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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
मुझे अब एक क्षणका भी विलम्ब किये बिना आत्म-कल्याणके मार्गमें लग जाना चाहिए ।" उन्होंने जिनेन्द्र प्रतिमा के समक्ष हृदयसे जैनधर्मको अंगीकार किया और दिगम्बर मुनि दीक्षा ले ली । वे जैन दार्शनिक परम्पराके जाज्वल्यमान रत्न बने। इस प्रकार पात्र केशरीको श्रीपुरके पार्श्वनाथ के समक्ष आत्म-बोध प्राप्त हुआ ।
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इस सम्पूर्ण कथनका सारांश यह है कि श्रीपुर नामक कई नगर थे । उन नगरों में पार्श्वनाथ मन्दिर और पार्श्वनाथ प्रतिमा की भी प्रसिद्धि थी । किन्तु इन सबमें अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ केवल एक ही थे और वे थे उस श्रीपुर ( वर्तमान सिरपुर ) में, जो वर्तमान में अकोला जिलेमें स्थित है । आचार्यं विद्यानन्द अथवा पात्रकेशरीको घटना किस श्रीपुरके पार्श्वनाथ मन्दिर में घटित हुई, यह अवश्य अन्वेषणीय है | आचार्य पात्रकेशरीसे सम्बन्धित घटना अहिच्छत्र में घटित हुई, इस प्रकार - के उल्लेख भी कई ग्रन्थों और शिलालेखों में उपलब्ध होते हैं । आराधना कथाकोश- कथा १ में उस घटनाको अहिच्छत्र में घटित होना बताया है । इसलिए इस सम्बन्धमें भी विश्वासपूर्वक कहना कठिन है कि वस्तुत: यह घटना श्रीपुरमें घटित हुई अथवा अहिच्छत्र में ? यदि श्रीपुरमें घटित हुई तो किस श्रीपुर में ?
ऐल श्रीपाल कौन था ?
ऐलवंशी नरेश श्रीपालका कुष्ठ रोग अन्तरिक्ष पार्श्वनाथके माहात्म्य के कारण वहाँके कुएँ के जल में स्नान करनेसे जाता रहा, इस प्रकारका उल्लेख हम इस लेख के प्रारम्भमें कर चुके हैं । वह श्रीपाल कौन था ? कुछ लोग इस श्रीपाल और पुराणों में वर्णित कोटिभट श्रीपालको एक व्यक्ति मानते हैं जो मैनासुन्दरीका पति था, किन्तु यह मान्यता निराधार है और केवल नामसाम्य कारण है । वस्तुतः कोटिभट श्रीपाल भगवान् नेमिनाथके तीर्थंमें हुए हैं, जबकि ऐलश्रीपालका काल अनुमानतः दसवीं शताब्दीका उत्तरार्धं है । इसी ऐल नरेशने पाश्वनाथ मन्दिर बनवाया था। इस मन्दिर में कई शिलालेख मिलते हैं । किन्तु उनमें जो अंश पढ़ा जा सका है, उसमें रामसेन, मल्लपद्मप्रभ, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ स्पष्ट पढ़े गये हैं । पवली मन्दिरके द्वारके ललाटपर एक लेख इस प्रकार पढ़ा गया है - 'श्री दिगम्बर जैन मन्दिर श्रीमन्नेमिचन्द्राचार्यं प्रतिष्ठित ।'
इन लेखों में आचार्य रामसेन, आचार्यं मलधारी पद्मप्रभ, आचार्य नेमिचन्द्र इन आचार्योंका नामोल्लेख है । ये सभी आचार्यं समकालीन थे और इनके समय में ऐल श्रीपाल ऐलिचपुरका राजा था । वह राष्ट्रकूट नरेश इन्द्रराज तृतीय और चतुर्थंका सामन्त था। जिला वैतूल के खेरला गाँवसे शक सं. १०७९ और १०९४ ( क्रमश: ई. स. ११५७ और ११७२ ) के दो लेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें श्रीपालकी वंश-परम्परामें नृसिंह, बल्लाल और जेनपाल नाम दिये हुए हैं । खेरला गाँव राजा श्रीपालके आधीन था । राजा श्रीपाल के साथ महमूद गजनवी ( सन् ९९९ से १०२७ ) के भानजे अब्दुल रहमानका भयानक युद्ध हुआ था । 'तवारीख-ए अमजदिया' नामक ग्रन्थके अनुसार यह सन् १००१ में ऐलिचपुर और खेरलाके निकट हुआ था । अब्दुल रहमानका विवाह हो रहा था । वह नौशेका मौर बाँधे हुए बैठा था। तभी युद्ध छिड़ गया । वह दूल्हे के वेषमें ही लड़ा। इस युद्ध में दोनों मारे गये । यह स्थान अचलपुर-वैतूल रोडपर खरपीके निकट माना जाता 1
ऐल श्रीपाल जैन धर्मका कट्टर उपासक था । इसी कुएँके जलसे कुष्ठ रोग ठीक हो जानेपर उसने अन्तरिक्ष पार्श्वनाथकी मूर्ति कुएँ के जलसे निकलवायी और मन्दिर बनवाया। इसीने ऐलोराकी विश्वविख्यात गुफाओंका निर्माण कराया था ।