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महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थ बाजूबन्द, मेखला धारण किये हुए हैं। चरणोंके निकट विनत मुद्रामें पति-पत्नी बैठे हैं। इस प्रतिमासे आगे एक पद्मासन प्रतिमा है । ऊपर छत्र हैं। दोनों ओर चमरवाहक हैं।
सामनेकी दीवारमें गोमेद यक्ष और अम्बिकाकी मूर्तियाँ हैं। यक्ष यज्ञोपवीत धारण किये हुए है। मुकुट, कुण्डल, हार, भुजबन्द, मेखला और कड़े आदि अलंकारोंसे मण्डित है। यक्ष ललितासनमें है। उसके इधर-उधर सेवक खड़े हैं। अम्बिका भी ललितासनमें सिंहारूढ़ है । उसकी बायीं गोदमें एक बालक है जो सम्भवतः शुभंकर है । बालकका सिर खण्डित है। अम्बिकाके दायें हाथमें आम्रफल है। सिरपर आम्रगच्छक है। बायीं ओर चमरवाहक खड़ा है।
दायीं ओरकी दीवारमें एक खण्डित पद्मासन प्रतिमा है। इससे आगे बाहुबलीकी ६ फीट ऊँची मूर्ति है । मूर्तिके सिरके पीछे तथा ऊपर छत्र हैं। उनके दोनों ओर पुष्पमालाएँ हाथमें लिये देव-देवियाँ दीख पड़ते हैं । बाहुबलीकी जंघाओं और भुजाओंके ऊपर माधवी लताएँ चढ़ गयी हैं, गन्धर्वबालाएँ उनको हटा रही हैं । बायीं ओर भक्त दम्पती हाथ जोड़े बैठा है।
___अन्दर गर्भगृहमें ४ फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। मूर्तिका सिर और मुख खण्डित है।
___ गुफा नं. ३२-इस गुफाको इन्द्रसभा कहते हैं। यह यहाँको जैन गुफाओंमें सबसे बड़ी है और दो-मंजिली है। यहाँ छतोंमें जो चित्रकारी की गयी है, उसका वैशिष्ट्य जगप्रसिद्ध है। यह अजन्ताकी चित्रकलाकी अनुकृति है। इस चित्रकलाके सम्बन्धमें कलाममंज्ञोंका विचार है कि परवर्ती भारतीय चित्रकलापर ऐलौराकी चित्रकलाका स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। जैन कलाशैलीके विकासशील तत्त्वोंका मूल कारण ज्यादातर ऐलौराकी कलाका रहा है। निश्चय ही यहाँकी चित्रकला अत्यन्त भव्य, सुरुचिपूर्ण और आकर्षक है। इन चित्रकृतियोंमें कई पौराणिक जैनकथानक और पारम्परिक दृश्य प्रदर्शित किये गये हैं।
इसी प्रकार इस गफाको उत्कृष्ट मर्तिकला और कलात्मक शिल्प विधानकी सराहना कला क्षेत्रोंमें की जाती है । यहांके सूक्ष्म शिल्पांगन, प्रतिमाओंके भव्य शिल्प कौशलके अतिरिक्त यहाँके शिलापट्टों और स्तम्भोंपर कलाके ललित पक्षके दर्शन भी प्रचुरतासे होते हैं। देव-देवियोंका अलंकरण और वस्त्रोंकी चुन्नटें कलाके विकसित रूपका प्रमाण हैं। नृत्य करती ललनाओंकी त्रिभंग मुद्रा, उनका केश-विन्यास और मोहक छवि आदि रूप पाषाणोंपर जितने सजीव और भव्यता लिये उभरे हैं, उनसे यहाँकी कला अमरता पा गयी है। यहांके प्रत्येक पाषाण खण्डमें शिल्पीके कौशल और तन्मयताके दर्शन होते हैं।
इस गुहा-मन्दिर में गर्भगृह, पूजामण्डप, उसके चारों ओर परिक्रमा-पथ हैं। मण्डपके आगे विशाल सहन है। इस सहन या प्रांगण में पहले २७ फीट ऊँचा एक पाषाणस्तम्भ था और उसके शीर्षपर बतुर्मुखी प्रतिमा विराजमान थी। किन्तु कुछ वर्ष पूर्व वह स्तम्भ भग्न हो गया। उसके भग्न भाग वहाँ अब भी पड़े हुए हैं, उसकी प्रतिमाएं भी भग्न दशामें पड़ी हैं। दायीं ओर एक विशाल आकारका पाषाण-गज बना है। उसकी पूंछ नहीं है । सम्भवतः वह भग्न हो गयी। द्वारके आगे ५ फीट ९ इंच ऊँचे पाषाण-स्तम्भमें सर्वतोभद्र प्रतिमा है। मूर्तियोंके मुख खण्डित हैं। मूर्तियोंके सिरके ऊपर छत्र हैं। छत्रोंके दोनों ओर देव पुष्पवर्षा करते हुए दीख पड़ते हैं। चमरवाहक सेवामें चमर लिये उपस्थित हैं।
मण्डपमें प्रवेश करते हो स्तम्भमें पद्मासन मुद्रामें तीर्थंकर प्रतिमा उत्कीर्ण है। दूसरे भागमें बाहुबलीकी मूर्ति है। सभा-मण्डपमें बायीं ओरकी दीवार में १२ फोट ऊंची तीर्थंकर पार्श्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। यह सप्त फणावलि मण्डित है। देवगण शिरोभागमें वाद्य-वादन तथा दोनों