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________________ २९५ महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ यह भी कहा जाता है कि इस राजाने सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरिपर भी मन्दिरका निर्माण कराया था। इस प्रकार अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिरका निर्माता ऐल श्रीपाल था। उसने ऐलिचपुर, ऐलोरा आदि कई नगर अपने वंश-नामपर बसाये । यहाँ एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है। जब ऐल श्रीपाल ऐलिचपुरमें शासन कर रहा था, लगभग उसीके कालमें आश्रमनगरमें एक परमारवंशी श्रीपाल शासन कर रहा था। यह राजा भोजका सम्बन्धी और सामन्त था, जबकि ऐल श्रीपाल राष्ट्रकूट नरेश इन्द्रराजका सामन्त था। आश्रमनगरके श्रीपालके सम्बन्धमें ब्रह्मदेव सूरि कृत बृहद्रव्यसंग्रह-टीकाके आद्यवाक्यमें इस प्रकार परिचय दिया गया है-"अथ मालवदेशे धारा नाम नगराधिपतिराजभोजदेवाभिधान-कलिकालचक्रवर्तिसंबन्धिनः श्रीपालमहामण्डलेश्वरस्य...." इसमें श्रीपालको भोजराजका सम्बन्धी और महामण्डलेश्वर माना है और वह आश्रमपत्तन नगरका शासक बताया है। दोनों श्रीपालोंका काल समान है, नाम समान है, सामन्त-पद भी समान है। अतः दोनों श्रीपालोंके सम्बन्धमें भ्रम हो जाना स्वाभाविक है। किन्तु दोनों का वंश समान नहीं है, दोनोंके स्वामी समान नहीं हैं। फिर विचार करने की बात यह है कि राजा भोज-जैसा अनुभवी शासक आश्रमपत्तन नगर ( बूंदी जिला) का शासन ऐलिचपुर ( अकोला जिला) में बैठे हुए व्यक्तिको क्यों सौंपेगा, जबकि ऐलिचपुरकी अपेक्षा धारानगरी आश्रमपत्तनके अधिक निकट है। इसलिए नामसाम्य होनेपर भी दोनों श्रीपाल भिन्न व्यक्ति हैं। ___ यहां एक बात अवश्य विचारणीय है। ब्रह्मदेव सूरिने बृहद्रव्यसंग्रहकी टीकाके उत्थानिकावाक्यमें यह सूचना दी है कि आश्रमपत्तन नगरमें सोम श्रेष्ठीके अनुरोधपर नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेवने लघु द्रव्य-संग्रह रची और फिर तत्त्वज्ञानके विशद बोधके लिए बृहद्रव्य-संग्रहकी रचना की। दूसरी ओर अन्तरिक्ष पाश्वनाथ मन्दिरके द्वारके ऊपर अंकित लेखमें 'श्री दिगम्बर जैन मन्दिर श्रीमन्नेमिचन्द्राचार्य प्रतिष्ठित' यह वाक्य दिया है । यद्यपि यह वाक्य अधिक प्राचीन नहीं लगता, किन्तु नेमिचन्द्राचार्य नामसे भ्रान्ति उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। इससे तो ऐसा आभास होता है कि आश्रमपत्तन नगरके शासक श्रीपाल और ऐलिचपुरके शासक श्रीपालमें अभिन्नता है तथा आश्रमपत्तन नगरमें बैठकर जिन नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेवने द्रव्यसंग्रहकी रचना की, उन्होंने ही अन्तरिक्ष पाश्वनाथ मन्दिरकी प्रतिष्ठा की। किन्तु वस्तुतः नामसाम्य होनेपर भी ये व्यक्ति अलग-अलग हैं क्योंकि धारानरेश भोज और ऐल श्रीपालका समय भिन्न है। भोज ई. सन् १००० में गद्दीपर बैठा और श्रीपालकी मृत्यु सन् १००१ में हो गयी। केवल एक वर्षका ही काल दोनोंका समान था। अतः इस एक वर्षमें श्रीपाल द्वारा मन्दिर निर्माणका कार्य सम्भव नहीं हो सकता। मन्दिर और मूर्ति दिगम्बर आम्नाय की हैं पवली मन्दिर, सिरपुर मन्दिर, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथकी मूर्ति तथा अन्य सभी मूर्तियां दिगम्बर आम्नायकी हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है । मन्दिरका निर्माण दिगम्बर धर्मानुयायी ऐल श्रीपालने कराया, मूर्तियोंके प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचार्य दिगम्बर धर्मानुयायी रहे हैं। मूर्तियोंकी वीतराग ध्यानावस्था दिगम्बर धर्मसम्मत और उसके अनुकूल है। इस मन्दिर और मूर्तियोंके ऊपर प्रारम्भसे दिगम्बर समाजका अधिकार रहा है। इसके अतिरिक्त पुरातात्त्विक,
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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