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महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ
२७१ दर्शनीय गुफाएँ
जैसा कि पूर्वमें निवेदन कर चुके हैं, यहांके गुफा-समूहमें क्रमांक १३ से २९ तककी गुफाएं हिन्दुओंकी हैं। इनमें कैलास नामक गुफा जगत्प्रसिद्ध है। यह वास्तवमें मानव कृतिका चमत्कार कहा जाता है । इसका शिल्प और अलंकरण अत्यन्त सूक्ष्म और भव्य है। इस कलापूर्ण गुफाका निर्माण राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज प्रथम ( ई. सं. ७५७-७८३ ) ने सन् ७५८ में प्रारम्भ किया था और इसका कार्य १५० वर्ष में पूरा हो पाया। इस प्रकारका उल्लेख क्रमांक १५ वाली गफामें अंकित एक शिलालेखमें उपलब्ध होता है । इसके निर्माणके लिए १२५.६४ ४८.८ मीटर पर्वतको खोदना पड़ा। इसका मध्यभाग ५०४३३ मीटर और ऊंचाई २९ मीटर है। इसमें शिव और विष्णु-परिवारसे सम्बन्धित अनेक मूर्तियां हैं। मूर्तियां सुडौल, भव्य और कलापूर्ण हैं।।
इसी प्रकार गुफा नं. १ से १२ पर्यन्त बौद्धधर्मी गुफाएं हैं। अजन्ताकी जगद्विख्यात गुफाएँ अपने कलापूर्ण चित्रांकन और शिल्पके लिए आदर्श कृति मानी जाती हैं। उनका समय ईसा पूर्व द्वितीय शतीसे ७वीं शती तक माना जाता है। वहाँकी कलाकी उस परम्पराको ऐलौराकी इन गुफाओंने जीवित रखा है। इन गुफाओंका निर्माण-काल ईसाकी ७वीं शतीसे ९वीं शती तक माना जाता है। इन गुफाओंमें क्रमांक १० 'सुतार झोंपड़ी' सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। सुतार झोपड़ी एक चेत्यग्रह है. शेष गफा विहार है। यह महायान सम्प्रदायके बौद्ध साधओंके निवास रूपमें प्र
इसका सभामण्डप ८५ फीट लम्बा, ४४ फीट चौड़ा और ३४ फीट ऊंचा है । चैत्यगृहमें बुद्धकी एक मूर्ति ११ फीट ऊंची है।
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दौलताबादका किला
औरंगाबादसे ऐलौराकी सुप्रसिद्ध गुफाओंकी ओर जाते समय वायव्य दिशामें १५ कि. मी. दूर बायीं ओर दौलताबादका सुप्रसिद्ध किला मिलता है। इतिहासमें इस किलेको मुहम्मद तुगलकके कारण विशेष ख्याति प्राप्त हुई, जब उसने दिल्लीसे अपनी राजधानी हटाकर देवगिरिके किलको अपनी राजधानी बनानेकी घोषणा की और देवगिरिका नाम परिवर्तन करके इसका नाम दौलताबाद रखा। उसने अपने विचारको मूर्तरूप देनेके लिए दिल्लीके सम्भ्रान्त और सम्पन्न परिवारोंको तलवारको नोकपर दौलताबाद चलनेके लिए बाध्य किया। दिल्लीके सम्पन्न परिवारोंका यह काफिला मरते-खपते दौलताबाद पहुंचा। लेकिन उस सनकी बादशाहने तबतक अपना पुराना विचार बदल दिया और पुनः उन्हें दिल्ली चलनेका आदेश दिया। ये परिवार मार्गके कष्टों और यातनाओंको सहते जब दिल्ली पहुंचे तो उनकी संख्या आधी रह गयी थी और उनकी सम्पति डाकुओं और सैनिकों द्वारा लूट लिये जानेके कारण अत्यल्प शेष रह गयी थी। मुहम्मद तुगलककी इस सनक और क्रूर मजाकने दौलताबादका नाम जहाँ प्रसिद्ध कर दिया, वहाँ इतिहासने इस बादशाह को 'अर्धविक्षिप्त' कहकर सम्बोधित किया।
इस नगरका प्राचीन नाम देवगिरि था। हेमाद्रि (व्रतखण्ड ) के अनुसार इस नगरकी स्थापना यादव वंशके नरेश भिल्लम पंचमने की थी और अपनी राजधानी देवगिरिमें स्थानान्तरित की। यह नरेश यादव वंशमें सूर्यके समान तेजस्वी था। यादववंशकी स्थापना द्वारावतीपुर नरेश
( नौवीं शताब्दीका । पूर्वाधं ) की थी। इसकी राजधानी चन्द्रादित्यपुर
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