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________________ म्बर जैन तीर्थ २६१ लावण्य, मनोज्ञता और विराग-जैसी कोमल भावनाओंको उभारनेमें यहाँके शिल्पीने कलाको उसके उच्चतम शिखरपर पहुंचा दिया है। यहाँको जैन मूर्तियोंमें जो समानुपातिकता परिलक्षित होती है, वह शिल्पीके नैपुण्यका स्ययंमें ही एक प्रमाण-पत्र बन गयी है। यहां पार्श्वनाथ और बाहुबलीकी मूर्तियोंमें वैविध्यके दर्शन होते हैं। कुछ पार्श्वनाथ मूर्तियां पद्मासन या कायोत्सर्गासनमें ध्यानमुद्रामें अवस्थित हैं; कई मूर्तियाँ केवलज्ञानसे पूर्व कमठासुर द्वारा किये गये विविध उपसर्गोंका सजीव चित्रण करती हैं। ऐसी भी मूर्तियां यहाँपर हैं जिनमें पार्श्वनाथकी कैवल्य-प्राप्तिपर देव-देवियाँ पुष्प वर्षा करके, वाद्य बजाकर अपना मोद प्रकट कर रही हैं। बाहुबलीकी सभी मूर्तियाँ कायोत्सर्गासनमें बाहुबलीके घोर तपकी सूचक हैं। तपस्यारत मुनिराज बाहुबलीकी जंघाओं और भुजाओंपर माधवी लताएं चढ़ गयी हैं, वामियोंमें-से सर्प निकलकर बाहुबलीके प्रशान्त मुखमण्डलको एकटक देख रहे हैं और गन्धर्व बालाएँ मुनिराजके ऊपर चढ़ी हुई लताओंको हटा रही हैं। बाहुबलोकी एकाधिक मूर्तियोंमें भरत चक्रवर्ती मुनिराजके चरणोंमें नमन करते हुए त्याग और विरागके सम्मुख सांसारिक वैभवको निस्सारता एवं अगाध समृद्धिके स्वामी अपनी अकिंचनता प्रदर्शित कर रहे हैं। उनकी बहन ब्राह्मी और सुन्दरी मुनिराजके दोनों पाश्ों में खड़ी हैं और मुनिराजके प्रति अपनी असोम भक्तिका परिचय दे रही हैं। तीर्थंकरोंमें पाश्र्वनाथके अतिरिक्त ऋषभदेव, नेमिनाथ, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ और महावीरकी भी अनेक मूर्तियाँ हैं। ये सभी अर्धपद्मासन हैं। शासन-देवताओंमें चक्रेश्वरी, पद्मावती, अम्बिका और सिद्धायिका एवं गोमेद, मातंग और धरणेन्द्रकी मूर्तियां विशेष उल्लेखनीय हैं। नीलांजना और इन्द्रकी नृत्य मुद्रावाली मूर्तियां दर्शकका ध्यान विशेष रूपसे आकर्षित करती हैं। स्तम्भों, तोरणों और सिरदलोंपर देव-देवियोंका समाज कई स्थानोंपर जुटा हुआ है। उपर्युक्त सभी देव-देवियोंकी अलंकरण-सज्जा, भावभंगिमा और सौन्दयंके अंकनमें कला अपनी चरम सीमापर पहुंच गयी है। यहाँ कई गुफाएं दो-मंजिली हैं। कई गुफाओंके स्तम्भ विशेष अलंकृत हैं। इन गुफाओंमें छोटा कैलास, इन्द्रसभा और जगन्नाथ सभा नामक गुफाएं अपनी उत्कृष्ट शिल्पकला, भव्यता और विशालतामें सर्वोत्कृष्ट हिन्दू और बौद्ध गुफाओंके समकक्ष हैं और यहाँके गुफा समूहमें इनका विशिष्ट स्थान है। पहाड़ी चट्टानोंको तराशकर खोदी गयीं इन विशाल, गहरी और सुडौल गुफाओंको देखकर दर्शक हैरान रह जाता है। गर्भगृह, सभामण्डप, अर्धमण्डप, विशाल स्तम्भ, मूर्तियां, उनके अलंकरण, गुफाओंकी छतें और उनका स्थापत्य, दो-मंजिली गुफा सभी कुछ तो स्वप्नलोक-सा लगता है। इनके निर्माणमें कितना यान्त्रिक कौशल काममें लाया गया होगा! क्षेत्र-दर्शन ___ गुफा नं. ३० अ-यह गुफा अधबनी है। चार स्तम्भोंपर अर्धमण्डप आधारित है। इसके मण्डप, गर्भगृह और दीवारें बन नहीं पायीं। ये अनगढ़ हैं। सामने ४ फीट ऊँची सर्वतोभद्रिका प्रतिमा रखी हुई है। इसकी प्रतिमाएं खड्गासन हैं। इस गुफाके स्तम्भ अत्यन्त कलापूर्ण और अलंकृत हैं। ये गुफा नं. ३२ के स्तम्भोंकी होड़ करते हैं । इस गुफासे एक कच्चा मार्ग गुफा नं. ३० ब को जाता है। लगभग एक फलाँग चलनेपर यह गुफा मिलती है। गुफा नं. ३० ब - गुफामें प्रवेश करनेपर दायीं ओर एक स्तम्भमें एक विशाल अर्धपद्मासन मूर्तिके दर्शन होते हैं। शिरोभागपर छत्र हैं। उसके ऊपर दुन्दुभिवादक तथा पुष्पवर्षा
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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