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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ अतिशय ___इस क्षेत्रपर भगवान् पार्श्वनाथको बड़ी मनोज्ञ प्रतिमा है। इस प्रदेशके लोक-मानसमें ऐसी श्रद्धा व्याप्त है कि यह प्रतिमा अतिशयसम्पन्न है और इसकी भक्ति करनेसे मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसी श्रद्धावश अनेक लोग यहाँ मनौती मनाने आते हैं। यह भी कहा जाता है कि दिनमें इस मूर्तिके तीन रूप बदलते हैं। प्रातःकाल मूर्तिके मुखपर बाल्यकालके भाव अंकित रहते हैं, मध्याह्नमें मुखमुद्रापर तारुण्यका ओज रहता है और सन्ध्याके समय उसके मुखपर वार्धक्य झलकता है। क्षेत्र-दर्शन
जिनालय गांवके मध्यमें बना हुआ है। सीढ़ियोंसे चढ़कर जिनालयके मुख्य द्वारमें प्रवेश करते हैं। द्वारके ऊपर नौबतखाना बना हआ है। सम्भवतः प्राचीन कालमें इस मन्दिरका बहुत वैभव होगा और यहाँ चारों सन्ध्याओंके समय नौबत बजती होगी। चारों ओर ऊंची दीवार बनी हुई है । मन्दिर मध्यमें है । उसके चारों ओर खुला सहन है।
___मन्दिरमें प्रवेश करनेपर सामने गर्भगृहमें वेदीपर मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी ४ फीट ४ इंच ऊंची और ३ फीट चौड़ी कृष्णवर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह नो फणमण्डित है। इसके पृष्ठ भागमें सर्पवलय है। इसके कर्ण स्कन्धचुम्बी हैं। वक्षपर श्रीवत्स नहीं है । इस प्रतिमाके ऊपर संवत् १९८३ में लेप कराया गया था। इससे प्रतिमाकी शैली और लेख दब गया है। अतः इसका काल-निर्णय करना कठिन है। लेपके पश्चात् प्रतिमाकी प्रतिष्ठा हुई। इस अवसरपर पूज्य आचार्य शान्तिसागरजी भी अपने संघ सहित पधारे थे।
_____ इस वेदीपर मूलनायकके अतिरिक्त १ फुट ७ इंच ऊंची और संवत् १९९० में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथकी एक पाषाण प्रतिमा और धातुकी ९ प्रतिमाएँ और हैं ।
गभंगहके द्वारके सिरदलपर अहंन्त मति बनी हई है। द्वार पाषाणका बना हआ है और अलंकृत है । आगे बरामदा है । इसमें दो स्तम्भ हैं, उनके सिरदलपर भी अर्हन्त प्रतिमाएं बनी हुई हैं। दायीं ओर एक चौकोर पाषाण-खण्डके ऊपर २ फीट ४ इंच ऊंची हलके श्यामवर्णको सर्वतोभद्रिका प्रतिमा है। इसके पास चबूतरेपर मुनि-चरण बने हुए हैं। दायीं तथा बायों दीवारवेदियोंमें पाश्वनाथकी १ फुट ५ इंच ऊँची कृष्णवर्ण और शान्तिनाथकी १ फुट ४ इंच ऊंची श्वेत वर्ण प्रतिमाएं विराजमान हैं।
मुख्य वेदीसे बाहर निकलनेपर दायीं ओर एक कमरेमें वेदीपर कृष्णवर्णकी संवत् १५९८ में प्रतिष्ठित आदिनाथकी पद्मासन प्रतिमा है । इसके अतिरिक्त वेदीपर सुपार्श्वनाथ, अरनाथ, चन्द्रप्रभ, पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकरोंकी ८ पाषाण प्रतिमाएं विराजमान हैं।
बायीं ओरकी कोठरीमें वेदीपर २ फीट १ इंच ऊँची पद्मासनस्थ पार्श्वनाथकी कृष्णवर्ण प्रतिमा विराजमान है। इसके अतिरिक्त वेदीपर ७ पाषाण प्रतिमाएं और
मुख्य गर्भगृहके आगे ४ स्तम्भोंपर आधारित खेला-मण्डप है। उसके आगे खुला स्तम्भमण्डप है । मन्दिरके ऊपर शिखर है। स्तम्भमण्डपके ऊपर लघु शिखर है । इनसे आगे सभामण्डप
बना हुआ है।
सभामण्डपके दोनों ओर खुले मैदानमें दो मानस्तम्भ हैं। ये ५ खण्डोंमें बने हुए हैं। पूर्व दिशाके मानस्तम्भमें प्रत्येक खण्डमें मिट्टीकी १ और शीर्ष वेदीपर १ प्रतिमा विराजमान है, जबकि पश्चिमके मानस्तम्भमें केवल शीर्ष वेदीमें ४ प्रतिमाएं विराजमान हैं। पूर्व दिशाके मानस्तम्भके