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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ नारी भक्ति गीत गाते हुए दस्तापुर पहुंचे। वहां उक्त पुत्र-वधू तथा अन्य लोगोंने भगवान्के दर्शन किये, आरती उतारी और भक्तिपूर्वक पूजा की तथा प्रार्थना की-"प्रभु ! हम आपको ले जानेके लिए आये हैं, आप चलिए।" साधारण प्रयत्न करते ही गाड़ी आष्टाकी ओर चल पड़ी। वापस पहुँचनेपर इसके लिए मन्दिरका निर्माण कराया गया और प्रतिष्ठा महोत्सवके साथ उस मन्दिरमें मूर्तिको विराजमान किया गया।
मूर्तिके चमत्कारको देखकर सभी ग्रामवासी इसके भक्त बन गये और इसे ग्राम-देवता मानने लगे। तभी से जैन-जेनेतर सभी लोग भगवान्के दर्शनोंके लिए यहाँ आने लगे। अनेक भक्त जन मनोकामनाएं लेकर प्रभु-चरणोंमें आते हैं और प्रभुकी भक्तिसे उनकी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। सरकारने भी भगवान्की सेवा-पूजाके लिए कुछ भूमि मन्दिरको दी है जो आज भी मन्दिरके नाम विद्यमान है। मनौती मनानेवाले भक्त गण घीसे भगवानका अभिषेक भी करते हैं।
के ऊपर सर्प-फण नहीं है. पादपीठपर सर्प लांछन बना हआ है। क्षेत्र-दर्शन
प्राचीन मन्दिर हेमाडपंथी शैलीका था। उसके स्थानपर एक मण्डप बनाकर उसके दो भाग कर दिये गये हैं। अन्तःभाग गर्भगृह और बाह्य भाग सभा-मण्डपके रूपमें प्रयुक्त होता है । इस मण्डपके दायीं ओर कुछ भाग प्राचीन मन्दिरका अवशिष्ट है।
गर्भगृहमें चबूतरानुमा वेदीमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी १ फुट ५ इंच ऊँची कृष्णवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वक्षपर श्रीवत्स है। प्रतिमाके कणं स्कन्धचुम्बी हैं। इसके आगे भगवान् ऋषभदेवकी १०॥ इंच ऊंची श्वेत पद्मासन प्रतिमा आसीन है। मूर्ति-लेखके अनुसार इसको प्रतिष्ठा संवत् १४७२ में की गयी थी। इसके दोनों पाश्ॉमें पाश्वनाथ और ऋषभदेवकी धातु प्रतिमाएं हैं।
बायीं ओर एक कृष्ण पाषाणफलकमें २४ तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। मध्यके खुले भागमें खड्गासन पार्श्वनाथ हैं। फलकका आकार २ फीट २ इंच है तथा इसका प्रतिष्ठा-काल संवत् १९२९ है। इसके दोनों ओर पार्श्वनाथ और बिना लांछनकी कृष्ण वर्णवाली पद्मासन प्रतिमाएं हैं तथा ३ धातु-प्रतिमाएं हैं। इनके बायीं ओर चन्द्रप्रभ भगवान्को श्वेत पद्मासन प्रतिमा है । इनके अतिरिक्त २ पाषाणकी तथा ७ धातुकी प्रतिमाएं और हैं।
मूलनायकको दायों ओर श्वेत मावलका ३ फीट ४ इंच ऊंचा संवत् १९२९ में प्रतिष्ठित २४ तीर्थंकरोंका एक फलक है जिसके मध्यमें पार्श्वनाथ-प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त एक खड़गासन और एक पद्मासन धातु प्रतिमा है।
इसकी दायीं ओर ९ इंच ऊंची सुपाश्वनाथकी श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त कृष्ण पाषाणको ४ तथा धातुकी १२ प्रतिमाएं हैं।
ये सब प्रतिमाएं एक ही चबूतरेपर विराजमान हैं । यहाँ क्षेत्रपाल भी विराजमान हैं।
सभामण्डपमें पाषाणकी पद्मावती देवी आसीन हैं । मण्डपका फर्श मावलका है । मन्दिरके ऊपर शिखर नहीं है । सभामण्डपके आगे बरामदा और प्रांगण हैं।
धर्मशाला
यहां यात्रियोंके लिए पृथक्से कोई धर्मशाला नहीं है। मन्दिरके प्रांगणमें ही सामने और दायीं ओर दो बरामदे हैं तथा इन बरामदोंमें दो कमरे हैं। कमरे रसोईके, बरामदे यात्रियों के