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________________ महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ २७३ औरंगाबादकी गुफाएँ मार्ग और अवस्थिति औरंगाबाद महाराष्ट्रका (मराठवाड़ा) प्रसिद्ध ऐतिहासिक और औद्योगिक शहर है। यह मनमाड-काचीगुड़ा रेलवे ( एस. सी. रेलवे एम. जी.) लाइनपर एक प्रसिद्ध स्टेशन है । यह जिलेका सदर मुकाम है। विख्यात ऐलोरा गुफाएँ इसके बिलकुल निकट ( २९ कि. मी. ) हैं तथा अजन्ताकी गुफाएँ यहाँसे लगभग ९० कि. मी. हैं। सन् १६१० में अबीसीनियाके मलिक अंवर उर्फ सैद अंवरने खिड़कीके निकट एक गाँव बसाया, जिसका नाम फत्तेनगर रखा गया। सन् १६२६ में अहमदनगरके राजाने उसपर अधिकार या। सन १६३७ में यह मगल साम्राज्यमें सम्मिलित हो गया। सन १६३५ से १६५३ तक औरंगजेब यहाँ सूबेदार बनकर रहा था। उसके नामपर इस गांवका नाम औरंगाबाद हो गया। औरंगजेबकी मृत्यु होने के पश्चात् प्रथम निजाम आसफशाहने इसे स्वतन्त्र करके इसे अपने राज्य में मिला लिया और हैदराबादको राजधानी बनाया। यहाँ औरंगजेबकी बेगम दिलरसबानूका मकबरा, जो ताजमहलकी शैलीपर बना है, तथा पनचक्की आदि कई चीजें दर्शनीय हैं । यह मकबरा रजिया बेगमका कहलाता है। निपट निरंजन गुफाएँ ___ बेगमपुरा मुहल्ला अथवा मकबरेसे उत्तरकी ओर लगभग ५ कि. मी. दूर १० गुफाएँ हैं । मकबरेसे आगे चलनेपर गुफाओंकी राहमें निपट निरंजन महादेवका एक मन्दिर बना हुआ है। उसीके नामपर ये गुफाएँ या लेणी 'निपट निरंजन गुफाएँ' कहलाती हैं। इन १० गुफाओं में ५ गुफाओंका समूह उत्तरकी ओर है और ५ गुफाओंका समूह दक्षिणकी ओर है। बायीं ओरकी गुफाओंमें प्रथम गुफा ७ फीट लम्बी और इतनी ही चौड़ी है। इसमें एक चबूतरेपर ६ फीट ८ इंच ऊंची और ५ फीट चौड़ी भगवान् अरनाथकी पद्मासन मूर्ति विराजमान है। ऊपर दोनों कोनोंमें पूष्पमाला लिये देव प्रशित हैं। तथा अधोभागमें चमरेन्द्र हैं। इस गफामें केवल यही एक जैन मूर्ति है, शेष मूर्तियाँ दीवारोंपर उत्कीर्ण हैं । वे बुद्ध धर्मकी हैं। " इससे आगे दो गुफाओंमें बौद्ध मूर्तियाँ हैं। चौथी गुफामें, जो अधबनी है, भित्तियोंपर बौद्ध मूर्तियां बनी हुई हैं । बायीं ओर एक पद्मासन जिनमूर्ति है । उसके दोनों पार्यों में चमरधारी इन्द्र हैं। सबसे अन्तिम गुफा ( क्रमसंख्या १ ) में दालानके बाह्य स्तम्भोंके शीर्ष भागमें अम्बिका, पदमावती आदि जैन देवियाँ उत्कीर्ण हैं । यहाँ इस गुफा-गुच्छकमें जैन और - गफा-गठकमें जैन और बौद्ध कलाका अद्भुत संगम दिखाई पड़ता है । वास्तवमें यह तत्कालीन धर्म-सहिष्णुताकी एक बेजोड़ मिसाल है। ___इस गुफा-समूहके पृष्ठ भागमें भी ५ गुफाओंका समूह है। गुफा नं. ६ में बौद्ध मूर्तियां बनी हुई हैं। इसके गर्भगृहको पृष्ठ दीवारमें बायीं ओर कमरे में एक पद्मासन तीर्थंकर-मूर्ति है। ( सर्वेक्षणके अवसरपर मूसलाधार वर्षा होनेके कारण इससे आगेकी गुफाओंका निरीक्षण नहीं किया जा सका )। इनमें कई गुफाएँ दो-मंजिली हैं । ये गुफाएँ पुरातत्त्व विभागके संरक्षणमें हैं। औरंगाबाद शहरसे यहाँ तक पक्की सड़क बनी हुई है। तांगे और स्कूटर मिलते हैं। शहरके जैन मन्दिर यहाँ शहरमें मुख्य ४ मन्दिर हैं। (१) शान्तिनाथ मन्दिर–पहले इसमें काष्ठासंघी भट्टारकोंका पीठ था। इसमें मुनियोंके ध्यानाध्ययनके लिए कमरे भी बने हुए हैं। यह सर्राफा ३५
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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