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________________ २६८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ प्रथम पैनलमें २ अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं । इससे आगे स्तम्भमें एक देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है। ऊपर ४ देवियां हैं। द्वितीय पैनलमें परिकर सहित खड्गासन पार्श्वनाथकी प्रतिमा है। इसके दोनों ओरकी दीवारोंमें २-२ अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं । तीसरे पैनलमें २ अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं। ___सामनेकी दीवारमें १ अर्धपद्मासन प्रतिमा है। गर्भगृहके बाह्य स्तम्भोंपर २ खड्गासन प्रतिमाएं बनी हुई हैं । गर्भगृहमें अर्धपद्मासन प्रतिमा विराजमान है । बाह्य स्तम्भसे आगे दीवारमें एक अर्धपद्मासन प्रतिमा है। दायीं ओरकी दीवारमें ३ पैनल बने हुए हैं। पहले पैनलमें २ पद्मासन, दूसरेमें खड्गासन और अगल-बगलकी भित्तियोंमें २-२ पद्मासन तथा तीसरे पैनलमें २ अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं । इस गुफाके स्तम्भ अलंकृत हैं। अलंकरण अत्यन्त कलापूर्ण है। गुफाके बाहर शिलाओंमें २ खड्गासन और २ पद्मासन मूर्तियां बनी हैं। ऊपरी मंजिल-गुफा नं. ३२ से जो मार्ग आता है, उस द्वारके दोनों ओर पद्मासन और ऊपर खड्गासन प्रतिमाएं हैं । इस मण्डपमें १६ स्तम्भ हैं। इस गुफाके स्तम्भ नं. ३२ के समान अलंकृत नहीं हैं। बायीं ओरकी दीवारमें ७ पैनल, १ कमरा और ३ स्तम्भ बने हुए हैं। इनमें अर्धपद्मासन, पद्मासन और खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, जिनकी कुल संख्या २८ है। ___ गर्भगृहमें अर्धपद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृहकी बाहरी दीवारमें एक ओर गजारूढ़ धरणेन्द्र है तथा दूसरी ओर पद्मावती देवी है। इनके अतिरिक्त इस दीवारमें १३ तीर्थकर प्रतिमाएँ और हैं। इसी प्रकार दायीं ओरकी दीवार में २१ प्रतिमाएँ हैं। इस दीवारमें भी एक प्रकोष्ठ बना हुआ है। इस मण्डपके बाहरकी ओर एक शिलामें एक देवी-मूर्ति बनी हुई है। किन्तु अब उसका केवल मुख और मुकुट शेष रह गया है। शेष भाग नष्ट कर दिया गया है । दायीं ओरकी बाह्य दीवारमें ३ कोष्ठकोंमें ३ अर्धपद्मासन प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मध्यमें पाश्वनाथ हैं । ये भूरे वर्णके हैं । शेष दोनों प्रतिमाएं काली पड़ गयी हैं। गुफा नं. ३४ के बाहर एक जलकुण्ड है। इसमें पहाड़से जल झरता रहता है। इस गुफाके बाहर बरामदा बना हुआ है। मण्डपमें कुल ४ स्तम्भ हैं। बायीं ओरकी दीवारमें ३ पैनल बने हुए हैं । मध्य पैनलमें पार्श्वनाथकी प्रतिमा है तथा शेष दोनों पैनलोंमें २-२ प्रतिमाएँ हैं। ___सामने दीवारमें गजारूढ़ यक्ष और सिंहारूढ़ यक्षी मूर्ति है। उसके एक हाथमें शक्ति है तथा दूसरा हाथ वरद मुद्रामें है। गर्भगृहमें अर्धपद्मासन प्रतिमा विराजमान है। दायीं ओरकी दीवारमें पहले पैनलमें २ अर्धपद्मासन, दूसरे पैनलमें १ खड्गासन प्रतिमा है। इसके बायीं ओर चमरेन्द्र खड़ा है। दायीं ओरका भाग, तीसरा पैनल और स्तम्भ तोड़ दिये गये हैं। इस मण्डपके स्तम्भ साधारण अलंकृत हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर गुफा नं. ३० से उत्तरकी ओर एक कच्चा मार्ग पहाड़के ऊपर गया है जो पाश्वनाथ मन्दिर तक जाता है। मार्ग चौड़ा है। लगभग ३ फलांग जानेपर पार्श्वनाथ मन्दिर आता है। इस
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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