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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस प्रदेशको धाराशिवको जैन गुफाओंका निर्माण साहित्यिक साक्ष्योंके अनुसार ईसा पूर्व सातवीं शताब्दीमें करकण्डु नरेशने कराया था और पाश्वनाथ भगवान्की प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा की थी। अचलपुर नरेश ऐल श्रीपालने १०वीं शताब्दीमें ऐलोरामें जैन गुफाओंका निर्माण कराया था। इसके अतिरिक्त उसने पवली, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ सिरपुर, वाशिम, मुक्तागिरि आदि अनेक स्थानोंपर जिनालय बनवाये थे। यादववंशी जैन नरेश भिल्लमने देवगिरि (दौलताबाद) नगरको स्थापना की, वहां एक सुदृढ़ दुर्गका निर्माण कराया और वहीं अपनी राजधानी स्थापित की। इस दुर्गमें उसने एक विशाल जिनालयका निर्माण कराया जो मुस्लिम कालमें मसजिद बना दिया गया और स्वतन्त्रता-प्राप्तिके पश्चात् भारतमाता मन्दिर बना दिया गया। इस जैन मन्दिरकी अनेक मूर्तियाँ अब भी दुर्गमें विद्यमान हैं। अकोला जिलेके नरनालामें प्राचीन दुर्ग है। अकोला डिस्ट्रिक्ट गजेटियरके अनुसार इसका निर्माण किसी जैन नरेशने कराया था। इस प्रदेशमें राष्ट्रकूट, चालुक्य, शिलाहार, यादव, ऐल आदि वंशोंने शासन किया। इनमें अनेक राजा जैन धर्मानुयायी थे। प्रायः सभी नरेश जैनधर्मके प्रति सहिष्ण एवं उदार थे। कई राजाओंने जैन न होनेपर भी जैन मन्दिर बनवाये एवं जैन मन्दिरों और भट्टारकोंको भूमिदान किया। शिलाहारवंशके गण्डरादित्यने जैन मन्दिर बनवाया था तथा उसके लिए भूमि भी दी थी। शिलाहारवंशके विजयादित्यके दो शिलालेख कोल्हापुरके पाश्वनाथ दिगम्बर जैन मानस्तम्भ मन्दिर गंगावेशमें रखे हैं। उनसे ज्ञात होता है कि इस राजाने दो जैन मन्दिरोंके लिए गांव दानमें दिये थे। कदम्बवंशी नरेश मयूरवर्माने अम्बिका देवीके मन्दिरके लिए जैनाचार्य श्रीपालके शिष्य गुणदेवको एक ग्राम दान किया । भट्टारकोंको तो अनेक राजाओं और बादशाहोंने भूमि और ग्राम भेंट किये । इससे उन राजाओं और बादशाहोंपर उन भट्टारकोंका कितना प्रभाव था, इसका पता चलता है। महाराष्ट्र प्रदेशमें सदासे जैनोंका प्रभाव रहा है। इस प्रदेशने जैन समाजको अनेक जैनआचार्य और मुनि दिये हैं । इस प्रदेशके अनेक स्थानोंपर भट्टारकोंके पीठ रहे हैं। जैन मन्दिरोंपर जैनेतरोंका अधिकार यों तो प्रायः सभी प्रान्तोंमें अनेक दिगम्बर जैन मन्दिरोंपर हिन्दुओं, मुसलमानों और श्वेताम्बरोंने अधिकार कर लिया है और उन्हें परिवर्तित करके अपने धर्मकी मूर्तियां उनमें विराजमान कर दी हैं, अनेक मन्दिरोंको मसजिद बना दिया है, अनेक जैन मूर्तियोंपर सिन्दूर पोतकर उन्हें खैरमाई या खैरदय्याके नामसे पूजा जाता है, किन्तु उपर्यक्त राजस्थान, गजरात और महाराष्ट्र इन तीन प्रान्तोंमें परिवर्तित दिगम्बर जैन मन्दिरोंकी संख्या भी नगण्य नहीं है। जयपुर और आमेरमें अनेक दिगम्बर जैन मन्दिर हिन्दुओंके अधिकारमें हैं। उनके शिखरों और प्रवेश द्वारोंपर अब भी जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां देखी जा सकती हैं। कोल्हापुरका महालक्ष्मी मन्दिर मूलतः जेनोका अम्बादेवी मन्दिर था। अब भी छतों आदिमें जैन मतियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। वहाँके त्रिकूट चैत्यालयमें पार्श्वनाथके स्थानपर भैरव विराजमान हैं। वहाँके दीपाधारों और सदर ( पालकी रखनेका स्थान ) पर हिन्दुओंका अधिकार है। गिरनारके अम्बादेवी मन्दिरको हिन्दुओंने बलात् हथिया लिया है। पंढरपुरका बिठौवा मन्दिर मूलतः नेमिनाथ मन्दिर था। हिन्दुओंने नेमिनाथको ही बिठौवा बना दिया है। दौलताबाद दुर्गका जैन मन्दिर मसजिद बना दिया गया था, अब वह भारतमाता मन्दिर बन गया है। जिन्तूरमें अनेक मन्दिरोंको मुस्लिम आक्रान्ताओंने नष्ट कर दिया या मसजिद बना दिया। इसी प्रकार श्वेताम्बरोंने गिरनार, शत्रुजय,
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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