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________________ २७५ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थं पण्डितजीको अपनी भूल ज्ञात हुई तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ । वे भगवान् मुनिसुव्रतनाथ के सामने बैठे और भगवान्‌को आराधना करने लगे । रात्रि हुई तो सबने आश्चर्यसे देखा कि पैठणके ऊपर आकाशमें पूर्णचन्द्र खिला हुआ है ओर पैठणका सम्पूर्ण नगर, नदी-तट और वनप्रान्त ज्योत्स्नासे चमक रहा है । इस प्रान्त में जैन और जैनेतर जनतामें यहाँके मुनिसुव्रतनाथ भगवान् के नानाविध अतिशयों की नानाविध किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । फलतः अमावस्या और प्रति शनिवारको अनेक लोग यहाँ आते हैं और मुनिसुव्रतनाथके समक्ष मनौती मनानेसे उनकी व्यन्तरबाधा, नाना प्रकारके रोग और चिन्ताएँ दूर हो जाती हैं । एक प्राचीन गाथा पैठणका प्राचीन नाम प्रतिष्ठान था । प्रतिष्ठानमें २००० वर्षंसे कुछ पूर्वं सातवाहन ( जिसे शालिवाहन भी कहते हैं ) नामक राजा हुआ था । इस राजाके सम्बन्धमें श्वेताम्बर और हिन्दू साहित्य में नाना प्रकारकी कथाएँ और किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । ये किंवदन्तियाँ इतिहासकी दृष्टिसे भले ही मान्य नहीं हैं, किन्तु ये अत्यन्त रोचक हैं । यहाँ श्वेताम्बर साहित्य में वर्णित सातवाहन नरेशका जीवन-परिचय दिया जा रहा है जो किंवदन्तियों पर आधारित है । इसे पढ़कर यह तो स्वीकार करना ही होगा कि इस परिचय में इतिहासका अंश नहीं है, यदि है भी तो बहुत अल्प | दक्षिण भारत में महाराष्ट्र प्रान्तमें प्रतिष्ठान नामक एक प्रसिद्ध नगर था । एक बार दो ब्राह्मण भाई किसी ग्रामसे आकर अपनी विधवा बहनके पास किसी कुम्हारकी शाला में रहने लगे । वे भिक्षा द्वारा अपनी और अपनी बहनकी उदर-पूर्ति करने लगे । एक दिन उनकी बहन जल लानेके लिए गोदावरी नदीपर गयी । वहाँ अन्तर्हृदवासी नागराज शेषने उस सुन्दरीको देखा । उसके रूप और योवनसे कामासक्त होकर नागराजने मनुष्यका रूप धारण करके उस सुन्दरीके साथ बलात् सम्भोग किया तथा चलते समय उसे वचन दे दिया - "भद्रे ! जब कभी तुम्हारे ऊपर कोई विपत्ति आवे, तब तुम यहाँ आकर मुझे स्मरण करना, मैं तुम्हारी विपत्तिका निवारण करूँगा ।" यद्यपि नागराजका शरीर सप्तधातु रहित था, किन्तु उसकी दैवी शक्तिके कारण उस सुन्दरीके गर्भ रह गया । धीरे-धीरे गर्भं बढ़ने लगा । गर्भके लक्षणोंको देखकर दोनों भाइयोंके मनमें नाना प्रकारकी शंकाएँ घर करने लगीं; यहाँ तक कि वे एक दूसरे को भी शंकाकी दृष्टिसे देखने लगे। दोनोंके लिए यह स्थिति असह्य होने लगी, अतः एक दिन वे किसीसे कुछ कहे बिना भिन्न दिशाओं में चले गये । उनके जानेके पश्चात् बहन लज्जासे डूबी हुई किसी प्रकार अपना जीवन निर्वाह करने लगी । समय पूर्ण होनेपर उसने राजलक्षणोंसे युक्त एक सुन्दर तेजस्वी पुत्रको जन्म दिया। बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा । बाल्यावस्था में वह अन्य बालकोंके साथ विभिन्न क्रीड़ाएँ किया करता था, किन्तु उन क्रीड़ाओंमें अन्य बाल क्रीड़ाओंसे विशेषता रहती थी । क्रीड़ा करते समय वह सदा राजा बनता था तथा अपने साथी बालकों को अश्व, रथ, गज आदि बनाकर उनपर सवारी किया करता तथा दूसरे बालकोंको उनका दान करता था । इसके कारण उसका नाम सातवाहन पड़ गया । उस बालकका एक अन्य खेल भी था । वह बैठे-बैठे मिट्टी के हाथी, घोड़े, रथ और सैनिक बनाया करता था ।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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