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________________ २७४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बाजारमें है। (२) जैन मन्दिर-यह भी सर्राफा बाजारमें है। इस मन्दिरमें भोयरा भी है। यहां संवत् १२७२ और १३४५ की कई मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां किसी प्राचीन जैन मन्दिरकी थीं। उस मन्दिरके व्यवस्थापक पहले तो जैन थे, किन्तु उन्होंने जैनधर्म त्यागकर अन्य धर्म अपना लिया। ऐसी स्थितिमें भगवान्की पूजा-सेवा भी नहीं हो पाती थी। उन्होंने मन्दिरको किरायेपर उठा दिया। तब जैनबन्धु वहाँकी मूर्तियां इस मन्दिरमें ले आये। (३) खण्डेलवाल जैन मन्दिर-यह किराना बाजार में है। इसमें संवत् १५४८ से प्राचीन कोई प्रतिमा नहीं है । (४) यह मन्दिर सैतवालोंका है । इसमें चन्द्रप्रभ भगवान्की एक प्रतिमा संवत् १५४८ की है। शेष प्रतिमाएं इसके बादकी हैं। सवाई दिगम्बर जैन मन्दिरमें ऊपर तथा भोयरेमें कुल मिलाकर १६९ मूर्तियाँ हैं । यहाँ भगवान पार्श्वनाथकी एक मति ऊपरके भागमें तथा कई मतियाँ भोयरेमें हैं जिनका प्रतिष्ठा-काल संवत् १२७२ माघ सुदी ५ है। यहां संवत् १३४५ और १५४८ की भी मूर्तियाँ हैं। यहाँ पीतलका एक सहस्रकूट (?) जिनालय है। इसमें ७ कटनियां और गन्धकुटी बनी हुई हैं। इसमें चारों दिशाओंमें ६९४४ =२७६ मूर्तियां बनी हुई हैं। पैठण मार्ग और अवस्थिति श्री मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पैठण महाराष्ट्र प्रान्तके औरंगाबाद जिलेमें औरंगाबादसे दक्षिणमें ५१ कि. मी. दूर गोदावरीके उत्तरी तटपर अवस्थित है। औरंगाबादसे नियमित बस-सेवा है । पक्की सड़क है। जैन मन्दिर गोदावरीसे पर्याप्त ऊंचाईपर अवस्थित है, इसलिए नदीमें बाढ़के समय भी यह सुरक्षित रहता है। इस नगरका प्राचीन नाम प्रतिष्ठान था। प्राचीन कालमें प्रतिष्ठान नामके दो नगर थे(१) प्रस्तुत प्रतिष्ठान, जिसका वर्तमान नाम पैठण है। यह अश्वक ( महाराष्ट्र) की राजधानी था। (२) प्रतिष्ठानपुर, जिसे वर्तमानमें झूसी भी कहा जाता है और जो इलाहाबादके पास है। यह पुरुरवा आदि चन्द्रवंशी नरेशोंकी राजधानी था। प्राचीन कालमें यह नगर (पैठण ) आन्ध्र राज्यका मुख्य व्यापारिक केन्द्र था। यहाँ जल और थल दोनों ही मार्गोंसे व्यापार होता था। अतिशय सत्रहवीं शताब्दीके भट्टारक अजितकीर्तिके शिष्य चिमणा पण्डित यहां रहते थे। वे मराठी भाषाके विद्वान् कवि थे। यहां हिन्दू धर्मके महान् सन्त एकनाथजी तथा मुसलमानोंके प्रमुख मौलानासे उनकी मित्रता थी। इनके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती बहुत प्रचलित है। कहा जाता है कि एक दिन तीनों विद्वान् बैठे हुए धर्म-चर्चा कर रहे थे। उनमें से किसीने चिमणा पण्डितसे पूछा"आज कौन-सी तिथि है ?" पण्डितजीके मुखसे निकल गया-"आज पूर्णमासी है।" जबकि वास्तवमें उस दिन अमावस्या थी। उत्तर सुनकर दोनों विद्वान् मित्र हंस पड़े। किन्तु पण्डितजी बार-बार कहते रहे-"आज पूर्णमासी है।" तब निश्चय हुआ कि इसका निर्णय रात्रिमें हो जायेगा।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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