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________________ २६४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कोनोंपर पुष्पवर्षा कर रहे हैं। बायीं ओर महिषवाहिनी पद्मावती देवी है। उसके निकट एक यक्षी हाथमें एक यष्टिका लिये खड़ी है। उसने यष्टिकाको पीठकी ओर कर रखा है। नीचे नागपुरुष और नागकन्या खड़े हैं। दायीं ओर सिंहारूढ़ धरणेन्द्र है। उनके वाम हस्तमें कटार है। दक्षिण हस्त वरद मुद्रामें है । इससे नीचे भक्त दम्पती भक्ति-मुद्रामें बैठे हैं । इससे आगेके स्तम्भमें पद्मासन प्रतिमा है। उससे आगेके पैनलमें पहलेके समान पार्श्वनाथ भगवान्को प्रतिमा है। सामने गजपर ललितासनमें यक्ष आरूढ़ है। यक्षकी यह मूर्ति शिल्पकलाका एक बेजोड़ नमूना है। उसके सिरके ऊपर सम्भवतः सिद्धार्थ वृक्ष है, किन्तु वृक्षको मनोहारी रचना शैलीसे इसके आम्रवृक्ष होनेकी भी सम्भावना हो सकती है। यक्ष सिरपर मुकुट धारण किये है, कन्धेपर यज्ञोपवीत सुशोभित है; उसने रत्नहार, कुण्डल, भुजबन्द और रत्नमेखला धारण कर रखी हैं । उसके ऊपर तथा दोनों पावों में पद्मासन तीर्थंकर-मतियाँ हैं। अधोभागमें दोनों ओर दण्डधारी सेवक हैं। गर्भगृहके द्वारपर बायीं ओर खड्गासन प्रतिमा है। दायीं ओरकी मूर्ति तोड़ दी गयी है। इससे आगे अम्बिका-मूर्ति है। उसके सिरपर आम्रगुच्छक है। इससे आगे दीवारमें एक यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति आसनसहित भगवान्को सिरपर उठाये हुए है। भगवान् पद्मासन मुद्रामें हैं। सिरके ऊपर तीन छत्र हैं । चमरेन्द्र चमर लिये हुए भगवान्की सेवामें रत हैं। दायीं ओरकी दीवारमें तीन पैनल या कोष्ठक बने हैं। पहले कोष्ठकमें खडगासन तीर्थंकर प्रतिमा है। प्रतिमाका पाषाण बीचमें-से चीर दिया गया है। प्रतिमाके शीर्षपर छत्र सुशोभित है। छत्रोंके ऊपर पद्मासन प्रतिमा है। दोनों पाश्ों में ४-४ देव नृत्य-मुद्रामें प्रदर्शित हैं। दूसरे कोष्ठकमें १२ फीट ऊंची बाहुबली स्वामीको खड्गासन प्रतिमा है। गोम्मटेश्वर बाहुबलो घोर तपस्यामें लीन हैं। माधवी लताएं उनके शरीरपर चढ़ गयी हैं। लताओंसे उनका सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है। ऊपर तथा कोनोंपर देव-देवियां नृत्यगान द्वारा अपना मोद प्रकट कर रही हैं। देव गोम्मटेश्वरके ऊपर पुष्पवर्षा कर रहे हैं 1 नीचे गन्धर्वबालाएं माधवी लताएँ हटा रही हैं। बायीं ओर चरणोंके निकट चक्रवर्ती भरत राजसी अलंकार और परिधान धारण किये हुए उन्हें नमस्कार कर रहे हैं। तपस्वी मुनिराजके निकट हरिण-मिथुन स्वच्छन्द विचरण कर रहा है। बाहुबलीकी यह प्रतिमा उनके केवलज्ञानसे कुछ पूर्वकी है क्योंकि इसमें गन्धर्वबालाएं लताओंको हटाती हुई दीख पड़ती हैं। भरत द्वारा अपनी लघुता निवेदन करते हो बाहुबलीके मनसे जब यह विकल्प दूर हो गया कि वह जिस भूमिपर खड़े हैं, वह भरतकी है तो उसी क्षण उन्हें केवलज्ञान हो गया था। तीसरे कोष्ठकमें परिकर सहित पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रामें खड़े हैं। बायीं ओर अलंकारमण्डित पद्मावती देवी है तथा दायीं ओर अस्पष्ट धरणेन्द्र है। अधोभागमें अलंकृत दम्पती बैठा है। ___ इससे आगे एक स्तम्भमें एक ओर पद्मासन और दूसरी ओर खडगासन प्रतिमाएं हैं। बायीं ओर हाथ जोड़े हुए दम्पती है तथा दायीं ओर भक्त श्रावक हैं। ___ इस गुफाके गर्भगृहमें भगवान् महावीरकी साढ़े पांच फीट ऊंची अर्धपद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसके शिरोभागपर छत्रत्रय हैं। उनके ऊपर दुन्दुभिवादक है। उसके दोनों पाश्र्वोमें देव पुष्पवर्षा कर रहे हैं। भगवान्के दोनों ओर सौधर्म और ऐशानेन्द्र चमर लिये खड़े हैं । इस मण्डपमें बाहरके दालानमें दायीं ओर दो ऊँचे छोटी गुफानुमा गर्भगृह हैं, जिनमें से एकमें छह फीटकी अवगाहनामें तीर्थंकर पार्श्वनाथकी मूर्ति है तथा ३ फीट १० इंच ऊँची तीर्थंकरकी एक अन्य मूर्ति है। दोनोंके साथ पारम्परिक परिकर है। पार्श्वनाथके बायीं ओर महिषारूढ़ पद्मावती तथा दायीं ओर सिंहारूढ़ धरणेन्द्र हैं। प्रथम गुफाके द्वारपर बायीं ओर गजारूढ़ मातंग
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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