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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
उस समय उज्जयिनी में विक्रमादित्य नरेश राज्य कर रहा था । निमित्तज्ञोंने एक दिन उससे कहा - "देव ! प्रतिष्ठान में सातवाहन नामक बालक उत्पन्न हो गया है । वह आपका शत्रु होगा एवं आपके लिए कण्टकरूप सिद्ध होगा । राजा सुनकर चिन्तित हो उठा। तभी एक और घटना हो गयी । उज्जयिनी में एक वृद्ध गृहपतिने अपनी मृत्यु आसन्न जानकर अपने चारों पुत्रोंको बुलाया और उनसे बोला- “मेरी मृत्युके पश्चात् मेरी शय्याके दक्षिण पादसे प्रारम्भ करके शय्याके चारों पायोंके नोचे निधि कलश गड़े हुए हैं । तुम लोग उन्हें निकालकर चारों भाई अवस्था-क्रमसे एक-एक कलश ले लेना । तुम्हारे जीवन-निर्वाहके लिए वे यथेष्ट होंगे ।
यथासमय वृद्धकी मृत्यु हो गयी । तेरह दिन पश्चात् शुद्धि होनेपर चारों भाइयोंने वह स्थान खोदा तो उन्हें चार कलश मिले। उनमें एकमें स्वर्णं भरा था, दूसरे में मिट्टी, तीसरे में भूसा और चौथे में हड्डियाँ भरी हुई थीं। कोई उनका उद्देश्य नहीं समझा। तीनों छोटे भाई बड़े भाई से लड़ने-झगड़ने लगे और सोनेका बँटवारा करनेकी जिद करने लगे । जब आपस में मामला नहीं निबटा तो वे चारों राजदरबार में पहुंचे और राजासे न्याय करनेकी प्रार्थना की। राजा उन कलशोंका आशय नहीं समझा, अतः कोई निर्णय नहीं दे सका। तब वे चारों भाई न्याय प्राप्त करने के लिए महाराष्ट्रको चल दिये । वे प्रतिष्ठान नगर में पहुँचे और नगरके बाहर कुम्भकार शाला में जाकर ठहर गये। बालक सातवाहन उन चारों बन्धुओंकी चेष्टाएँ देखकर बोला"ब्राह्मण देवो ! आप चिन्ताकुल क्यों दिखाई पड़ रहे हैं ?" बालककी बात सुनकर ब्राह्मण बोले" कुमार ! तुमने कैसे जाना कि हम लोग चिन्तित हैं ।" बालक मुसकराकर कहने लगा- "मनुष्यके मुखके भाव और चेष्टाओंसे उसके मनके सब भाव ज्ञात हो जाते हैं । आप लोग मुझे अपनी चिन्ता बताइए, मैं उसका समाधान करूँगा ।" ब्राह्मण बन्धुओंने समझ लिया कि बालक साधारण बालकोंसे भिन्न और बुद्धिमान् है । इसे अपनी समस्या बताने में क्या हानि है । यह सोचकर उन्होंने बालकको सारी बात बतायी और कहा कि इसका समाधान कर सकते हो तो करो । बालक सुनकर पुनः मुसकराया और कहने लगा- " यह क्या कठिन है । मैं आपके झगड़ेका समाधान बताता हूँ, आप लोग सुनें । जिसे स्वर्णसे भरा कलश मिला है, वह उससे अपना काम चलावे | जिसके कलश में मिट्टी है, वह जमीन और मकानका मालिक होगा। जिसका कलश भूसे से परिपूर्ण है, वह भण्डार में सुरक्षित सम्पूर्ण धान्यका अधिकारी होगा। इसी प्रकार जिसके कलश में हड्डियाँ निकली हैं, वह गाय, भैंस, घोड़े, दास-दासी आदि जीवित पदार्थ ले ।
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यह निर्णय सुनकर चारों भाई बड़े प्रसन्न हुए और सन्तुष्ट होकर उज्जयिनी लौट गये । वहाँ उन्होंने एक बालक द्वारा किये गये समाधानकी चर्चा लोगों से की। जिसने भी यह निर्णय सुना, वही बालककी प्रशंसा करने लगा । उस निर्णयकी चर्चा महाराज विक्रमादित्य के कानों तक भी पहुँची । महाराजने उन चारों ब्राह्मण बन्धुओं को राजसभा में बुलाकर पूछा - " भद्रजनो ! सुना है, आप लोगों के विवादका सन्तोषकारक समाधान हो गया। कौन है वह बुद्धिमान् महाभाग जिसने इतना तर्कसंगत और न्यायपूर्ण निर्णय दिया है ?" ब्राह्मण बन्धुओंने निर्णय सुनाते हुए निवेदन किया- "देव ! यह निर्णय किसी वृद्धने नहीं दिया, अपितु एक बुद्धिमान् बालकने दिया है । वह प्रतिष्ठानपुरका निवासी है और उसका नाम सातवाहन है ।"
सातवाहनका नाम सुनते हो महाराज विक्रमादित्य चिन्तामें निमग्न हो गये । उन्हें निमित्तज्ञोंकी भविष्यवाणीका स्मरण हो आया । बाल्यावस्था में ही उस बालककी इस कुशाग्रबुद्धि और विवादों का उचित निर्णय करनेकी असाधारण क्षमताके कारण महाराज विक्रमादित्यको भय होने लगा कि यह बालक एक दिन कहीं मेरो सत्ताको ही चुनौती न देने लगे। उन्होंने