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________________ धर्मशाला मेला महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्रपर एक धर्मशाला है । इसमें ३५ कमरे हैं । क्षेत्रपर बिजली है, दो कुएँ हैं । क्षेत्र का वार्षिक मेला माघ सुदी ५ से ७ तक होता है। इस अवसरपर रथयात्रा निकलती है । अहाते के भीतर भगवान्‌की शोभायात्रा निकलती है । इस अवसरपर ४-५ हजार व्यक्ति सम्मिलित हो जाते हैं । क्षेत्रका पता इस प्रकार है २८१ मन्त्री, श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ पो. पिंपरी देशमुख (जि. परभणी ) महाराष्ट्र जिन्तूर मार्ग और अवस्थिति महाराष्ट्र प्रान्त में दक्षिण-मध्य रेलवेकी काचेगुड़ा-मनमाड़ शाखा लाइनके परभणी स्टेशन से ४२ कि. मी. जिन्तूर नगर है और वहांसे लगभग ४ कि. मी. दूर सह्याद्रि पर्वतपर श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अवस्थित है । जिन्तुर नगर तक पक्की सड़क है तथा परभणीसे बससेवा चालू है | नगरसे क्षेत्र तक कच्ची सड़क है । इतिहास इस नगरका प्राचीन नाम जेनपुर है । जेनपुरसे जिन्तूर किस प्रकार हो गया, इस सम्बन्धमें सैदुल कादरी द्वारा लिखित फारसीकी एक पुस्तकमें विवरण दिया गया है । यह पुस्तक ताड़पत्रपर लिखी हुई है और यहांकी मसजिदमें सुरक्षित है। इस पुस्तकमें इस क्षेत्र और नगरका जो विवरण मिलता है, उससे पता चलता है कि कादरी अफगानिस्तानसे दिल्ली आया था । वह दिल्ली से अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह में पहुँचा । वहाँके वलीने उसे बताया कि तुम दक्षिणमें जैनपुर जाओ । वहाँ बड़ा मजबूत किला है । रातमें उसके द्वार बन्द हो जाते हैं और सुबह खुलते हैं । तुम उसे जाकर विजय करो। गाँव के नजदीक पहाड़पर गुफाएँ हैं जिनमें अन्धकार रहता है । उन गुफाओं में बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं । वलीके आदेशसे कादरी अजमेरसे खुलताबाद, दौलताबाद होता हुआ जैनपुर पहुँचा । उन दिनों जैनपुर यमराज और नेमिराज नामक दो जैन भाइयोंकी जागीर था । कादरीने बादशाहकी सेनाकी सहायता नगरको जीत लिया और यहाँकी तथा क्षेत्रकी मूर्तियों का विध्वंस किया तथा मन्दिरोंको मसजिद बना दिया। यह घटना हिजरी सन् ६३१ की है। नगरको जीतकर उसका नाम जिन्तूर रख दिया । तबसे इस नगरको जिन्तूर कहा जाने लगा । मुसलमानोंके वार्षिक उत्सव के समय इस ग्रन्थका पाठ किया जाता है संवत् १५३२ में नांदगाँव निवासी बघेरवाल जातीय वीर संघवी आये । यहाँके मन्दिरोंकी भग्नावस्था देखकर उन्हें बड़ा दुःख हुआ । तब उन्होंने इन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया । कहते हैं, नगर में पहले १४ जैन मन्दिर थे और ३०० घर जैनोंके थे। इनमें वर्तमानमें २ मन्दिर विद्यमान ३६
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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