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________________ २७२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ( नासिक जिलेका वर्तमान चान्दौर ) थी । यादववंशी नरेश मान्यखेटके राष्ट्रकूट और कल्याणके चालुक्योंके तीन शताब्दी तक सामन्त रहे । किन्तु भिल्लमने सर्वप्रथम सार्वभौम राज्यको स्थापना की। इसने सन् १९८५ में राज्यारोहण किया और सन्.११९३ के लगभग उसका देहान्त हो गया। इसने अपने इस अल्पकालिक शासन-कालमें दक्षिणमें चालुक्य नरेश सोमेश्वर चतुर्थ, डोरासमुद्रके होयसल तथा चोल नरेश कुलोत्तुंग तृतीय तथा उत्तरमें मालवनरेश परमार विन्ध्यवर्मन, गुजरातके चौलुक्य भीम द्वितीय आदि अनेक शक्तिशाली राजाओंको पराजित करके उनके राज्यके अनेक नगरोंको अपने राज्य में मिला लिया और अपने राज्यका बहत विस्तार कर लिया। भिल्लमने देवगिरि नगरकी स्थापनाके साथ अभेद्य दुर्गका भी निर्माण कराया क्योंकि उस कालमें राजधानी सुदृढ़ किलेमें ही स्थापित की जाती थी। उसके पुत्र जैतुगि या जैत्रपालके सन् ११९६ के शिलालेखमें देवगिरिका राजधानीके रूपमें सर्वप्रथम उल्लेख प्राप्त होता है। भिल्लम जैनधर्मका अनुयायी था। इसने देवगिरिके दुर्गमें सहस्र स्तम्भवाला एक विशाल जैन मन्दिर बनवाया था। यह मन्दिर अब भी वहाँ विद्यमान है। मुहम्मद तुगलकने इसे मसजिदके रूपमें परिवर्तित कर दिया था। भारतके स्वाधीन होनेपर भारत सरकारने इसे भारतमाताका मन्दिर बना दिया। इस मन्दिरमें वर्तमानमें १५२ स्तम्भ हैं। मन्दिरका बहुभाग ध्वस्त हो चुका है और उसके स्तम्भ आदिका ढेर वहाँ पड़ा हुआ है। इस मन्दिरकी अनेक जैन मूर्तियां और मन्दिरके स्तम्भ, जिनमें जैन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, किलेके फाटकमें प्रवेश करनेपर खुले आसमानके नीचे मैदानमें रखे हुए हैं। इनमें स्तम्भोंके अतिरिक्त १९ जैन मूर्तियाँ हैं जो पद्मासन और कायोत्सर्गासनमें हैं। किलेकी एल दीवारमें भी एक जैन मूर्ति विराजमान है। सम्भवतः यह मूर्ति अम्बिकाकी है और उसके शीर्षभागपर नेमिनाथ तीर्थंकर विराजमान हैं। भारतमाता मन्दिरके स्तम्भों और छतोंमें धर्मचक्र आदि जैन प्रतीक दिखाई पड़ते हैं। जो पुरातत्त्व संग्रह मैदानमें है, वह भी इसी मन्दिरसे संग्रह किया गया है। - कुछ विद्वानोंकी धारणा है कि भिल्लम राजाका शासन-काल केवल ८-९ वर्ष ही रहा था। इतने अल्प कालमें वह इतना विशाल और सुदृढ़ किला नहीं बना सकता था। इस किलेका निर्माण राष्ट्रकूट वंशके किसी राजाने ९-१०वीं शताब्दीमें किया था। यह भी कल्पना की गयी है कि देवगिरिके निकट शूलिभंजनमें आचार्य जिनसेनने जयधवलाका शेष भाग लिखा था। उनके निकट ही अमोघवर्षने शिक्षा प्राप्त करके मान्यखेटको अपनी राजधानी बनाया था। वह जैन धर्मानुयायी था। सम्भवतः उसीने या अन्य किसी राष्ट्रकूटवंशी राजाने इस दुर्गका निर्माण किया था, किन्तु इस प्रकारका कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। फिर यह भी सिद्ध करना होगा कि उस राष्ट्रकूट नरेशके कालमें देवगिरि विद्यमान था अथवा उस राजाने देवगिरि नगरकी स्थापना की थी। एक अन्य विद्वान्की सम्मति के अनुसार वर्तमान भारतमाता मन्दिर मूलतः जैन मन्दिर था, उसका नाम 'लावण्य प्रासाद' था, उसे पुष्कल धन व्यय करके उज्जैनके श्रेष्ठी पृथ्वीधरने बनवाया था। उज्जैनके जैन मन्दिरमें सदन मण्डलगणि कृत पृथ्वीधर चरित नामक ग्रन्थकी हस्तलिखित प्रति सुरक्षित है। उसके आधारपर मन्दिर-निर्माणकी कल्पना की गयी है। किन्तु इस ग्रन्थकी प्रामाणिकता सिद्ध करना अभी शेष है। अस्तु । __इस किलेमें शिल्प संग्रह, हाथो हौज, बुर्ज, भारतमाता मन्दिर, मीनार, कालकोट, निजामशाही राजवाड़ा, मेंढ़ा तोप, खाई, बारहदरी, मोतीझील आदि वस्तुएँ दर्शनीय हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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