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________________ २५४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ समवसरण जिनवीर को तेर थकी पाछयो वल्यो। ब्रह्मज्ञान जग उद्धरण पावापुर सर शिव मल्यो ॥३४॥' ब्रह्मज्ञानसागरके इस छप्पयसे लगता है कि उनके कालमें तेरनगर वैभवसम्पन्न था. यहाँको मूर्ति अतिशयसम्पन्न थी और उनके कालमें भी यह धारणा प्रचलित थी कि तेरमें भगवान् महावीरका समवसरण आया था। काष्ठासंघी भट्रारक रत्नभूषणके शिष्य जयसागरने 'तीर्थ जयमाला' में 'सुतेरनयर वन्दौं वर्धमान' इस पद्यांश द्वारा तेरनगरके वर्धमान स्वामीकी वन्दना की है। जयसागरजीका समय १७वीं शताब्दीका पूर्वार्ध निश्चित किया गया है। उपर्युक्त अवतरणोंसे यह तो सुनिश्चित है ही कि तेर क्षेत्रकी ख्याति १७वीं शताब्दीके पूर्वाद्धं तक तो निश्चित रूपसे थी। क्षेत्र दर्शन इस क्षेत्रपर दोहरा परकोटा बना हुआ है। बाहरी परकोटेसे अन्दर प्रवेश करनेपर मन्दिरके चारों ओर काफी बड़ा मैदान मिलता है । पुनः दूसरे परकोटेके प्रवेश-द्वारसे प्रवेश करते हैं। दायीं ओर हेमाड़पन्थी महावीर मन्दिर है। उसके गर्भगृहमें वेदीपर भगवान् महावीरकी ५ फुट ३ इंच ऊंची और ५ फुट चौड़ी कृष्ण पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वक्षपर श्रीवत्स है। स्कन्धपर जटाएँ हैं। चार वर्ष पूर्व इस प्रतिमापर लेप किया गया था, जिससे मूर्तिलेख और लांछन दब गये हैं। मूलनायकके आगे पाषाण और धातुकी १-१ प्रतिमा आसीन है। वेदीके आगे एक छोटा चबूतरा है। परिक्रमा-पथमें पृष्ठ-भित्तिमें तीन आले बने हुए हैं। मध्य आलेमें श्यामवर्ण २ फुट ७ इंच ऊँचे पद्मासन मुद्रामें ऋषभदेव विराजमान हैं। सिरके ऊपर पाषाणफलकमें छत्रत्रयी है । वक्षपर श्रीवत्स अंकित है। कन्धेपर जटाएं हैं। शेष दोनों आलोंमें बलुए वर्णकी २ फुट ७ इंच उन्नत पाश्वनाथकी सप्तफणमण्डित खड्गासन मूर्तियां हैं। दोनों मूर्तियोंके पृष्ठ भागमें सर्प वलय बना है। दायीं ओरकी मूर्ति के आगे ८ इंच लम्बे चरण बने हुए हैं । यहाँ पाश्वनाथकी ३ फुट ऊंची मूर्ति है। गभंगहसे निकलनेपर बायीं ओर पार्श्वनाथकी ३ फट ऊंची बलए पाषाणकी खड़गासन मूर्ति है। उसके आगे चरण हैं। पादपोठपर बायीं ओर स्पष्ट लेख अंकित है। इसके पाश्वमें एक फलकमें २ फुट ३ इंच ऊँची खड्गासन मूर्ति है। बाहर बरामदेमें आनेपर बायीं ओर ३ फुट ३ इंच ऊँची खण्डित खड्गासन मूर्ति रखी है। आगे चरण हैं । दायीं ओर ५ मूर्तियां रखी हुई हैं-३ फुट १० इंच ऊँचे पाषाणफलकमें खड्गासन, ५ फुट ४ इंच ऊँचे स्तम्भमें सर्वतोभद्रिका, २ फुट ५ इंच ऊँचे स्तम्भमें सर्वतोभद्रिका, १ फुट ५ इंचके फलकमें खड़गासन प्रतिमा और ३ फूट १० इंच उन्नत पार्श्वनाथकी खड़गासन प्रतिमा। एक पाषाणमें चरण बने हैं। ये सभी प्रतिमाएं बलुए पाषाणको हैं, प्राचीन हैं और पर्याप्त घिस गयी हैं। इस मन्दिरके आगे खुला सहन है। बायों ओर (परकोटेके प्रवेश-द्वारके ठीक सामने ) हेमाड़पन्थी पार्श्वनाथ मन्दिर है । मन्दिरके द्वारके बाहर दायीं ओर ३ फुट १० इंच लम्बी और २ फुट २ इंच चौड़ी शिलापर २४ तीर्थंकरोंके चरण-चिह्न बने हुए हैं। इसके आगे एक पाषाणपर १० इंच लम्बे चरण-चिह्न हैं। कहा जाता है कि इस नगरमें भगवान् महावीरका समवसरण आया था। उनकी स्मृतिमें ये चरण-चिह्न अंकित किये गये हैं।
SR No.090099
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size21 MB
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