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________________ २९८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ दूसरा शिलालेख-|| स....१३३८ वैशाख सुदि ..श्री मालवस्थ ठः रामल पौत्र ठः भोज पुत्र अमर (कुल) समुत्पन्न संघपति ठः श्री जगसिंहेन अन्तरिक्ष श्री पाश्वं (ना) थ निजकुल (उद्धारक) षटवड वंश......राज........। गर्भगृहमें भगवान् पार्श्वनाथकी ३ फीट ६ इंच उत्तुंग संवत् १४५७ में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। शीर्षपर ९ फण सुशोभित हैं। वक्षपर श्रीवत्स अंकित है। कर्ण स्कन्धचुम्बी हैं । इस वेदीपर पाषाणको ३२ और धातुकी ४ मूर्तियां हैं। गर्भगृहके द्वारपर अहंन्त और देव-देवियोंकी प्रतिमा बनी हुई हैं । द्वार अलंकृत है । गर्भगृहके आगे दालान बना हुआ है। बायीं ओर २ फीट २ इंच ऊंचे एक पाषाण फलकमें अर्धपद्मासन दिगम्बर प्रतिमा बनी हुई है। परिकरमें भामण्डल, छत्र और कोनोंमें पद्मासन मतियां बनी हई हैं । अधोभागमें खड्गासन दिगम्बर मूर्तियां हैं। इस वेदोसे आगे बायीं ओर एक वेदीमें १ फुट ६ इंच ऊंचे फलकमें भगवान् महावीरकी अधं पद्मासन मूर्ति है। इससे आगे २ फीट ६ इंच ऊंचे फलकमें पाश्वनाथकी प्रतिमा उत्कीर्ण है। ये तीनों मूर्तियां प्राचीन हैं। दालानमें दायीं ओर २ फीट २ इंच ऊँचे शिलाफलकमें अधं पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है। सिरके पृष्ठ भागमें भामण्डल और उपरिभागमें छत्रको संयोजना है। ऊपर दोनों कोनोंपर दो पद्मासन और नीचे दो खड्गासन मूर्तियोंका अंकन है। इससे आगे बढ़नेपर दूसरी वेदीमें श्वेत पाषाणकी चन्द्रप्रभ भगवान्की पद्मासन मूर्ति है। इसकी अवगाहना १ फुट ५ इंच है और वोर संवत् २४९६ में प्रतिष्ठित हुई है। इस वेदीसे आगे बढ़नेपर तीसरी वेदीमें २ फीट ७ इंच ऊंचे एक शिलाफलकमें संवत् १५४५ की पार्श्वनाथ मूर्ति है । यह श्यामवर्ण है और पद्मासन है। इसके परिकरमें गजारूढ़ इन्द्र तथा दोनों पार्यों में पाश्र्वनाथके सेवक यक्ष-यक्षी धरणेन्द्र एवं पद्मावती है। नीचे चरणचौकीपर गज बने हुए हैं, जो इन्द्रके ऐरावत गजके प्रतीक हैं। मध्यमें धरणेन्द्र उत्कीर्ण हैं। __गर्भगृहके सामने चार स्तम्भोंपर आधारित खेलामण्डप बना हुआ है । स्तम्भोंपर तीर्थंकरों, मुनियों और भक्ति-नृत्यमें लीन भक्तोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मण्डपके मध्यमें गोलाकार चबूतरा बना हुआ है जो सम्भवतः पूजा, मण्डल विधानके प्रयोजनसे बनाया गया है। यह मन्दिर पूर्वाभिमुखी है। उत्तर और दक्षिण द्वारोंके आगे अर्धमण्डप बने हुए हैं । दक्षिण द्वारपर दो चैत्यस्तम्भ रखे हुए हैं, जिनमें सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ हैं। पूर्व द्वारके आगेका अर्धमण्डप गिर गया है। यह मन्दिर अठकोण बना हुआ है। इसकी रचना शैली अत्यन्त आकर्षक है। मन्दिरके आगे बायीं ओर चबूतरेपर भट्टारक शान्तिसेन, भट्टारक जिनसेन और भट्टारकोंके शिष्योंकी समाधियां बनी हुई हैं। इस मन्दिरके सामने एक और जिनालय है। इसमें प्रवेश करनेपर बायीं ओर २ फोट ५ इंच उत्तंग पार्वनाथकी श्याम वर्ण पद्मासन मति है जो वीर संवत २४९६ की प्रतिष्ठित है। इस मूतिमें फणकी संयोजना नहीं की गयी, पादपीठपर सर्पका लांछन बना हुआ है। इसकी बायीं ओर ५ फीट ९ इंच उत्तुंग पंच फणावलिमण्डित श्यामवर्ण सुपार्श्वनाथकी खड्गासन प्राचीन मूर्ति है तथा दायीं ओर ५ फोट ६ इंच उन्नत नौ फण विभूषित पाश्वनाथकी खड्गासन प्राचीन मूर्ति है । इस मूर्तिके सिरपर जटाएं अंकित हैं। इससे बायीं ओर बढ़नेपर पाश्वनाथको ३ फोट ५ इंच ऊंची श्याम वर्णको खड्गासन मूर्ति है। इसके सिरपर सप्तफण मण्डप है। इसके आगे बायीं ओर बढ़नेपर ३ फीट ४ इंच ऊँचे
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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