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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
कच्छ-इसे मरुकच्छ भी कहते थे। यह वर्तमान कच्छ ही था।
विदर्भ-बरार और खानदेश । पहले इसका कुछ भाग मध्य प्रदेशमें था और कुछ भाग निजाम स्टेटमें था। यह रुक्मिणीके पिता भीष्मकका प्रदेश था। इसके मुख्य नगर कुण्डिननगर
और भोजकपुरा थे। पुराणोंमें उल्लिखित भोज विदर्भमें रहते थे। प्राचीन कालमें विदर्भमें वर्तमान भोपाल और विदिशा जिलोंसे नर्मदा तकका भाग सम्मिलित था।
करहाट-सतारा जिले में कोल्हापुरसे उत्तरमें ६४ कि. मी. कराड़ स्थान। यह शिलाहार राजाओंकी राजधानी था। करहाटक काराष्ट्र देशकी राजधानी था। यहाँ स्वामी समन्तभद्र अपनी दिग्विजय यात्रामें आये थे और बादमें यहाँके विद्वानोंको परास्त किया था।
महाराष्ट्र-मराठा देश, जो गोदावरी और कृष्णा नदीके मध्यमें फैला हुआ है । बुद्धके समय इसे अश्मक या अस्सक भी कहते थे। अशोकने यहाँ महाधम्मरक्षितको बौद्धधर्मके प्रचारके लिए भेजा था। इसकी प्राचीन राजधानी प्रतिष्ठान थी। यह आन्ध्रभृत्योंकी राजधानी थी जो सातवाहन या शालिवाहन कहलाते थे। आन्ध्रभृत्योंके पश्चात् क्षत्रपोंने (कुछ भागपर सन् २१८ से २३२ तक), फिर आभीरोंने (सन् ३९९ तक), पश्चात् राष्ट्रकूटोंने इस प्रदेशपर शासन किया। ये राष्ट्रिक भी कहलाते थे। इन्हींके नामपर महाराष्ट्रिक, फिर महाराष्ट्र कहलाने लगा। इनका शासन-काल तीसरीसे छठी शताब्दी तक रहा। फिर चालुक्योंने (छठी शताब्दीसे ७५३ तक) शासन किया। इन्हें हटाकर राष्ट्रकूटोंने पुनः इसपर अधिकार कर लिया। इस वंशके गोविन्द तृतीयके पुत्र अमोघवर्षने पैठणसे राजधानी हटाकर मान्यखेटको अपनी राजधानी बनाया। पश्चात् यहाँ चालुक्यों (सन् ९७३-११६२), कलचुरियों (सन् ११६२ से ११९२), यादवों (११९२ से १३१८) का आधिपत्य रहा। इसके पश्चात् मुसलमानों और अंगरेजोंने यहां शासन किया। यादववंशके रामचन्द्र नरेशका मन्त्री हेमाद्रि था, जिसे हेमाडपन्त भी कहते थे जिसने अनेक मन्दिर बनवाये, उसने मन्दिर निर्माणकी एक विशेष शैली प्रचलित की। इस शैलीमें बने मन्दिर हेमाड़पन्थी मन्दिर कहलाते हैं।
सुराष्ट्र-सिन्धसे भडौंच तकका प्रदेश । इसमें गुजरात, कच्छ और काठियावाड़ सम्मिलित थे। इसकी राजधानी बलभी थी । गुप्तकालमें इसकी राजधानी वनस्थली (वर्तमान बन्थली) रही।
आभीर-नर्मदाके मुहानेके निकट गुजरातका दक्षिण-पूर्वी भाग आभीर कहलाता था। ब्रह्माण्ड पुराणके अनुसार आभीर देशमें सिन्धु नदी बहती थी। महाभारत (सभापर्व अ. ३१) के अनुसार आभीर लोग समुद्र तटपर और सरस्वतीके किनारे (सोमनाथके निकटवाली नदी) रहते थे। सर हैनरी ईलियटके अनुसार भारतके पश्चिमी समुद्र तटपर ताप्तीसे देवगढ़ तकका भाग आभीर कहलाता था। डब्ल्यू. एच. शाफके मतानुसार गुजरातका दक्षिणी भाग, जिसमें सूरत सम्मिलित है, आभीर था। तारातन्त्रको मान्यतानुसार कोंकणसे दक्षिणको ओर ताप्ती नदीके पश्चिमी तटवर्ती भागको आभीर कहा जाता था।
___सौवीर-कनिंघम गुजरातके ईडर जिलेको सौवीर मानते हैं। डॉ. राइस डेविड काठियावाड़के उत्तरमें कच्छकी खाड़ीके किनारे इसे मानते हैं ।
१. बृहत्संहिता, अ. १४ । २. Cunningham's Bhilsa Topes, page 363. ३. स्कन्दपुराण, सह्याद्रि खण्ड । ४. दशकुमारचरित, अ. ६ ।