीपाल कट्टर दिगम्बर धर्मानुयायी था। उसने वाशिम, मुक्तागिरि, ऐलोरा आदि कई स्थानोंपर दिगम्बर जिनालयोंका निर्माण कराया था। अतः पवली और सिरपुरके जिनालय मूलतः दिगम्बर जिनालय थे और हैं। उसने जिन रामसेन, मलधारी पद्मप्रभ और नेमिचन्द्रसे प्रतिष्ठा करायी थी, वे भी दिगम्बर जैन भट्टारक थे और उन्होंने दिगम्बर विधिसे ही प्रतिष्ठा की। अस्तु। यह मन्दिर गाँवके मध्यमें गलीमें है। मन्दिरका प्रवेश-द्वार छोटा है। उसमें झुककर ही प्रवेश किया जा सकता है। प्रवेश करनेपर एक छोटा प्रांगण मिलता है। उसके तीन ओर बरामदे
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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