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________________ जैन दृष्टि से राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र अमीझरो पार्श्वनाथ, भद्रावती, माणिक्य स्वामी आदिके कई मन्दिरोंपर अधिकार कर लिया है तथा वे अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ, ऋषभदेव केशरियानाथके प्रसिद्ध दिगम्बर जैन मन्दिरोंपर अपना स्वामित्व जताते हैं। राजस्थान-गुजरात-महाराष्ट्रके प्राचोन जनपद भगवज्जिनसेनके 'आदिपुराण के अनुसार भगवान् ऋषभदेवकी आज्ञासे सौधर्मेन्द्रने भारतको ५२ जनपदोंमें विभाजित किया था। उनके नाम इस प्रकार हैं सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, उण्ड्र, अश्मक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अंग, बंग, सुम, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनर्त, वत्स, पंचाल, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरुजांगल, करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाट, कोशल, चोल, केरल, दारु, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, अपरान्तक, विदेह, सिन्धु, गान्धार, यवन, चेदि, पल्लव, काम्बोज, आरट्ट, बाल्हीक, तुरुष्क, शक और केकय। इन जनपदोंमें निम्नलिखित जनपद राजस्थान-गुजरात-महाराष्ट्र में हैं अश्मक, आनर्त, कच्छ, विदर्भ, करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, सौवीर और अपरान्तक। अश्मक-गोदावरी और माहिष्मतीके मध्यमें यह नर्मदा तटपर अवस्थित था। इसे अलक या मूलक भी कहते थे। इसकी राजधानी प्रतिष्ठान ( वर्तमान पैठण ) थी। यह विदर्भको राजधानी | अश्मक महाराष्ट्रको कहते थे। अश्मक महाभारतका अश्वक था। बौद्ध ग्रन्थों में इसका नाम अस्सक आया है। आनर्त-गुजरात और मालवाका भाग । इसकी राजधानी कुशस्थेली (आधुनिक द्वारका ) थी। उत्तरी गुजरातकी राजधानी आनंर्तपुर थी। पश्चात् इसका नाम आनन्दपुर हो गया जो वर्तमानमें बड़नगर कहलाता है। बड़नगर उत्तर गुजरातमें सिद्धपुरसे दक्षिण-पूर्वमें ११२ कि. मी. है। लेकिन वर्तमानमें आनन्दपुर नामक एक स्थान है जो बलभीसे उत्तर-पश्चिममें ८० कि. मी. है। प्राचीन कालमें इसे ही आनर्तपुर कहते थे। यहाँ ह्वेन्त्सांग भी आया था। आनन्दपुर या बड़नगरको नगर भी कहते थे और यह गुजराजके नागर ब्राह्मणोंका मूलस्थान था। गुजरात नरेश ध्रुवसेनकी यह राजधानी थी। उसके दरबारमें सन् ४११ में कल्पसूत्रके रचयिता भद्रबाहु स्वामी रहते थे। कुमारपालने इसके चारों ओर मजबूत कोट बनवाया था। & History of Bawari, Spence Hardy's Manual of Budhism Sutta mpatta and Parayanavagga. २. दण्डीकृत दशकुमार चरित, हर्षचरित । ३. कौटिल्य अर्थशास्त्रके टीकाकार भट्टस्वामी । ४. भीष्मपर्व, अध्याय ९ । ५. श्रीमद्भागवत अ. १० । ६. स्कन्द पुराण, नागरखण्ड, अध्याय ६५ । ७. Bombay Gazetteer, Vol 1, Part 1, page 6, note 2. ८. सन् ६४९ और ६५१ के आलिनाके दो ताम्रपत्र ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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