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________________ महाराष्ट्रके दिगम्बर जैन तीर्थ २६५ और दायीं ओर सिद्धायिका हैं। दोनों ही अलंकार धारण किये हुए हैं। इस बाह्य भित्तिमें ६ फोट ऊँची बाहुबली प्रतिमा है। परिकर बाहुबलीकी पूर्व वर्णित प्रतिमाके समान है। इसमें केवल भरत नहीं हैं। इस मण्डपके पार्श्वमें दूसरा मण्डप है। इसमें प्रवेश करते ही बायीं ओर दालानमें १०-१० फीट ऊंची दो कायोत्सर्गासन मूर्तियोंके दर्शन होते हैं। मण्डप १६ स्तम्भोंपर आधारित है। इसके गर्भगृहमें ४ फीट ५ इंच ऊँची पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा है। यह प्रतिमा महावीर स्वामीकी कही जाती है, यद्यपि इसके पादपीठपर कोई लांछन नहीं है। इसके सिरके ऊपर तीन छत्र सुशोभित हैं। दोनों पाश्वों में चमरेन्द्र हैं। गर्भगृहके द्वारपर बायीं ओर मातंग यक्ष है। उसके बगलमें एक सेवक देव खड़ा है। दायीं ओर सिद्धायिका देवी ललितासनमें आसीन है। बायीं ओर एक सेविका देवी खड़ी है और दायीं ओर छत्र, चमर लिये हुए देव दम्पती हैं। बायीं ओरकी दीवारमें भगवान् पार्श्वनाथकी १२ फीट ऊँची खड्गासन प्रतिमा है। इससे आगेके पैनलमें एक पद्मासन प्रतिमा है। दायों दीवारमें तीन कोष्ठक बने हुए हैं। पहले कोष्ठकमें अर्धपद्मासन प्रतिमा है। दूसरे में बाहबली स्वामी तपस्या में लीन खड़े हैं। भरत सहित इसका परिकर पूर्ववत् है। तीसरे कोष्ठकमें आदिनाथ भगवान्की पद्मासन प्रतिमा है। इससे आगे बरामदेमें दायीं ओर एक गुफानुमा गर्भगृह है। जिसमें १० फीट ऊंचे एक शिलाफलकमें पद्मासन प्रतिमा है । एक स्तम्भमें खड्गासन प्रतिमा है । दायीं ओर ऊपर जानेवाली सीढ़ीके पास पाश्वनाथ प्रतिमा है। पृष्ठ भागमें सर्पवलय है। इसके बायीं ओर पद्मावती और दायीं ओर धरणेन्द्र हैं। गर्भगहके द्वारपर बायीं ओर गोमेद यक्ष और दायीं ओर अम्बिकाकी प्रतिमाएँ हैं। इससे आगे दायीं ओर दीवारमें बाहुबली स्वामीकी प्रतिमा है। इसमें भी माधवी लताएं हटाती हुई देवियां प्रदर्शित हैं। इसके बगलमें भी एक गर्भगृह है। उसमें ५ फोट १० इंच ऊंची अर्धपद्मासन प्रतिमा है। ऊपरी मंजिल-सीढ़ीपर ऊपर चढ़ते ही अम्बिका और गोमेद यक्षकी बड़ी भव्य अलंकृत मतियां हैं। उनके सिरके ऊपर आम्रगच्छक और आम्रवक्ष हैं। यहाँका मण्डप २० स्तम्भोंपर आधारित है। इसके स्तम्भ सुडौल और अलंकृत हैं। दो स्तम्भोंमें तीन ओर खड्गासन मूर्तियाँ हैं। मण्डपके मध्यमें एक चबूतरेपर एक पाषाण-खण्ड रखा है जो सम्भवतः सर्वतोभद्रिकाका पीठासन है। इसमें चरण बने हुए हैं। बायीं ओरकी दीवारमें क्रमशः यक्षी, दो पद्मासन तीर्थंकर, दो अर्धपद्मासन तीर्थंकर, ८ फीट ऊँची अर्धपद्मासन प्रतिमाएँ हैं। उनसे आगेके दो कोष्ठकोंमें २-२ पद्मासन तीर्थंकरप्रतिमाएं हैं। गर्भगृहमें ४ फीट ५ इंच ऊँची अर्धपद्मासन महावीरको प्रतिमा है। गर्भगृहके द्वारस्तम्भोंपर खड्गासन मूर्तियाँ हैं। ____सामने दीवारमें क्रमशः दो पद्मासन प्रतिमाएँ, स्तम्भमें १ प्रतिमा, फिर १२ फीट ऊँचे शिलाफलकमें पाश्र्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। इसके पृष्ठभागमें सर्पवलय है। फणावलिके ऊपर दुन्दुभभिवादक हैं, देव पुष्पवर्षा कर रहे हैं। बायीं ओर पद्मावती देवी तथा दायीं ओर सिंहारूढ़ धरणेन्द्र हैं । अधोभागमें भक्तदम्पती है। गर्भगृहके द्वारसे आगे स्तम्भमें एक ओर खड्गासन तथा दूसरी ओर पद्मासन प्रतिमाएँ हैं। आगे गोम्मटेश्वर बाहुबलीकी १२ फीट ऊंची कायोत्सर्गासन प्रतिमा है। इसके शीर्षपर छत्र हैं, देव पुष्पवर्षा कर रहे हैं। देवियाँ माधवी लताएं हटा रही हैं। चक्रवर्ती भरत एक ओर हाथ जोड़े हुए बैठे हैं। गोम्मटेश्वरके निकट हिरण, गाय, सर्प, सिंह आदि पशु बैठे हैं। लगता है, ३४
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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