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महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ
२६७ मण्डपकी बायों दीवारमें एक पैनलमें ५ फोट ५ इंच ऊंची अर्धपद्मासन प्रतिमा है। परिकरमें छत्र और चमरेन्द्र हैं। इससे आगे स्तम्भमें दो पद्मासन प्रतिमाएं हैं। इससे अगले पैनलमें १२ फोटकी पाश्वनाथ भगवान्की खड्गासन प्रतिमा है। परिकरमें कमठासुर कृत उपसगं प्रदर्शित हैं। अनेक असुर भगवान्को नाना प्रकारके भय दिखाकर ध्यानसे विचलित करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। धरणेन्द्र फण फैलाकर भगवान्की रक्षा कर रहा है। निश्चय ही यह प्रतिमा भक्ति और वैरका समन्वित रूप है । इस प्रकारको प्रतिमाएँ यहाँ और भी हैं। इससे आगे एक स्तम्भमें ऊपरनीचे दो पद्मासन प्रतिमाएं हैं।
गर्भगृहके प्रवेश-द्वारके दोनों ओर स्तम्भोंमें पद्मासन प्रतिमाएं ऊपर-नीचे हैं। गर्भगृहमें अर्धपद्मासन प्रतिमा विराजमान है।
दायीं ओरकी दीवारमें ऊपर-नीचे ३ कोष्ठक बने हैं। इनमें क्रमशः २-२ और ३ प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। आगे एक स्तम्भमें ३ प्रतिमाएँ हैं। इससे अगले पैनलमें ६ फीट ३ इंच ऊंची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। दोनों पावों में देवियाँ हैं, जिनके दोनों हाथोंमें चमर हैं। उससे आगेके स्तम्भमें दो अर्धपद्मासन प्रतिमाएं हैं। फिर एक कोष्ठक है जिसमें अर्धपद्मासन प्रतिमा है। दोनों ओर चमरवाहक हैं।
मण्डपके एक स्तम्भपर खड़गासन पाश्र्वनाथकी प्रतिमा उत्कीर्ण है। बायीं ओर पद्मावती देवी दण्ड धारण किये है । दायीं ओर हाथ जोड़े हुए धरणेन्द्र है। उसकी बांहमें कमण्डल लटका हुआ है।
इस गुफामें-से गुफा नं. ३४ में जानेका मार्ग है।
गुफा नं. ३४-इस गुफाके दूसरे भागमें, जिसमें सामनेसे प्रवेश करते हैं, ४ स्तम्भ हैं । बायीं ओरसे पहले स्तम्भमें वीणा लिये एक देवी प्रदर्शित है। ऊपर ४ देवियां नृत्य कर रही हैं। दूसरे स्तम्भमें एक देवी त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। ऊपर ४ देवियां नृत्य कर रही हैं। इस स्तम्भके पृष्ठ भागमें अलंकार धारण किये हुए यक्ष बैठा है। उसके हाथमें शक्ति है। स्तम्भके तीसरी ओर एक वीणावादिनी और नत्यमद्रामें ४ देवियां हैं। स्तम्भके चौथी ओर एक देवी त्रिभंग मुद्रामें पीठ किये हुए खड़ी है। तीसरे स्तम्भमें एक देवी नृत्यमुद्रामें खड़ी है। उसके पार्श्वमें एक बौना व्यक्ति चमर लिये खड़ा है। ऊपर २ स्त्रियाँ नृत्य कर रही हैं। इस स्तम्भके दूसरी ओर एक देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है और नृत्य कर रही ४ देवियां हैं। तीसरी ओर एक देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है और ३ देवियाँ नृत्य कर रही हैं। चौथी ओर एक देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है और ४ देवियाँ वीणावादन और नृत्य कर रही हैं। चौथे स्तम्भमें एक देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है और हाथमें बिजौरा फल लिये हुए है। इन सभी मूर्तियोंमें देहका गठन, शरीर-सौष्ठव और भंगिमा आदि इन सभी रूपोंमें कलाका पूरा निखार है। इस कलाका उद्भव साधारण छैनी-हथौड़ोंसे नहीं, शिल्पीकी कल्पना और निपुणतामें-से हुआ है।
बायीं ओर बरामदेमें गोमेद यक्ष ललितासनमें गजारूढ़ है। अलंकार धारण किये हुए है। वह एक हाथसे हाथीकी सूंड पकड़े है और दूसरे हाथमें बिजौरा फल लिये हुए है। उसके सिरके ऊपर वृक्ष है। दोनों ओर सेवक यक्ष-दम्पती है। यक्षी चमर लिये है । दायीं ओर अम्बिका देवी सिंहपर ललितासनमें बैठी है। उसके सिरके ऊपर आम्रगुच्छक है। उसके दोनों ओर यक्ष-दम्पती है। वृक्षके पास शार्दूल है। सिंहके निकट एक व्यक्ति खड़ा है। बायीं ओर एक भक्त स्त्री हाथ जोड़े हुए खड़ी है।
इस गुफाका मण्डप २० स्तम्भोंपर आधारित है। बायीं ओरकी दीवारमें ३ पैनल बने हैं।