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________________ २७८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र-दर्शन क्षेत्रके मुख्य द्वारसे प्रवेश करनेपर दायीं ओर विशाल मन्दिर है। मूलनायक भगवान् मुनिसुव्रतनाथके नामपर यह मुनिसुव्रतनाथ मन्दिर कहलाता है। क्षेत्रसे गोदावरी नदी थोड़ी-सी दूर है। मन्दिर दो-मंजिला है। एक भूगर्भगृह और दूसरा ऊपरकी मंजिल । भूगर्भगृह आधुनिक बना हुआ है और उसमें प्रकाश और वायुको समुचित व्यवस्था है। सम्पूर्ण मन्दिरका जीर्णोद्धार हो चुका है। अतः यह नवीन दिखाई पड़ता है और किसी रूपमें इसमें प्राचीनताके दर्शन नहीं होते, यद्यपि यह मन्दिर पर्याप्त प्राचीन था ऐसा माना जाता है। इस मन्दिरमें कुल ५० मूर्तियां हैं । इनमें १५ मूर्तियां श्याम पाषाणकी, २२ मूर्तियाँ श्वेत पाषाणकी, २ मूर्तियां बादामी पाषाणकी, ९ मूर्तियां धातकी तथा १सहस्रकट जिनालय है। इनके अतिरिक्त १ मति मलनायककी है मूलनायकको छोड़कर शेष मूर्तियोंमें प्राचीनतम मूर्ति संवत् १५२८ को एक पाषाण-चौबीसी तथा संवत् १५३१ की एक धातु चौबीसी है । मूलनायक भगवान् मुनिसुव्रतनाथ तलघरको एक खुली वेदीमें विराजमान हैं। यह प्रतिमा श्याम वर्ण है, लेपदार है, अर्धपद्मासन मुद्रामें है तथा इसकी अवगाहना ३ फोट ७ इंच है। इसके कर्ण स्कन्धचुम्बी हैं, वक्षपर श्रीवत्स है। केशोंकी तीन पट्टियाँ अलंकृत हैं तथा हाथकी हथेलीपर भी श्रीवत्स बना हुआ है। इसकी चरण-चौकीपर कच्छप लांछन अंकित है जो मुनिसुव्रतनाथका लांछन है। इसके आगे विधिनायक मुनिसुव्रतनाथकी ८ इंच ऊँची और वीर संवत् २४८० में प्रतिष्ठित पीतलकी प्रतिमा है । इसी कालकी पाश्वनाथकी पीतलकी एक मूर्ति १० इंचकी विराजमान है। ऊपरकी मंजिल-यहां बड़ी वेदीपर भगवान् मुनिसुव्रतनाथकी ३ फीट २ इंच ऊँची संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित श्यामवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह वेदी ५ दरको है। इसमें कुल ३१ मूर्तियां विराजमान हैं । __ सभामण्डपमें बायीं ओर बादामी वर्ण की ५ फोट ३ इंच ऊंची एक पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इस मण्डपमें एक दरकी एक अन्य वेदी है। इसमें भगवान आदिनाथकी बादामी वर्णकी संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित और ३ फोट ४ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। इस वेदीपर ६ धातुकी और १ पाषाणकी और भी प्रतिमाएं विराजमान हैं। बायीं ओरकी एक भित्ति-वेदीमें २ खड्गासन तथा दायीं ओर १ फुट ११ इंच उत्तुंग २ खड़गासन प्रतिमाएँ हैं । जिस पीठासनपर ये खड़ी हैं, उनमें चिह्न बादमें उकेरे गये हैं। उनके अनुसार बायीं ओरकी प्रतिमा मल्लिनाथकी तथा दायीं ओरकी प्रतिमा आदिनाथकी है। इसी प्रकार दायीं ओर दो खड्गासन प्रतिमाएं हैं जो क्रमशः महावीर और नेमिनाथकी हैं। ऊपर शिखर-वेदीमें चबूतरेपर पार्श्वनाथकी शक संवत् १६७४ की १ फुट ३ इंच ऊंची श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। मन्दिरके आगे मानस्तम्भ है । तीन ओर धर्मशाला बनी हुई है। धर्मशाला क्षेत्रपर ४ धर्मशालाएं हैं जिनमें कुल ३० कमरे हैं। यहां बिजली, नल, बरतनों और लगभग १०० बिस्तरोंकी व्यवस्था है।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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