SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ जगत्तुंगका शासन था । कुमार अमोघवर्षने आचार्य जिनसेनसे जेनधर्मकी शिक्षा प्राप्त की थी । यह मानने प्रबल कारण विद्यमान हैं कि जिस प्रदेशमें ऐलाचार्यका विहार सतत रूप में हुआ, उस प्रदेशमें आचार्यं वीरसेनका भी अवश्य पावन विहार हुआ होगा। इसी प्रकार जिस स्थान - ऐलापुर अथवा शूलिभंजन में एक लम्बे काल तक रहकर आचार्य जिनसेनने जयधवला टीकाकी रचना की, उस स्थान पर उनके सुयोग्य शिष्य आचार्य गुणभद्रने भी अवश्य निवास किया होगा। इस प्रकार यह स्थान इन महान् आचार्योंकी चरण-रजसे दीर्घ काल तक पवित्र हुआ था । राज्यारोहणके पश्चात् नृपतुंग ध्रुव अमोघवर्षने मान्यखेट नगर ( शोलापुर से दक्षिण - पूर्व में १४४ कि. मी. ) की स्थापना की । मान्यखेटसे पहले राष्ट्रकूट वंशकी राजधानी मयूरखिण्डी ( नासिक जिला ), शालिभंजन ( ऐलौराके निकट ) और ऐलिचपुर थी । कुछ अन्य विद्वानोंको मान्यता है कि इस ऐलापुर नगरकी स्थापना ऐलिचपुर नरेश ऐलवंशी श्रीपालने की थी । इन विद्वानोंकी यह धारणा भ्रमजनित लगती है । प्रतीत होता है, इन विद्वानोंको श्रीपाल नरेशका वंश ऐल होने के कारण यह भ्रम उत्पन्न हो गया । इस भ्रमका एक कारण १६वीं शताब्दीके विद्वान् ब्रह्मज्ञानसागर द्वारा रचित 'सर्वतीर्थं वन्दना' का ऐलूरसे सम्बन्धित निम्नांकित छप्पय है 'एयल राय प्रसिद्ध देश दक्षिण में जायो । एलुर नयर वखाण महिमंडल जस पायो । खरचो द्रव्य अनंत पर्वत सवि कीरायो । षटदर्शनकृत मान इन्द्रराज मन भायो || कार्तिक सुदिपूनम दिने यात्रा श्री जिन पासकी । पूजननित भाव आसा पूरत तासकी ||३२||' इस छप्पयका सारांश यह है कि दक्षिण देशमें ऐल राजा उत्पन्न हुआ । ऐलूर नगरका यश सारे पृथ्वीमण्डलपर व्याप्त था । उस राजाने अनन्त द्रव्य व्यय करके सारे पर्वत में गुफाएं, प्रतिमाएँ आदि उत्कीर्णं करायीं । यह कार्य इन्द्रराजको बहुत अच्छा प्रतीत हुआ । यहाँ कार्तिक सुदी पूर्णिमाको भगवान् पार्श्वनाथको यात्रा होती है । जो लोग भक्तिभावपूर्वक इन पार्श्वनाथको पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण होती है । राजाने ऐलूर नगरकी राजाके काल में ऐलूरकी थी -- (१) उस नगरकी महान् आचार्यने निवास उक्त पद्य में नाममात्रको भी यह संकेत नहीं दिया गया कि ऐल स्थापना की थी। बल्कि इस पद्यसे तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि ऐल बहुत ख्याति थी । वस्तुतः ऐलापुर या ऐलूरकी ख्याति दो कारणोंसे स्थापना जैनाचार्य ऐलके नामपर हुई थी तथा वहाँ जिनसेनाचार्यं जैसे किया था और षट्खण्डागम-जैसी महान साहित्यिक निधिका सृजन किया था । (२) वहाँ सभी धर्मोके गुहामन्दिर और मूर्तियां थीं, जिनका शिल्प-वैभव अनुपम था । हाँ, उक्त पद्यसे यह अवश्य ज्ञात होता है कि ऐलराजाने ऐलूरमें गुफाओंका निर्माण कराया था । इसे मानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती । किन्तु उसने किन-किन गुफाओंका निर्माण कराया, यह जाननेका कोई साधन उपलब्ध नहीं है । ऐलोराका जैन शिल्प-वैभव ऐलोरा अपने शिल्प-वैभव और स्थापत्य कलाको दृष्टिसे सारे संसार में प्रसिद्ध है । यहाँ कला अपने उद्देश्य – सत्यं शिवं सुन्दरंको पूर्णतः चरितार्थं करने में सफल हुई है । कठिन पाषाणों में
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy