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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २७९ मेला क्षेत्रका वार्षिक मेला चैत्र शुक्ला १५ को होता है। इस अवसरपर भगवानकी पालकी निकलती है। सन् १९७४ में यहां पंचकल्याणक जिन-बिम्ब प्रतिष्ठा हुई थी, जिसमें लगभग ३ लाख व्यक्ति सम्मिलित हुए थे। क्षेत्रका पता मन्त्री, श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पो. पैठण ( जिला औरंगाबाद ) महाराष्ट्र नवागढ़ मार्ग और अवस्थिति __ श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़-उखलद महाराष्ट्र प्रान्तके परभणी जिलेमें अवस्थित है। यह मनमाड-काचीगुड़ा रेलवे लाइनपर (S.C. Rly) मिरखेल स्टेशनसे उत्तर दिशामें ३ कि. मि. की दूरीपर है। स्टेशनसे क्षेत्र तक सड़क है। क्षेत्रपर पहले सूचना भेजनेपर बैलगाडीका प्रबन्ध हो जाता है। अन्यथा स्टेशनपर कोई वाहन नहीं मिलता। क्षेत्र जंगलमें स्थित है। यहाँसे दो फलाँगकी दूरीपर (स्टेशनसे आते हुए रास्तेमें ) पिंपरी गांव है। वहाँ १० घर जैनोंके हैं। यहीं पर पोस्ट-ऑफिस है । क्षेत्रसे पूर्णानदी १ मील दूरी पर बहती है। अतिशयपूर्ण इतिहास पहले यह क्षेत्र पूर्णानदीके तटपर अवस्थित था। मन्दिर पाषाणका बना हुआ था। ५० वर्ष पूर्व नदीमें भयंकर बाढ़ आनेसे मन्दिर नष्ट हो गया, किन्तु मूर्तियाँ बच गयीं। तब मूर्तियोंको क्षेत्रके वर्तमान स्थानपर लाकर रख दिया गया। प्रयत्न करनेपर तत्कालीन निजाम सरकारने मन्दिरके लिए १० एकड़ भूमि प्रदान की। उस भूमिमें ही मन्दिरका नव-निर्माण किया गया, धर्मशाला बनायी गयी, रथशाला, व्यासपीठ आदिका निर्माण किया गया। यह सम्पूर्ण निर्माण ३७०४३०५ फीटके अहातेमें हुआ है। इस क्षेत्रको मूलनायक भगवान् नेमिनाथ-प्रतिमाके सम्बन्धमें एक रोचक किंवदन्ती प्रचलित है। कहते हैं, इस मूर्तिके पैरके अँगूठेमें पारस पत्थर जड़ा हुआ था। एक वृद्ध पुजारी भगवान्की और क्षेत्रकी पूजा-सेवा किया करता था। वह अपना उदर-निर्वाह इसी पारस पत्थरके द्वारा करता था। वह प्रतिदिन लोहेकी एक सुईको पारसमणिसे स्पर्श कराके स्वर्ण बनाता था और उसे बेचकर उदर-पोषण करता था। जब उसका मृत्यु-काल निकट आ पहुँचा, तब उसने अपने पुत्रको बुलाकर कहा-"पुत्र ! भगवान् नेमिनाथकी प्रतिमाके पैरके दायें अंगूठेमें पारसमणि लगी हुई है। मैं प्रतिदिन उससे लोहेकी सुईके बराबर सोना बनाकर उससे तुम लोगोंका पोषण करता था। तुम भी आवश्यकता-भरके लिए उससे स्वर्ण बनाकर अपना निर्वाह करना और भगवान्की सेवा-पूजा करते रहना। तुम्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा। याद रखो, कभी लोभ मत करना।" - इसके कुछ समय पश्चात् वृद्धको मृत्यु हो गयी। अब उसका पुत्र अपने पिताके समान भगवान्की सेवा करने लगा और स्वर्ण बनाकर निर्वाह करने लगा। कुछ समय पश्चात् उसे
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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