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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ लोभने आ घेरा । वह पुष्कल मात्रामें स्वर्ण बनाने लगा और व्यसनोंमें लिप्त रहने लगा। अकस्मात् ही उसकी सम्पन्नता और व्यसनोंको देखकर कुछ लोगोंने उसकी शिकायत जिलेके मुस्लिम अधिकारीसे कर दी। अधिकारीको ज्ञात हो गया कि उसकी सम्पन्नताका कारण मूर्तिके अंगूठेमें
हई पारसमणि है। जिलाधिकारी कछ सैनिकोंको लेकर वहां आया। वह ज्यों ही मणि निकालनेके उद्देश्यसे मति के निकट पहँचा, अकस्मात् विस्फोटका-सा भयानक शब्द हुआ और मणि मूर्ति के अंगूठेसे निकलकर पूर्णानदीमें जा गिरी। सभी सैनिक और वह अधिकारी बेहोश हो गये। जब सब लोग होशमें आये तो पुजारीने शासकसे कहा-"पारसमणि तो स्वयं निकलकर पूर्णा नदीमें गिर गयी है। अब आप लोग वापस लौट जाइए।" जिला-शासकने मणिको आकाशमार्ग द्वारा नदोकी ओर जाते हए देख लिया था। उसे आशा थी कि कोशिश करनेपर मणि प्राप्त हो सकती है। उसने हाथियोंके पैरों में लोहेकी जंजीर बाँधकर नदीमें भेजा। जब हाथी निकले तो एक हाथीकी जंजीरकी कुछ कड़ियां सोनेकी हो गयी थीं। उसने नदीमें मणि ढुंढ़वानेका बहुत प्रयत्न किया, किन्तु मणि नहीं मिल सकी। अन्तमें निराश होकर वह वापस लौट गया।
मणि निकल जानेपर मूर्तिके पैरका अंगूठा खण्डित हो गया है तथा उखलदसे लाते समय उस मूर्तिके हाथ को अंगुलियाँ खण्डित हो गयी हैं। इस क्षेत्रके सम्बन्धमें ब्रह्मज्ञानसागरने 'सर्वतीर्थ वन्दना' में इस प्रकार लिखा है
'पूर्णा नाम पवित्र नदि तस तीर विसालह । नामे ग्राम उखलद जिहाँ जिननेमि दयालह । सार पार्श्व पाषाण कर अंगुष्ठे जाणो। अगणित महिमा जास त्रिभवन मध्य बखाणो ।। प्रगट तीर्थं जाणी करी भविकलोक आवे सदा ।
ब्रह्मज्ञानसागर वदति लक्ष लाभ पावे तदा ॥६०॥' क्षेत्र-दर्शन
क्षेत्रके चारों ओर अहाता और धर्मशाला बनी हुई है। धर्मशालामें दो बड़े प्रवेश-द्वार हैं। मध्य में मन्दिर बना है। गर्भगृहमें मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी श्यामवणं अर्धपद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना ५ फीट ( आसन सहित ) है। यह एक शिलाफल कमें उत्कीर्ण है। भगवान्के सिरके ऊपर छत्रत्रयो है। सिरके पीछे भामण्डल सुशोभित है। ऊपर कोनोंपर माला लिये हुए देव हैं । अधोभागमें दोनों पाओंमें चमरेन्द्र हैं। प्रतिमाके वक्षपर श्रीवत्स है। चरण-चौकीपर शंख लांछन अंकित है।
इस वेदोपर ३ पाषाणकी और १० धातुकी प्रतिमाएं विराजमान हैं।
गर्भगृहके बाहर सभामण्डपमें ५-५ कटनीवाली दो वेदियाँ बनी हुई हैं। बायीं ओरकी वेदीपर १९ पाषाणको तथा १ धातुको मूर्तियाँ रखो हैं । चबूतरेपर १ धातुको मूर्ति रखी है। गर्भगृहके द्वारपर बायीं ओर पद्मावती देवीको एक पाषाण मूर्ति है। दायीं ओरकी वेदीपर २३ पाषाणमूर्तियाँ हैं। चबूतरेपर एक पाषाण-फलकमें पद्मावतो देवो है। ये सब मूर्तियाँ आष्टा (परभणी) से लायी गयी हैं।
शिखर-वेदीपर पाश्वनाथ प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा रानीका कौलाशा गाँवसे लायी गयी है।