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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
संघवी श्री कोण्डा तस्य पुत्र ९ एतेषां मध्ये संघवी श्री वीर सा भार्या घालावी तस्य पुत्रत्रय संघवी श्री अनन्तसा भार्या गंगाई संघवी सातूसा भार्या रतनाई संघाधिपति श्री नेमासा भार्या जयवाई नित्यं प्रणमति । "
इस लेख से ज्ञात होता है कि भट्टारक धर्मचन्द्रने शक संवत् १५३० में पार्श्वनाथ - मूर्तिकी प्रतिष्ठा की; जसाशाह संघवीके ९ पुत्र थे, जिनमें संघवी वीरसा एक पुत्र था; और संघवी वीरसा ३ पुत्र थे । इससे ऐसा लगता है कि इन तीन पुत्रोंकी ६ पत्नियोंके जो नाम विभिन्न मूर्ति-लेखोंमें उपलब्ध होते हैं, वस्तुतः उनकी पत्नियोंकी संख्या ३ ही थी, किन्तु उनके नाम दो-दो थे ।
क्षेत्रको दशा
लगभग १०-१२ वर्ष पहले भूकम्प आया था । उससे पहाड़ी क्रेक हो गयी । भूकम्पका प्रभाव मन्दिरपर भी पड़ा था। पहाड़ीकी दरारकी सीध में मन्दिरकी दीवार और छतमें भी दरार पड़ गयो । इससे मन्दिरकी सुरक्षाको खतरा उत्पन्न हो गया है । चन्द्रगुफा में कोई मूर्ति नहीं है । क्षेत्रपर धर्मशाला है, जिसमें ६ कमरे हैं ।
गाँव मन्दिर
जिन्तुर नगर में वर्तमान में २ मन्दिर हैं - ( १ ) साहूका महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर और (२) महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर पुराना ।
साहूका मन्दिर - यह मन्दिर मूर्तियोंकी दृष्टिसे अत्यन्त सम्पन्न है | नगरके प्राचीन ७ मन्दिरोंकी मूलनायक प्रतिमाएँ इसी मन्दिर में विराजमान हैं। दूसरे मन्दिरसे भी कुछ मूर्तियाँ लाकर यहाँ विराजमान कर दी गयी हैं । इस मन्दिर में एक वेदीपर पीतल के दो सहस्रकूट चैत्यालय हैं । दायीं ओरका चैत्यालय ४ फीट ९ इंच ऊंचा और १ फुट १ इंच चौड़ा है । बायीं ओरका जिनालय लोकाकार है और ४ फीट ५ इंच ऊंचा है। दोनों ही जिनालयों में १००० + २४ मूर्तियां बनी हुई हैं। इनमें १००० मूर्तियां सहस्रकूट जिनालयकी और २४ मूर्तियां वर्तमान २४ तीर्थंकरोंकी लगती हैं । लोकाकार जिनालयके ऊपर लेख उत्कीर्ण है । इसके अनुसार शक संवत् १५४१ माघ वदी ८ को काष्ठासंघ लाडबागड़गच्छ पुष्करगण लोहाचार्यान्वयके भट्टारक नरेन्द्र कीर्ति, उनके शिष्य हेमेन्द्रकीर्ति, उनके शिष्य प्रतापकीर्तिने बघेरवालजातीय पिवल्या गोत्रके पुंजा और उनके परिवारकी ओरसे इस सहस्रकूट जिनालयकी प्रतिष्ठा की ।
इसके ऊपरी भाग में भी लेख है। इसके अनुसार काष्ठासंघ नन्दीतट गच्छ विद्यागण रामसेनान्वयके भट्टारक श्री विद्याभूषण, उनके शिष्य भट्टारक श्रीभूषणने इसकी प्रतिष्ठा की । उपर्युक्त दो लेखों के कारण यह समझना कठिन है कि वस्तुतः किन भट्टारकने इसकी प्रतिष्ठा की । सम्भवतः भट्टारक प्रतापकीर्ति के उपदेश से इस जिनालयका निर्माण हुआ और भट्टारक श्रीभूषणने इसकी प्रतिष्ठा की ।
इस मन्दिर ( साहूके मन्दिर ) का भी एक अद्भुत इतिहास । इस मन्दिर में भगवान् शीतलनाथ की श्वेतपद्मासन मूलनायक प्रतिमा थी । घटना उस समयकी है, जब इस मन्दिरपर मुस्लिम काल में मुसलमानोंका आक्रमण होनेवाला था । आक्रमण होनेसे पहले एक सज्जनको रात्रि में स्वप्न हुआ, 'तुम मुझे यहाँसे तत्काल हटा दो।' प्रातः काल होनेपर उसने शुद्ध वस्त्र पहनकर छिपाकर मूर्तिको वहाँसे हटा दिया और कहीं छिपा दिया। थोड़े समय बाद ही मुसलमानोंने